मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से जमीन खरीद कर अब उस पर कब्जा पाने के लिए दर-दर भटक रहे व्यक्ति से जिला प्रशासन के अधिकारियों सहित मुख्यमंत्री कार्यालय ने भी अपना पल्ला झाड़ लिया है।
अब यह सभी लोग कह रहे हैं कि प्लॉट पर कब्जा लेने और तार बाड़ करने की जिम्मेदारी खरीददार की है न कि जमीन को बेचने वाले की।
जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा 2007 में बेचे गये प्लॉट के बारे में जिला प्रशासन के अधिकारियों से पूछा गया तो उन्होंने अपना दामन छुड़ा लिया।
एक वरिष्ठ जिला प्रशासन के अधिकारी ने बताया कि जमीन खरीदने के बाद खरीददार ने उस प्लॉट पर कब्जा नहीं दिया और ना ही इस पर बाउंड्री वॉल बनाई। अब वह जमीन पर कब्जा पाने के लिए मुख्यमंत्री के नाम का इस्तेमाल कर रहा है। पर्वतजन के पाठकों को पता होगा कि इससे पहले मुंबई निवासी एक व्यक्ति ने मुख्यमंत्री कार्यालय तथा देहरादून जिला अधिकारी के कार्यालय में शिकायत की थी कि उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत तथा तत्कालीन विधायक से वर्ष 2007 मे मेहूवाला माफी स्थित ढाई बीघा प्लॉट खरीदा था।
और हाल ही मे जब वह अपनी जमीन पर आया तो पता लगा कि उस पर पहले से ही एक दूसरा व्यक्ति काबिज है, जिसके पास अपने स्वामित्व से संबंधित दस्तावेज भी हैं।
पिछले वर्ष नवंबर में जब यह व्यक्ति मुख्यमंत्री कार्यालय ले जाकर इस जमीन पर कब्जा दिलाने के लिए हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया तो फिर यह मामला जिला प्रशासन के पास भेजा गया था लेकिन यह मामला तब और उलझ गया जब इस जमीन पर पहले से ही काबिज व्यक्ति ने इस मामले में कोर्ट से स्टे ले लिया।
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अब अधिकारियों का कहना है कि अब यह मामला कोर्ट में है। इसलिए अब मुख्यमंत्री से जमीन खरीदने वाले व्यक्ति को उस जमीन पर दोबारा से कब्जा पाने के लिए कोर्ट में ही लड़ाई लड़नी होगी।
इस एक उदाहरण से बखूबी समझ जा सकता है कि जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से जमीन खरीदने वाले व्यक्ति को भी कब्जा पाने के लिए हाईकोर्ट की शरण में जाने को मजबूर किया जा रहा है तो फिर आम आदमी द्वारा खरीदी जा रही कितनी जमीन सुरक्षित है।