हरीश रावत: हां समय आ गया है (पार्ट-2)
छोटे राज्यों में रोजगार सृजन का दबाव अपेक्षाकृत अधिक रहता हैं और रोजगार सृजन क्षमता कम रहती है। विभागों में पदों की रिक्तता व उन्हें भरने की प्रक्रिया भी कठिन रहती है। प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिये, मुख्यमंत्री को व्यक्तिगत तौर पर प्रत्येक ऐसी बैठक में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करनी आवश्यक है। आरक्षित पदों के विरूद्ध रिक्त्ता प्रत्येक राज्य में एक बड़ा सवाल है। हमारे राज्य में राज्य लोकसेवा आयोग आवश्यकता अनुसार भर्तियां करने में साधन सम्पन्न नहीं हैं। मैंने पदभार सभालते ही, अधिनस्त सेवाचयन आयोग का गठन निश्चित करवाया। डाॅक्टर्स व उच्च शिक्षा में पदों को भरने हेतु पृथक-2 चयन बोर्ड का गठन किया, तांकि बिना लम्बी औपचारिकताओं के सीधे भर्तियां हो सकें। दूर-दराज के स्कूलों में अध्यापक के चयन हेतु ब्लाॅक आधारित मैरीट पर जाने की अनुमति प्रदान की गई। आरक्षित पदों को भरने के लिये 50 प्रतिशत तक पदों को ऐसी रिक्त्ताओं के विपरित भरने के आदेश दिये गये। आज देश में केरल व तमिलनाडू के बाद सबसे कम आरक्षित पदों का बैकलाॅक उत्तराखण्ड में है। मेरे पद सभालने से पहले, राज्य ने रिक्त पदों को भरने के बजाय वित्तीय अनुशासन बनाये रखने के लिये, स्थाई भर्तियों को आगे नहीं बढ़ाया। कुछ संस्थायें खड़ी कर जैसे उपनल, पी.आर.डी., पीटीए आदि के माध्यम से बड़ी संख्या में भर्तियां की गई। यह सेस्टम व युवाओं दोनों के साथ खिलवाड़ था। अकेले शिक्षा में कई प्रकार के पदनामों के साथ शिक्षकों की बड़ी संख्या थी। मैंने ऐसे वर्गीकरणों का नियमितकरण किया। पाॅंच वर्ष से अधिक समय से अस्थाई चल रहे कर्मचारियों को स्थायी किया व दैनिक भोगियों को सेस्टम में लाने के लिये एडहोक बनाया। उपनल कर्मियों व अतिथि शिक्षकों ने मेरा साथ दिया होता और मेरे फार्मूले को मान लेते, तो उन्हें इस समय भटकना नहीं पड़ता। मैंने सफाई कर्मियों से लेकर गैंग कर्मियों, पीआरडी, होमगार्ड, भोजनमाताओं, आशा, एनएचएम, आंगनबाड़ी हर वर्ग के लिये सुविधाओं व मानदेय में वृद्धि की या उन्हें सेवा सुरक्षा प्रदान की। मैंने कर्मचारियों के लिये समय पर कैडर रिव्यू, विभागीय ढांचे व विभागीय नियमावलियों आदि निर्धारित करने में बहुत ध्यान दिया। इस दिशा में उन्नीस वर्षों में जितना कार्य हुआ है, उसका आधा कार्य मेरे समय में सम्पादित हुआ है। मैं स्वयं ऐसी बैठकों में बैठता था। उदाहरण स्वरूप वर्षों से हाईस्कूल व इण्टर काॅलेजों में प्रधानाचार्यों के पद रिक्त पड़े थे, स्कूली व्यवस्था चरमरा रही थी, विभागीय प्रमोशन रूके पड़े थे। मुझे इस जटिल स्थिति के निराकरण के लिये चार बैठकें करनी पड़ी और समस्या का समाधान निकल आया। मुख्यमंत्री का प्रमुख दायित्व है, अवसर पैदा करना। नौकरियां हों या पदोन्नोति या राजनैतिक अवसरों को बढ़ाना, मैंने इस दिशा में सजग होकर प्रयास किया। मेरे कई प्रयासा का विशेषतः राजनैतिक प्रयासों का वर्तमान मुख्यमंत्री पर्याप्त लाभ उठा रहे हैं और मुझसे बेहतर तरीके से उठा रहे हैं। सेवा क्षेत्र में उनका ध्यान नहीं है, मगर मेरे द्वारा सृजित राजनैतिक अवसरों का उन्हें भरपूर लाभ मिल रहा है।
