कमल जगाती, नैनीताल
उत्तराखण्ड के मुख्यमंन्त्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखण्ड के गौरवशाली इतिहास को पलटते हुए कहा कि चिपको आंदोलन की शुरुवात उत्तराखण्ड के पहाड़ों से नहीं बल्कि राजस्तान से हुई थी।
नैनीताल की डॉ. रघुनन्दन सिंह टोलिया प्रशासनिक अकादमी में आयोजित ‘प्रोविजन ऑफ पोर्टेबल ड्रिकिंग वाटर इन माउन्टेंस थ्रू पार्टिसिपेटरी स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट’ विषयक राष्ट्रीय सेमीनार में मुख्यमंन्त्री त्रिवेंद्र रावत पहुंचे थे। भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय जल जीवन मिशन के तहत दो दिवसीय ट्रेनिंग प्रोग्राम का आयोजन किया गया था, जिसमें केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिह शेखावत उपस्थित थे।
मुख्यमंन्त्री ने देशभर के 22 राज्यों से आए बुद्धिजीवियों के सामने कहा कि हम लोगों ने अपने पूर्वजों से प्रेरणा ली है। उन्होंने कहा कि सभी लोग बोलते हैं कि गौरा देवी के चिपको आंदोलन की शुरुवात उत्तराखण्ड से हुई, जबकि सच्चाई ये है कि 300 वर्ष पहले इसकी शुरुवात राजस्थान से हुई थी। उस आंदोलन में 367 बलिदान हुए थे, जब राजशाही के पेड़ काटने के खिलाफ महिलाएं पेड़ों से लिपट गई थी और उन्होंने अपना बलिदान दिया था।
चिपको आंदोलन से जुड़ी एक और जानकारी के अनुसार चिपको आंदोलन की शुरुआत 18वीं शताब्दी में राजस्थान के जोधपुर जिले से हुई थी। जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में तत्कालीन राजा ने पेड़ों को काटने के आदेश जारी कर दिए थे। इसके बाद भारी संख्या में विश्नोई समाज के लोग पेड़ों से चिपक गए। इस आंदोलन के बाद महाराजा को अपना आदेश वापिस लेना पड़ा था।