डाक्टर पंकज पैन्यूली
उत्तराखंड सरकार कोविड 19 की जांच में लापरवाही कर रही है। जहां एक ओर आज पूरी दुनिया कोविड-19 के संकट से जूझ रही है, वहीं उत्तराखंड सरकार एक बड़ी आबादी को नजरअंदाज कर रही है। उत्तराखंड में आज केवल 181 सैंपल ही कोविड-19 टेस्टिंग के लिए भेजे गए हैं। वर्तमान में उत्तराखंड में सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी के अलावा दून मेडिकल कॉलेज और एम्स ऋषिकेश तीन जगह पर टेस्टिंग की सुविधाएं उपलब्ध है। ऐसे में मात्र 181 सैंपल टेस्टिंग के लिए जाना इस बात की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त है कि सरकार टेस्टिंग को लेकर के काफी सुस्त है।
अगर उत्तराखण्ड की बात की जाए तो यहां अब तक कुल 54 कोरोना पोजिटिव केस कंफर्म हो चुके हैं। जिनमें से 34 सही भी हो गए हैं, परंतु यह खुश होने के बात नहीं है, क्योंकि उत्तराखंड में आज तक लगभग 5800 ही सेम्पल लिए गए हैं। जिसमें पूरा ध्यान केवल 3 मैदानी जिलों में ही दिया गया है। उनमें भी केवल 2 जिलों में ही टेस्ट के संख्या 1000 से ऊपर है।
देहरादून में दो दिन पूर्व तक 1823 और हरिद्वार में 1248, बाकी किसी भी जिले में टेस्ट के संख्या 1000 नहीं पहुंची है। 8 जिलों यानी 2/3 दो तिहाई उत्तराखंड में यह संख्या 100 से भी नीचे हैं और हैरानी की बात तो यह है कि 6 जिले यानी आधा उत्तराखंड में तो यह संख्या 50 से भी नीचे है। ये बात उत्तराखंड सरकार का डेली हेल्थ बुलेटिन की है।
अगर हम बात करे विश्व स्तर पैरामीटर की, जो पर मिलियन पर टेस्ट के संख्या की, तो वहां भी हम बहुत पीछे हैं। मसलन उत्तराखंड में 10 लाख लोगों पर केवल 152 लोगों का टेस्ट किया गया है।
29अप्रैल की रिपोर्ट
बात अब तक भी सही थी कि लक्षण नहीं तो टेस्ट की जरूरत भी कम है, परंतु जब दून मेडिकल कॉलेज में आजाद कॉलोनी से आई एक गर्भवती महिला का एहतियातन टेस्ट करवाया गया, क्योंकि वह हॉट स्पॉट एरिया से आयी थी और वह कोरोना पॉजिटिव निकली तो यह एक खतरे की घण्टी है। क्योंकि उस महिला को कोरोना के कोई भी लक्षण नहीं थे।
अब सवाल खड़ा होता है कि अगर सरकार ने नई हॉट स्पॉट चिन्हित किए हंै तो उनमें सरकार और स्वास्थ्य विभाग क्या कर रहा है। क्यों नहीं उस एरिया में रैपिड रेंडम टेस्ट करवा रही, क्योंकि जिस तरह वह महिला कोरोना पॉजिटिव थी, हो सकता है कि और लोग भी हों। क्योंकि कोरोना कॅरियर लोगों में कोरोना के कोई लक्षण नहीं होते और अगर ये लोग पहचाने नहीं गए तो लॉकडाउन खुलने के बाद इनके संपर्क में आने से कोरोना फैल सकता है।
यही सब बातें उन पहाड़ी जिलों पर भी लागू होती है, जहां सरकार टेस्ट करने में लापरवाही कर रही है। क्यों नहीं उन जगहों पर रैपिड रैंडम टेस्ट करवाया जाता है। कहीं ये आइस वर्ग की तरह हमको केवल बर्फ का ऊपरी सिर तो नहीं देख रहा और समस्या बहुत बड़ी हो।
ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह टेस्ट और लैब्स की संख्या बढ़ाई जाए, ताकि वक्त रहते उत्तराखंड को इस कोरोना कि बड़ी समस्या से बचा सके।