मुख्यमंत्री के पद के सफल निवर्हन मंे पार्टी की बड़ी भूमिका रहती है। पार्टी व राज्य के लिये उपयोगी व्यक्तियों की क्षमता का उपयोग व पार्टी कैडर की संतुष्टी दोनों आवश्यक हैं। मैंने मंथनपूर्वक ऐसे छोटे-बड़े पदों का सृजन किया, जहां मैं अधिकतम लोगांे की क्षमता का उपयोग कर सकूं। मैंने लगभग तीन हजार ऐसे अवसर सृजित किये, जिसके चलते कई स्तरों पर हमारे कार्यकर्ताओं को शासन के कार्यक्षेत्र को समझने का अवसर मिला। सैकड़ों ऐसे कार्यकर्ताओं ने मुझे बहुत उपयोगी फीडबैक भी दिये। जिसका उपयोग मैं अपनी सरकार की कार्य क्षमता बढ़ाने में कर सका। यह कार्य मैंने सरकार का खर्च बढ़ाये बिना किया। इन दायित्वधारियांें पर वार्षिक खर्च पिछली सरकारों के उच्चतम वार्षिक खर्च से मात्र 4 प्रतिशत अधिक था। मैंने माननीयों का मानदेय का स्तर नियंत्रण में रखा। आज उसे पर्याप्त बढ़ा दिया गया है। दो रावतों में यही अन्तर है। पहले रावत ने दिया भी मगर लोग संतुष्ट कम हुये, दूसरे रावत ने पद भी दिया, धन भी दिया और अपनी पार्टी के साथियों का संतुष्टी जन्य आर्शीवाद भी प्राप्त किया, चाहे राज्य की कीमत पर किया। मैं अपने कार्यकाल में पार्टी को पूर्णतः सन्तुष्ट नहीं रख पाया। अधिकांश लोग अपने पद व दायित्व से संतुष्ट नहीं थे। मेरी क्षति के बावजूद यदि मैं राज्य के दृष्टिकोण से सोचता हूूॅं तो मैंने अधिकतम पद सृजित किये और ऐसे नये-2 क्षेत्रों में किये, जो क्षेत्र मेरे पद ग्रहण करने से पूर्व अचिन्हित थे। जैसे एपण संवर्धन परिषद, संस्कृति एवं मेला संवर्धन परिषद, बोली-भाषा विकास परिषद, शिल्प विकास परिषद, इन चारों क्षेत्रांे में एक कलात्मक सांस्कृतिक उत्तराखण्ड के संवर्धन के साथ रोजगार सृजन की अपार संभावनायें हैं। एपण उत्तराखण्डी हस्थलाधव का विश्वसंस्करण हो सकता है। सांस्कृतिक मेले पर्यटन के साथ जुड़कर, कमाल कर सकते हैं। नैनीताल के एक राजनैतिक कार्यकर्ता को मैं झील व छोटे बांधों की विकास परिषद का चेयरमैन बनाना चाहता था, उन्हें मेरा प्रस्ताव बादाम की जगह मूंगफली जैसा लगा और उन्होंने स्वाद चखने से इन्कार कर दिया। दो लोगों को मैंने उत्तरखण्डी खान-पान संवर्धन परिषद का दायित्व सौंपा। इन्दिरा अम्मा कैंटीनों के रूप में ढांचा पहले से अस्तित्व में आ चुका था। ‘‘घी-संक्रान्त व सैफ महोत्सव’’ के रूप में दो प्रतीक योजनायें भी आयोजित हो चुकी थी। नियुक्त दायित्वधारियों ने नाराजगी तो नहीं दिखाई, मगर अपने काम में उनका मन नहीं लगा। उत्तराखण्ड में यूको टूरिज्म की अपार सम्भावनायें हैं। मैंने वन निगम से कार्य पूंजी लेकर वन विभाग व उद्यान विभाग के संयुक्त उपक्रम के रूप में राज्य इको टूरिज्म काॅरपोरेशन का गठन किया। नियमावली बनाई, एम0डी0 नियुक्त किये, वन विभाग के डांक बंगलों सहित कुछ राजकीय उद्यानों को इसके साथ जोड़ा। मेरी ईच्छा थी, एक क्षमतावान, कल्पनाशील व्यक्ति इस कार्य को सभाले, तांकि यह काॅरपोरेशन उत्तराखण्ड के एक अभिनव प्रयोग के रूप में आगे बढ़ सके। मेरे द्वारा चयनित व्यक्तित्व ने कहा, खबरदार देना है