वन गुजरों में वन महकमे को लेकर बड़ी नाराजगी हैं, क्योंकि उन्हें पुरोला के जंगलों में डेरे लगाने और पशुओं को चरने के लिए प्रवेश नहीं मिल रहा है।
राजाजी के वन गुर्जरों का प्रतिनिधित्व करने वाले इरशाद का कहना है कि, 2013 में उत्तराखंड कैबिनेट ने प्रस्ताव पारित किया था कि, राज्य के जंगलों में वन गुर्जरों को डेरे लगाने व उनके पशुओं को जंगल में चरने की अनुमति रहेगी।
इरशाद ने बताया कि उच्च न्यायालय ने भी निर्देश दिये हैं कि, पहले से जो वन गुजर जंगलों में अपना बसर करते हैं उन्हें राज्य के जंगलों में पशुओं को चरने व उनके डेरे लगने से न रोका जाये।
इरशाद का कहना है कि, पुरोला के नैटवाड़, मोरी, रूपिन, सुपिन में वन गुजर हमेशा प्रवेश करते थे लेकिन अभी पुरोला के एक वन अधिकारी ने कोविड का कारण बताते हुए वन गुजरों को जंगलों में प्रवेश करने से दस किलोमीटर पहले ही रोक दिया है।
इरशाद ने कहा कि, कुछ अधिकारी वन गुर्जरों से बैर रखते हैं। जिसके चलते चीला रेंज से हटाकर इन्हीं वन गुजरों को तीन साल पहले वहां से बाहर कर दिया गया था लेकिन इसके बाद शासन-प्रशासन के कुछ आला अधिकारियों ने इनकी पुनः मदद की और इनकी सूची सत्यापित करके शासन को भेजी थी।
उन्होंने बताया कि, शासन से पुनः प्रस्ताव प्रमुख वन संरक्षक द्वारा मांगा गया हैं। मुख्यमंत्री के वरिष्ठ प्रमुख निजी सचिव के.के. मदान ने मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव को बीते माह पत्र लिखा था कि, घुमंतू वन गुजर समुदाय द्वारा ग्रीष्म काल में गोविंद पशु विहार के सकरी, रूपिन, सुपिन रेंज के बफर क्षेत्रों में तथा शीतकाल में मोहंड, शाकुम्भरी, बडकला क्षेत्रों में निवास एवं पशु चुगान की अनुमति प्रदान किये जाने कि मुख्यमंत्री से अनुरोध किया हैं।
मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक उत्तराखंड ने उपनिदेशक गोविंद वन्यजीव विहार, राष्ट्रीय पार्क पुरोला को पत्र लिखा था कि, शासनादेश में दिये गये प्रावधानों के अनुसार पूर्व की भांति इस वर्ष भी सांकरी व रूपीन रेंज के अंतर्गत ग्रीष्मकालीन चराई की अनुमति प्रदान की जाए।
हालांकि अभी भी वन गुजरों को पुरोला के जंगलों में प्रवेश करने से रोक दिया गया है और उनके डेरे में महिलायें बच्चे व बुजुर्ग खुले आसमान के नीचे प्रचंड बहुमत की सरकार की अफसरशाही का दंश झेल रहे हैं।