ठंडे बस्ते में उत्तराखंड का बेनामी संपत्ति कानून। तीन दिन बाद है “जुमले की वर्षगांठ”
उत्तराखंड में 21 जुलाई 2019 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बेनामी संपत्ति कानून लाए जाने की बात कही थी और कहा था कि, अगली कैबिनेट में बेनामी संपत्ति मसौदा लाकर उसे विधानसभा के अगले ही सत्र में पास कराया जाएगा। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह जुमला अपनी विधानसभा क्षेत्र के बालावाला में एक बड़े समारोह में जनता को दिया था। तब से एक सप्ताह तक सारे अखबारों और चैनलों में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इंटरव्यू और खबरों के माध्यम से यह मामला चर्चाओं में बना रहा था। मुख्यमंत्री ने तब क्या-क्या कहा था, वह सब गूगल पर सर्च करके वीडियो और प्रिंट के माध्यम से आज भी देखा जा सकता है।
योगी की देखा-देखी कही थी बात
दरअसल उत्तर प्रदेश में 18 जुलाई 2019 को नोएडा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के भाई आनंद की 400 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति जब्त कर दी थी। इसी की देखा देखी ठीक तीन दिन बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी बालावाला देहरादून के कार्यक्रम में बेनामी संपत्ति कानून लाने की बात कही थी।
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा था कि, बेनामी संपत्ति कानून के दायरे में सभी जनप्रतिनिधि और अफसर आएंगे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा था कि , जनप्रतिनिधि, भ्रष्ट अफसर और अपराधी अपने नौकरों अथवा अन्य लोगों के नाम पर काली संपत्ति इकट्ठा करते हैं और उन्हें इन्वेस्ट कर देते हैं। यह सारी संपत्ति ज़ब्त कर के अस्पताल और स्कूल खोले जाएंगे। एक साल होने को है, तब से इस दिशा में सरकार एक कदम आगे नहीं बढ़ी है।
जब कई कानून पहले से तो वही क्यों नही
गौरतलब है कि, बेनामी संपत्ति को ज़ब्त करने से संबंधित कई कानून पहले से ही प्रचलन में है। इसमें केंद्र सरकार का भी कानून है, प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट में भी यह व्यवस्था है। इसके अलावा उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी ने भी इसी तरीके का एक एक्ट बनाया था। यही नहीं इसके अलावा भुवन चंद्र खंडूरी लोकायुक्त एक्ट भी बना कर चले गए थे। हरीश रावत ने भी यही एक्ट बनाया था। किंतु यह तीन-तीन एक्ट होने के बावजूद त्रिवेंद्र सरकार ने बेनामी संपत्ति ज़ब्त करने अथवा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कोई भी कारगर एक्शन अभी तक नहीं लिया है।
जीरो टोलरेंस और लोकायुक्त 100 दिन में गठन करने की बात कहकर सत्ता में आई त्रिवेंद्र सरकार नें सत्ता में आते ही कह दिया कि, जब चोरी ही नहीं होगी तो चौकीदार की क्या जरूरत है। इसलिए लोकायुक्त एक्ट की भी जरूरत नहीं है! छात्रवृत्ति घोटाले पर भी कार्रवाई तभी हो पाई जब उत्तराखंड आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान जैसे लोग इसे जनहित याचिका के माध्यम से कोर्ट में ले गए। एनएच 74 घोटाले में भी कार्यवाही हाईकोर्ट के आदेश के बाद ही हुई।
त्रिवेंद्र सरकार में एनएच 74 घोटाले में गलत मुआवजा लेने वाले लोगों की बात हो या फिर गलत तरीके से छात्रवृत्ति लेने वाले स्कूलों की बात हो या फिर आयुष्मान योजना घोटाले में गलत धन से बिल क्लेम करने वाले अस्पतालों की बात हो, यह सभी पकड़े जाने पर लूट का पैसा वापस जमा करने तक ही सीमित हैं। इनके खिलाफ भ्रष्टाचार से संबंधित एक्ट के अंतर्गत प्रभावी कार्यवाही अभी तक नहीं हो पाई।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पारिवारिक और करीबी लोगों पर भ्रष्टाचार के जितने भी आरोप लगे हैं, उनमें से एक भी प्रकरण पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जांच कराने की बात तो दूर कभी जुबान तक नहीं खोली है। इन सब मामलों पर त्रिवेंद्र सिंह रावत की चुप्पी कहीं ना कहीं बेनामों संपत्ति एक्ट और लोकायुक्त एक्ट न बनाने को लेकर उनकी मंशा पर सवाल खड़े करती है। एक साल से बेनामी संपत्ति से संबंधित कानून बनाए जाने की बात कहने के बाद एक साल से उस पर चुप्पी साध लेने से भी जीरो टोलरेंस की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
हरीश रावत ने भी की थी कोशिश
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी बेनामी संपत्ति लाने की कोशिश की थी, किंतु मार्च 2016 जब वह इसे विधानसभा सत्र में लाए तो उनकी सरकार गिर गई और फिर उन्होंने एक बार फिर से मई 2016 को कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को पास करा के बेनामी संपत्ति ट्रांजेक्शन एक्ट बनाया था। किंतु त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस एक्ट को और मजबूत बनाने की बात कहते हुए इसे विधि आयोग को सौंप दिया था। विधि आयोग ने भी एक महीने में रिपोर्ट देने की बात कही थी। फिर क्या हुआ पता नही।
कुल मिलाकर सार यह है कि, बेनामी संपत्ति एक्ट के मामले में ना तो त्रिवेंद्र सिंह रावत ने केंद्र सरकार के कानून को माना, ना पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी के कानून को अंगीकार किया, और ना ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा बनाए गए कानून को स्वीकार किया, और नहीं अपना कोई कानून ही ला पाए हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत के साढे तीन साल गुजरने को हैं। भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टोलरेंस के मोर्चे पर वह अभी तक सोच और एक्शन के पैमाने पर पूरी तरह विफल हैं।
आज के ही दिन 18 जुलाई 2019 को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मायावती के भाई की ₹400 की बेनामी संपत्ति ज़ब्त की थी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी इसकी देखा देखी 21 जुलाई 2019 बेनामी संपत्ति कानून बनाने की बात कही थी। 3 दिन बाद उनकी इस बात को कहे भी एक साल पूरा हो जाएगा। देखने वाली बात यह होगी कि उन्हें इस “जुमले की वर्षगांठ” की याद आती है तो वह कोई नया जुमला पेश करते हैं या फिर इस पर कोई ठोस कार्रवाई आगे बढ़ाते हैं !