कृष्णा बिष्ट
पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी गई सुविधाएं हाई कोर्ट ने वापस लेने का आदेश दिया तो सरकार इन सुविधाओं को बहाल करने के लिए अध्यादेश ले आई।
सरकार के इस अध्यादेश का चौतरफा विरोध शुरू हो गया है। उत्तराखंड के तमाम बुद्धिजीवी सरकार के इस कदम को लेकर खासे नाराज हैं।
गौरतलब है कि 13 अगस्त को कैबिनेट की बैठक में गुप-चप यह प्रस्ताव लाया गया जहां विधेयक मंजूरी के लिए राजभवन जाएगा।
हालांकि जिस तरह का विरोध शुरू हो गया है, उससे लगता नहीं कि राजभवन से इस विधेयक को मंजूरी मिल पाएगी। राजभवन पहले ही भांग की खेती वाले विधेयक को लौट चुका है, जाहिर है कि राजभवन की नजर में भी सरकार की जनविरोधी नीतियां खटकने लगी हैं।
उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार तथा राज्य आंदोलनकारी महिपाल सिंह नेगी कहते हैं कि “सरकार शर्म करो और जनता प्रतिरोध करो।”
महिपाल नेगी कहते हैं कि सरकार भ्रष्टाचार को कानून बनाकर ढक रही है। एक ओर कोर्ट कह रहा है कि जनता की कमाई को वसूल करो तो सरकार कह रही है कि नहीं करेंगे। इसके लिए कानून लाएंगे।”
महिपाल नेगी सवाल उठाते हैं कि सरकार का यह फैसला जनहितकारी है या स्व हितकारी !
उत्तराखंड के वयोवृद्ध समाजसेवी और रूलक संस्था के संस्थापक पदम श्री अवधेश कौशल और रूलक संस्था के संस्थापक मुख्यमंत्रियों की सुविधाओं को वापस लिए जाने तथा उनसे अब तक के सारे हर्जे- खर्चे वसूलने के लिए एक जनहित याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट गए थे। हाईकोर्ट मे सरकार केस हार गई तो फिर मुख्यमंत्रियों की सुविधाएं बहाल करने के लिए अध्यादेश ले आई है।
करोड़ पति पूर्व मुख्यमंत्रियों की इन सुविधाओं पर पानी की तरह बहेगा पैसा
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिन पूर्व मुख्यमंत्रियों की सुविधा बहाली के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हलकान हुए जा रहे हैं उन्होंने चुनाव के समय अपने घोषणा पत्रों में साफ-साफ बताया है कि वे कई गाड़ी, बंगले और अथाह संपत्ति के मालिक हैं फिर इन पर दरियादिली किसलिए !
गौरतलब है कि अध्यादेश के प्रभावी होने के साथ ही न्यायालय का यह निर्णय लागू नहीं हो पाएगा और पूर्व मुख्यमंत्रियों को वैयक्तिक सहायक, विशेष कार्य अधिकारी, वाहन, वाहन चालक और तमाम तरह के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, चौकीदार, माली, टेलीफोन, अटेंडेंट और अन्य सुरक्षा गार्ड आदि की सुविधाएं मिलेंगी।
पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवंटित सरकारी आवासों का मरम्मत का खर्च भी अब सरकार उठाएगी और पूर्व मुख्यमंत्रियों को पेंशन भत्ता और अन्य सुविधाएं के साथ-साथ बिजली पानी और सीवर शुल्क का भुगतान भी स्वयं सरकार करेगी।
हर पांच साल के कार्यकाल में दो मुख्यमंत्री बदलने वाले उत्तराखंड पर यह एक बड़ा आर्थिक बोझ है।
विरोध मे बुद्धिजीवी
सवाल यह है कि एक ओर सरकार हर 15 दिन में खुले बाजार से करोड़ो रुपए कर्ज़ उठा रखी है, वहीं दूसरी ओर न्यायालय के आदेश के बावजूद इस तरह की फिजूलखर्ची के लिए बाकायदा अध्यादेश ला रही है। सरकार के इस निर्णय पर वरिष्ठ अध्यापक तथा लेखक मुकेश प्रसाद बहुगुणा तंज कसते हुए कहते हैं कि इस तरह की दरियादिली उत्तराखंड राज्य बनाने वालों के लिए भी हो तो क्या बात हो !
सरकार के इस कदम से लोगों में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ पनप रहा गुस्सा और तेज हो गया है। हर रोज कर्ज के दलदल में समाते जा रहे उत्तराखंड में इस तरह के फैसले के पक्ष में एक भी व्यक्ति खड़ा नहीं है और न ही वित्त विभाग इन पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए की जा रही इस फिजूलखर्ची के पक्ष मे है।
हाल ही में अपर जिला सूचना अधिकारी के पद से रिटायर हुए शक्ति मोहन बिजल्वाण भी कहते हैं कि यह अध्यादेश लाना न्यायालय के निर्णय का निरादर करना है। श्री बिजल्वाण कहते हैं कि “एक ओर सरकार स्वास्थ्य सेवाओं, कर्मचारियों और अन्य योजनाओं के लिए धन की कमी का रोना रोती रहती है, ऐसे में इस निर्णय पर जनता का निर्णय क्या होगा यह समय बताएगा।”
वहीं नरेंद्र रावत सवाल उठाते हैं कि कई देशों में तो राष्ट्राध्यक्षों तक को पद से हटने के बाद यह सुविधा नहीं मिलती फिर अदने से राज्य में एक्स मुख्यमंत्रियों को क्यों !
उत्तराखंड महिला मंच की नेत्री और उत्तराखंड आंदोलनकारी कमला पंत कहती हैं कि ये नंगेपन की हद है। माल लौटाने को कहो तो कानून बना देते हैं।
सुरेंद्र बुटोला तो इसको संवेदनहीनता आपत्तिजनक और अश्लीलता करार देते हैं।
फिर बड़ा सवाल यह है कि आखिर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत यह अध्यादेश किस की मांग पर और क्या सोच कर लाए !! यह सरकार के मानसिक दिवालियापन की एक और निशानी है।
मात्र ढाई साल के कार्यकाल में अपने करीबियों के स्टिंग ऑपरेशन के बाद त्रिवेंद्र जन विरोधी हो चले हैं।
पहले भी लाए ऐसा आध्यादेश
इससे पहले देहरादून के वरिष्ठ पत्रकार और श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन लखेड़ा देहरादून में अतिक्रमण के खिलाफ पीआईएल के माध्यम से हाईकोर्ट गए थे। हाईकोर्ट ने तत्काल अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद देहरादून की नदियों को कब्जाने वाले अतिक्रमणकारियों के लिए अध्यादेश लाने वाले त्रिवेंद्र की छवि उत्तराखंड विरोधी हो गयी है।
एक के बाद एक जन विरोधी फैसले
इसके बाद भांग की खेती के लिए आध्यादेश, हिलटॉप दारू की फैक्ट्री खोलने का निर्णय तथा अब पूर्व मुख्यमंत्रियों की सुविधाओं के लिए हाईकोर्ट में हारने के बावजूद अध्यादेश लाने जैसे फैसले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की हनक और सनक के कुख्यात उदाहरण हैं।
जाहिर है कि सरकार के इन फैसलों से भाजपा के वरिष्ठ नेता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक नाराज हैं।