तो मण्डी देना अन्यथा अपना काॅरपोरेशन अपने पास रखो। मैंने रेवन्यू को संस्थागत रूप देने के लिये विधानसभा से एक्ट बनाकर खनन विकास परिषद निगम का गठन किया। जिन्हें इस निगम का दायित्व सौंपा गया, उन्होंने एक से अधिक बार कहा कि, आपने मेरी मूछें नीचे कर दी, वे अपने दायित्व से संतुष्ट नहीं थे। खैर ऐसी कई गाथायें हैं, मैं कुछ का जिक्र इसलिए कर रहा हॅू, ताकि मेरे स्मृति के झरोखे शिथिल होवें, उससे पहले ये बातंे लोगों के संज्ञान में आ जायें। हमारे राज्य में कई कानून हैं, जो पूर्णतः असंगत हो चुके हैं, कुछ नियम-उपनियम हैं, जो विरोधाभाषी हैं। मैंने अपने कुछ दोस्तों को इनके पुर्ननिरीक्षण का दायित्व सौंपा, उनकी रिर्पोट के कुछ अंश मैंने पढ़े हैं। मुझे अपने चयन व उनके सुझावों पर गर्व है। राज्य उनके शोध का कितना फायदा उठायेगा, मैं नहीं जानता। परन्तु उन साथियों ने उन्हें दिये गये दायित्व का सम्मान बढ़ाया, इसे मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हॅू। हमारे राज्य में चकबन्दी की बहुत बातें होती हैं। कुछ जिलों में उत्तर प्रदेश की चकबन्दी नियमावली लागू है, शेष जनपद ठन-ठन गोपाल हैं। स्टाफ भी हमारे पास अपना नहीं है। मैंने पृथक चकबन्दी कैडर बनाने से लेकर चकबन्दी नियमावली बनाने के लिये एक कमेटी बनाई। मुझे खुशी है, कमेटी ने निर्धारित समय में अपना काम कर विभाग को ड्राफ्ट सौंप दिया, जिसे विधानसभा ने कानून का रूप दिया। भले ही कमेटी के चेयरमैन दल-बदलू हो गये, मगर उनकी व उनके सहयोगियों की मेहनत का दस्तावेज आज राज्य की धरोहर है। जब भी राज्य चकबन्दी करना चाहेगा कानून उसकी मदद के लिये उपलब्ध है। राज्य में भूमि का बन्दोवस्त बहुत आवश्यक है। कहा जाता है, उत्तर प्रदेश के दिनों में दो मुख्यमंत्रियों ने ऐसे प्रयास किये और वे ऐसा करने से पहले ही हट गये। मैंने इस हेतु एक सेवानिवृत्त अधिकारी के संयोजकत्व में भू-बन्दोवस्त प्रणाली अध्ययन एवं संयोजन कमेटी बनाई। देखिये, कैसा विचित्र संयोग है, कमेटी के अधिसूचित होते ही, मैं पद से हटा दिया गया व राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। उत्तराखण्ड परम्परागत बीजों का खजाना है, समय के साथ यह खजाना रिक्त हो रहा है। मैं इस दिशा में सजग व सचल रहा। मैंने ऐसे बीजों की खेती के प्रोत्साहन की योजना को कार्यरूप दिया और कृषि विभाग को यह कार्य सौंपा। प्रारम्भिक चयन के तौर पर सोमेश्वर व चिन्यिालीसौंड़ विकास खण्डों का चयन किया गया। मुझे अफसोस है कि, मुझे इस चयन प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिये कमेटी बनाने में विलम्ब हो गया। कमेटी बनाई और उसके कार्य प्रारम्भ करने तक चुनाव आ गये। मेरी सरकार व मैं, दोनों धड़ाम हो गये। मगर यह सोच धड़ाम नहीं होनी चाहिये। मैं साधूवाद दूंगा यदि आज की सरकार इस कार्य को आगे बढ़ाये या नई शुरूआत करे। राजनैतिक व्यक्ति को एक तथ्य हमेशा याद रखना चाहिये कि, उसके लिये कोई कल नहीं है। कल तो जनता का है, उसके पास केवल आज है। मैं हमेशा आज को मानकर अपना एजेण्डा निर्धारित करता था। मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हॅू कि, मेरी दर्जनों पहले राज्य के भविष्य के लिये महत्वपूर्ण थी और हैं।
