कृष्णा बिष्ट
एक बड़ा खुलासा सोशल एक्टिविस्ट रघुनाथ सिंह की एक आरटीआई के जवाब में हुआ है।
रघुनाथ सिंह चौहान कहते हैं कि पिछले 5 सालों में 995 पीआईएल, 11300 दूसरे सिविल मैटर हाईकोर्ट पहुंचे हैं। इसका सीधा सीधा सा मतलब है कि राज्य बनाए जाने का जो उद्देश्य था उसमें हमारी सरकार पूरी तरह से फेल साबित हो रही हैं और लोग सरकारों से निराश होकर राहत पाने के लिए हाई कोर्ट का रुख कर रहे हैं।
सूचना के अधिकार में हासिल हर साल का विवरण बताते हुए श्री नेगी ने कहा कि वर्ष 2015 में हाईकोर्ट ने 213 जनहित याचिकाएं सुनी। वर्ष 2016 से 2019 तक 782 जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई।
“इसका सीधा सीधा सा मतलब है कि लोगों की परेशानियां उत्तराखंड सरकार के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सुनी ही नहीं।”
आरटीआई के जवाब के अनुसार उत्तराखंड हाई कोर्ट में 11300 मुकदमें सिंगल बेंच को रेफर किए गए हैं। अर्थात लगभग 2100 मुकदमे हर साल पिछले 5 सालों में रेफर किए गए हैं।
सर्विस मैटर की लगभग 15337 याचिकाएं हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में है।
वर्ष 2017 से 19 के बीच सबसे ज्यादा पिटिशन दायर की गई हैं। इस बीच 10284 पिटीशन सरकारी और प्राइवेट लोगों ने दायर की है।
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि आखिर इतने सारे लोग हाईकोर्ट क्यों जा रहे हैं !
क्या सरकार ने सुनना बिल्कुल बंद कर दिया है !
भाजपा नेता दूसरा ही राग गाते हैं। वह कहते हैं कि ज्यादा मुकदमों का मतलब है कि लोग अपने अधिकारों के प्रति ज्यादा जागरूक हो रहे हैं।
भाजपा के प्रवक्ता देवेंद्र भसीन कहते हैं कि हाईकोर्ट में मुकदमों की संख्या सरकार की कार्यकुशलता का पैमाना नहीं हो सकती। कानूनी रास्ते देश में सभी के लिए उपलब्ध हैं।”