पक्ष-विपक्ष राजनैतिक रोटियां सेंकने में मस्त
विक्रम श्रीवास्तव//
ट्रांसपोर्टर प्रकाश पांडे की मौत के बाद मंत्रियों के दरबार की हकीकत सामने निकल कर आ रही है, जिस दिन जीएसटी और नोटबंदी से परेशान फरियादी प्रकाश पांडे जहर गटक कर कृषि मंत्री के दरबार में पहुंचा था, उस दिन फरियादियों में एक ऐसे दंपति भी दूसरे नंबर पर थे, जिन्हें आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि वह एक निजी अस्पताल की डॉक्टर के लापरवाही का शिकार हुए हैं। जिनके खिलाफ यह दंपति सिर्फ कार्यवाही की मांग कर रहा है। हैरत की बात यह है कि देहरादून के दुष्यंत कुमार और उनकी पत्नी कुमकुम जनता दरबार में 6 बार अपनी शिकायत दर्ज करा चुके हैं, लेकिन उनकी शिकायत पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई।
दरअसल कुमकुम की शिकायत उनकी 8 माह की बच्ची से जुड़ी है। उनका आरोप है कि डॉक्टर की लापरवाही की वजह से उनकी बच्ची डाउन सिंड्रोम का शिकार हो गई है। वह मानसिक व शारीरिक रूप से असक्षम है। वह चाहते हैं कि चिकित्सक को उसकी लापरवाही की सजा मिलनी चाहिए, लेकिन दुखद है कि जांच में दोषी पाए जाने के बावजूद भी अभी तक उस चिकित्सक और अस्पताल पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। आलम यह है कि दुष्यंत और उनकी पत्नी आज न्याय पाने को लेकर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।
पीडि़ता कुमकुम बताती हैं कि उन्होंने संपूर्ण गर्भावस्था अर्चना लूथरा हॉस्पिटल देहरादून की डा. अर्चना लूथरा के चिकित्सकीय परामर्श में कराई। ३० नवंबर २०१६ को डा. अर्चना लूथरा को ट्रिपल टेस्ट की रिपोर्ट दिखाई। रिपोर्ट में गर्भस्थ शिशु को डाउन सिंड्रोम का हाई रिस्क दर्शाया गया था, जिसे डा. अर्चना लूथरा के द्वारा जानबूझ कर हमसे छिपाया गया व ट्रिपल टेस्ट की रिपोर्ट को लॉ रिस्क बताकर व लिखकर गर्भावस्था को जारी रखने को कहा गया, जिसके कारण २२ अप्रैल २०१७ को उनकी लाइलाज डाउन सिंड्रोम से ग्रसित बच्ची का जन्म हुआ। कुमकुम कहती हैं कि मैं नहीं जानती कि किस लालच में डा. अर्चना ने उनके साथ इतना बड़ा अन्याय किया। उन्होंने उक्त डा. की शिकायत सीएमओ से भी की। जिस पर सीएमओ ने अर्चना हॉस्पिटल देहरादून को उत्तराखंड स्टैबलिश्मेंट एक्ट २०१५ के अधीन पंजीकृत न होने का दोषी भी पाया। तब से मैं जगह-जगह दर-दर की ठोकरें खा रही हूं, लेकिन कहीं से भी न्याय नहीं मिल पा रहा है।
कुमकुम विनती करती हुई कहती हैं कि उन्हें न्याय दिलाया जाए। वह कहती हैं कि डा. अर्चना लूथरा का लाइसेंस व रजिस्ट्रेशन निरस्त कर उन्हें कठोर दंड दिलाया जाए, ताकि भविष्य में इनके द्वारा अन्य माताओं व बच्चों की जान के साथ खिलवाड़ न किय जा सके।
कुल मिलाकर हल्द्वानी निवासी ट्रांसपोर्टर प्रकाश पांडे की मौत के बाद मचे घमासान के बीच भाजपा को इस तरह के मामलों का निस्तारण करना अत्यंत जरूरी हो जाता है, नहीं वह दिन दूर नहीं, जब एकाध अन्य घटनाओं का सामना भी भाजपा सरकार को करना पड़ सकता है, वहीं राजनैतिक रोटियां सेंकने वाली कांग्रेस को चाहिए कि वह राजनीति छोड़कर नि:स्वार्थ भाव से काम करे और कुमकुम जैसी अन्य महिलाओं के दुख-दर्द व अन्य शिकायतों को सरकार के सम्मुख जोरदार तरीके से उठाए तो प्रदेशवासियों को सही मायनों में तब जाकर उनकी राजनीति का लाभ मिल सकता है।