मैंने रेशा विकास संवर्धन के लिये बैठक बुलाने का निर्देश दिया। दो दिन बाद जब मैंने पूछा, कब है बैठक तो एक दर्जन के करीब अधिकारी बैम्बू बोर्ड भारत सरकार की दिशा निर्देशिका ले कर आये और उनके साथ खादी बोर्ड के अधिकारी भी थे। मैंने पाॅच मिनट बैम्बू बोर्ड पर प्रजेन्टेशन सुना फिर खादी बोर्ड का प्रजेन्टेशन देखा। थोड़ा जिक्र रामबांश का भी आया। मैंने भीमल व कण्डाली भांगुला, रामबांश, मालू आदि का जिक्र किया तो सब एक-दूसरे को देखने लगे। मुख्यमंत्री को संतुष्ट करने के लिये उन्होंने दो करोड़ रूपया खादी बोर्ड को देकर इनके रेशों को खरीदने का प्रस्ताव आगे कर दिया। मैंने राज्य में रेशा इन सबकी उत्पादन व विपणन पर कोम्प्रिहैंसिव डेवलपमेंट योजना मांगी। रेशा पैदा करने, संरक्षण, उपयोग से लेकर खरीद तक की योजना मांगी। खैर एक माह बाद कुछ एनजीओज खादी बोर्ड के साथ बैठक में आये लोगों को लाल व हरी कण्डाली का अन्तर ही मालूम नहीं था। भागुला तो बाब रे बाब कौन हाथ लगायेगा। अपने कथन को सिद्ध करने के लिये नारकोटिक्स विभाग को भी साथ लाये थे। मैंने नारकोटिक्स विभाग से पूछा कि, जंगली भांगुले का आप क्या करते हैं, उनके पास जबाव नहीं था। जब मैंने कम नशे वाले भांगुला प्रजाति का जिक्र किया तो सर खुजलाने लगे। खैर मेरे बार-बार जोर देने के कुछ सार्थक परिणाम निकले। आज राज्य के पास भांगुले के उत्पादन व उपयोग का अपना कानून है। कम नशे वाले भांगुले के बीच तैयार करने का प्रोजेक्ट कृषि विश्वविद्यालय को सौंपा गया था, उस क्षेत्र में भी कार्य हुआ है। न्यूजीलैण्ड से इस खेती के विशेषज्ञ बुलाये गये थे। भीमल के रेशे से उपजा फूट वेयर बन रहे हैं। कण्डाली के वस्त्र व चाय बन रही है। खादी बोर्ड के साथ अमेजाॅन कम्पनी इसकी मार्केटिंग कर रही है। रेशों की दस्तकारी को संवारने के लिये अल्मोड़ा में नन्दा देवी सेन्टर आॅफ हैन्डलूम हैन्डी क्राफ्ट डेवलपमेंट एण्ड एक्सिीलेन्स स्थापित हुआ है और बोर्ड गठित हुआ। मैं दावे के साथ कह सकता हॅू कि, यदि त्रिवेन्द्र सिंह इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिये कोई प्रभावशाली व सजग ग्वाला रख सकें तो हजारों दुआऐं उनके खाते में जुड़ेंगी। मैं तो ‘‘आप खायें मुर्ग-मुस्लम, जनता को दें भांग-धतूरा’’ के दौर के साथ चला गया। मगर लोग त्रिवेन्द्र को याद करेंगे। कोई नहीं पूछेगा, पहले वाले रावत ने क्या किया, लोग आज के रावत को देखेंगे। जो दिखता है, वही बिकता है। भागुले की खेती उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था को अधिकारी कुछ पहलों में से एक सशक्त पहल है। राज्य सरकार को इस समय मैं एक क्रोम्प्रिटैन्सिव प्लान बनाकर कार्य करना चाहिये। भागुला को कुछ हाथों में सौंपने के बजाय एक विकेन्द्रीयकृत उपज एवं रेशा विकास के रूप में खेती को प्रोत्साहित करना चाहिये। गाॅव-2 में इसे कुटीर उद्योग जिसमें वस्त्र, दवा एवं खाद्य पदार्थ तैयार करना सम्मिलित है, योजनागत रूप से आगे बढ़ाना चाहिये। ढांचा व नियमावली, मेरी सरकार तैयार करके गई है।
क्रमशः
(हरीश रावत)