उपनल के जरिये सरकारों ने बनाये 21000 युवा विकलांग ! आश्वासनों की अफीम में और अधिक गुम नहीं रह सकते उपनल कर्मी
विद्यासागर धस्माना
दर्द क्या होता है एक विकलांग से पूछो ! यह एक विकलांग की बात है, जिनको भगवान ने ऐसा जीवन दिया है। लेकिन आज जो हट्टे-कठ्ठे नौजवान जो स्वस्थ है,पढ़े लिखे हैं,उत्तराखण्ड के मूल निवासी हैं, उनको उपनल जैसे सिस्टम ने विकलांग बना दिया है।
पिछले महीने उपनल कर्मियों के आंदोलन को देखते हुए सरकार ने अच्छे वेतन और सम्मानजनक जीवन का आश्वासन देकर उनका आंदोलन समाप्त कराया था। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उपनल कर्मियों से एक माह का समय मांगा था। आठ फरवरी को एक महीना पूरा हो जाएगा। आज 5 फरवरी को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उपनल कर्मियों के विषय में कुछ ठोस निर्णय लिए जाने की संभावना है।
17 साल से चले आ रहे उपनल (उत्तराखण्ड पूर्व सैनिक कल्याण निगम) नामक संस्था उत्तराखण्ड सरकार द्वारा पूर्व सैनिकों के पुनर्वास के लिए स्थापित किया गया।
इस संस्था का मुख्य काम था सिक्योरिटी सर्विसेज देना। लेकिन बाद में इस संस्था द्वारा लिपिक ,एमसीए कंप्यूटर,प्रोग्रामर,इंजीनयर,नर्स,फार्मिशिस्ट,ड्राइवर,कंडक्टर,ऑपरेटर,लेखाकार प्रशासनिक अधिकारी,मैनेजर,मतलब जितने पद उत्तराखण्ड सरकार, के अधीन,विभागों,परियोजनाओं,निगमो,इत्यादि में सृजित थे, वहाँ सब जगह पद भर दिए गए। और इसमें बाद में पूर्व सैनिकों के आश्रित व पूर्व सैनिक न मिलने पर सामान्य श्रेणी के लोगो की भर्ती होने लगी। उपनल से विभागो में भेजे जाने वाले उम्मीदवारों के उपनल व विभाग दोनो संस्थाओं में टेस्ट लेकर भर्ती किया गया, हालांकि कुछ नेता कहते हैं कि कुछ लोगों ने बिना टेस्ट पास किये नौकरी पा ली। अब नौकरी पाए लोग विभागों में सभी पद के सापेक्ष नियमित कर्मियों की भांति समान कार्य कर रहे हैं,लेकिन चतुर्थ श्रेणी कर्मियों को 6500 लिपिकों फार्मिसिस्ट,जूनियर इंजीनियर इत्यादि को 8000 ,मानदेय सरकार द्वारा पिछले कई वर्षों से भुगतान किया जा रहा है।
17 साल में केवल 2013 में सरकार ने 1000 रुपये मानदेय बढ़ाया है। काम लेना है पूरे 7-8 घन्टे, नियम बायोमैट्रिक में हाजिरी ,कार्य के प्रति पूरी जिम्मदारी , जरा सी 19-20 की चूक पर स्पष्टीकरण, मतलब निमियत कर्मचारी पर जो लोकसेवक नियमावली लागू होती है, वही उपनल कर्मियों पर भी होती है।
अब शोषण की व्याख्या पर आते हैं। क्या उपनल कर्मी समान कार्य करने के उपरांत सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार नही रखता! क्या उपनल कर्मी बिना पौस्टिक भोजन करे स्वस्थ जीवन जी सकता है! और अस्वस्थ होने पर प्राइवेट डॉक्टर को दिखाने की हैसियत तो रखता नही है। सरकारी हॉस्पिटल की लाइन में लगे तो तनख्वाह काटती है। मतलब दोहरी मार, क्या उपनल में कार्यरत नौजवान अपना परिवार नही बसाना चाहता! अगर किसी उपनल कर्मी ने उपनल की नौकरी को पक्की नौकरी समझकर शादी कर भी ली तो,क्या वह इतने कम मानदेय में अपनी पत्नी को 2 जून की रोटी खिला सकता है! शादी अगर हुई है तो बच्चे भी होंगे,तो क्या पत्नी के प्रसवकाल का खर्च उठा सकता है, बच्चों को पौष्टिक आहार दे सकता है। बच्चे पढ़ने वाले हुए तो क्या अच्छे स्कूल में शिक्षा हेतु भेज सकता है! सरकारी स्कूल की बात करे तो 5 कक्षाओं के लिए 1 अध्यापक नियुक्त है।
मतलब उत्तराखंड राज्य की सभी सरकारें पिछले 17 साल से उत्तराखण्ड के इन नौजवान युवाओं से उपनल नामक संस्था के नाम से गुलामी करवा रही है, और गुलाम को कब भगा दिया जाय यह पता नही है।
उत्तराखण्ड का वित्त विभाग बात करता है बजट की कमी की। अरे अगर बजट कम था तो वित्त विभाग के अधिकारियों ने जल्दी -जल्दी छठे वेतन का लाभ क्यों लिया, उसके बाद सातवें वेतन की सिफारिशें क्यों लागू की!
विधायकों मंत्रियों का वेतन क्यों बढ़ाया! क्यों राज्य के लाखों कर्मचारियों अधिकारियों की फौज रेवेन्यू बढ़ाने की और ध्यान नही देते!
क्यों केंद्र सरकार पर आप निर्भर रहते हो! और अगर सचमुच बजट की कमी है तो 2018-19 का बजट वर्ष 2017-18 की आय का 10%वृद्धि कर प्रावधान किया जाय। एक साल सब 6 माह की तनख्वाह पर काम करे। जब उपनल कर्मी राज्य निर्माण के लिए 17 साल से 3-4 तनख्वाह दे सकते हैं तो विधायक सांसद,मंत्री,और नीति निर्धारक नौकर शाह क्यो नही? पर ये नही करेंगे। अरे जब आप नही कर सकते तो उपनल कर्मी कैसे कर सकता है, जिसका न वर्तमान न भविष्य।
आज उपनल कर्मियों का दर्द इतना बढ़ चुका है कि वह अब सहन से बाहर है। क्योंकि वर्षो जिस विकास के पेड़ को लगाया है। उसका फल चखने का अधिकार 21000 उपनल कर्मियों का भी है। इसलिए मोदी जी के मुख्यमंत्री जी त्रिवेंद्र सिंह रावत जी से अनुरोध है कि वायदे अनुसार 8 फरवरी तक उपनल कर्मियों के वेतन व भविष्य की नीति बनाये और नौकरशाहों को निर्देशित करे, क्योंकि सरकार भाजपा की है अतः सरकार निर्णय ले। ताकि 21000 कर्मियों के परिवारों को सम्मानजनक ,और भयमुक्त जीवन जीने को मिले। (लेखक उपनल महासंघ केंद्रीय प्रदेश सलाहकार हैं)