यूं तो सतपाल महाराज की सरकार से नाराजगी नई नहीं है लेकिन यह नजारा बिल्कुल ही अलग था। पुरानी नाराजगी का जिक्र करते हैं, लेकिन पहले बात करते हैं इस ताजा तरीन नजारे की।
देहरादून मे 16 जनवरी को भाजपा विधानमंडल दल की बैठक में सबसे पहले सतपाल महाराज पहुंचे थे। लेकिन जैसे ही मंच पर पदाधिकारी बैठे तो सतपाल महाराज उठकर सबसे पीछे की सीट पर चले गए।
भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं ने उन्हें आगे की पंक्ति पर बुलाया लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। कुछ विधायकों और पदाधिकारियों ने तो बाकायदा उनका हाथ पकड़ कर उन्हें आगे लाना चाहा, लेकिन सतपाल महाराज टस से मस नहीं हुए। यह नजारा यह बताने के लिए काफी था कि भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है और सतपाल महाराज भाजपा मे अपनी उपेक्षा से नाखुश हैं ।
इससे पहले भी सतपाल महाराज कई मौकों पर अपनी नाराजगी का इजहार कर चुके हैं। कभी वह कैबिनेट की बैठक में नहीं आते तो कभी भाजपा मुख्यालय में आयोजित होने वाले जनता दरबारों से दूरियां बरत लेते हैं। जाहिर है कि यह नाखुशी यूँ ही नही है।
सूत्रों का कहना है कि सतपाल महाराज अपनी उपेक्षा से नाराज हैं। उन्हें भाजपा में अपेक्षित तवज्जो नहीं मिल पा रही है। उनके द्वारा चाहे गये दायित्व धारियों को भी सरकार से हरी झंडी नहीं मिल पाई है। इससे भी महाराज मायूस हैं।
सतपाल महाराज मन माफिक स्टाफ न मिल पाने और मंत्रालय मे फ्री हैंड न मिलने से भी नाखुश हैं। कुछ भाजपाई इसे कांग्रेस और भाजपा की कार्यशैली का अंतर भी मानते हैं ।
सतपाल महाराज की नाखुशी का एक कारण यह भी है कि सरकार उनके भाई भोले महाराज और मंगला माता की संस्था हंस फाउंडेशन को अधिक तवज्जो दे रही है।
पाठकों को मालूम होगा कि हंस फाउंडेशन कई परियोजनाओं में सरकार को आर्थिक मदद कर रहा है। भोले महाराज से सतपाल महाराज का पुराना मनमुटाव है। ऐसे में सतपाल महाराज की ही सरकार में उनके भाई को तवज्जो दिए जाने और उनकी उपेक्षा से सतपाल महाराज मायूस हैं। इस मायूसी की सार्वजनिक झलक आज भाजपा की विधानमंडल दल की बैठक में भी दिख गई, जब मंच पर न बुलाए जाने से नाराज महाराज सबसे पीछे की सीट पर आकर बैठ गए। महाराज का कांग्रेस मे भले ही तमाम राजनीतिक प्रतिनिधियों से 36 का आंकड़ा था, लेकिन उनका कांग्रेस में जो कद था वह उन्हें भाजपा में कमतर महसूस होता है। देखना यह है कि सरकार तथा संगठन इन दूरियों को पाटने के लिए क्या कदम उठाते हैं।