आज उच्चतम न्यायालय द्वारा एक साथ तीन तलाक पर आए निर्णय के बावजूद हलाला पर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है। यदि एक साथ तीन तलाक की बजाय नियमित अंतराल में तलाक वाला मुद्दा जिंदा रहा तो हलाला की प्रक्रिया भी जारी रहेगी। निकट भविष्य में यदि एक साथ तीन तलाक को खत्म करने वाला कानून आ भी जाता है तो भी मुस्लिम महिलाओं को उस दरिंदगी से कैसे बाहर लाया जाएगा, इस पर संशय बरकरार है। यदि सरकार तीन तलाक खत्म कर नियमित अंतराल में तलाक तलाक तलाक कहने को मान्य करती है तो इसके परिणामस्वरूप यदि पति-पत्नी में सुलह हो जाती है तो उस सुलह को अमलीजामा पहनाने के लिए उस महिला को एक बार फिर हलाला की प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। अब यदि महिलाओं को हलाला से गुजरना ही पड़ा तो फिर उन्हें न्याय कैसे मिला! हलाला की यह प्रक्रिया यदि बंद नहीं होती है तो महिलाओं की आजादी को लेकर आज जो नारे लग रहे हैं, वे स्वत: ही झूठे साबित हो जाएंगे।
जानकारों के मुताबिक यूं तो हलाला इस्लाम में हराम है, किंतु यदि कोई पति अपनी पत्नी को पूरी तलाक (तलाक-ए-मुगलज्जा) अर्थात तीन तलाक दे देता है तो अब पति अपनी उस बीबी से दोबारा शादी नहीं कर सकता। उसे अपनी पत्नी से विवाह करने के लिए पहले अपनी पत्नी का हलाला करवाना पड़ेगा। अर्थात कुछ समय के लिए वह स्त्री किसी दूसरे व्यक्ति के साथ हमबिस्तरी करेगी। हलाला की यह प्रक्रिया उन मौलवियों द्वारा शुरू करवाई गई, जिन्होंने अपनी निजी स्वार्थों के लिए महिलाओं को प्रयोग किया। इस्लामिक स्कॉलर के मुताबिक मौलवियों ने इस नियम को अपनी मर्जी से तोड़ा-मरोड़ा।
अब देखना यह है कि न्यायालय के निर्णय के बाद एक साथ तीन तलाक से पीडि़त महिलाओं और हलाला से हलाल हुई महिलाओं को कैसे न्याय मिलता है!