सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के परिसरों के गठन के समय पिथौरागढ़, चंपावत और बागेश्वर के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालयों को विश्वविद्यालय कैंपस घोषित किया गया था। उस दौरान महाविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों और कर्मचारियों से विकल्प मांगे गए थे कि वे विश्वविद्यालय में रहना चाहते हैं या फिर महाविद्यालय में। जिन कर्मचारियों ने विश्वविद्यालय का विकल्प चुना, उनमें से चयन के लिए विश्वविद्यालय व निदेशालय की संयुक्त स्क्रीनिंग कमेटी ने साक्षात्कार लेकर चयन किया था।
चयनित शिक्षकों में से बहुत कम ने विश्वविद्यालय में ज्वाइन किया, जबकि बाकी को कुछ समय बाद राज्य के अलग–अलग महाविद्यालयों में समायोजित कर दिया गया। इसके बाद पिथौरागढ़ परिसर से कुल 29 कर्मचारी धारणाधिकार अवधि में उच्च शिक्षा विभाग में वापस आ गए। इनमें से 14 सहायक प्राध्यापक ऐसे थे जिनके लिए विभाग में कोई पद उपलब्ध नहीं था। ये सभी 14 शिक्षक पिछले 16 महीनों से बिना पदों के ही विभाग में कार्ययोजित चल रहे थे।
इसी मुद्दे पर 11 नवंबर 2025 को सचिव उच्च शिक्षा रंजीत सिन्हा की अध्यक्षता में सचिवालय में बैठक हुई। बैठक में उच्च शिक्षा निदेशक तथा सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. देवेंद्र सिंह बिष्ट भी मौजूद रहे। बैठक में निर्णय लिया गया कि पिथौरागढ़ कैंपस से वापस आए बीएड के 6, बीबीए के 2, एमबीए के 4 और संगीत विषय के 2 सहायक प्राध्यापकों को विभाग में कोई पद उपलब्ध न होने की स्थिति में पुनः पिथौरागढ़ परिसर में समायोजित किया जाएगा।
इसी के साथ पिथौरागढ़ महाविद्यालय के 17 शिक्षणेत्तर कर्मियों—जिनमें 6 उपनल कर्मी भी शामिल हैं—को भी पुनः कैंपस में समायोजित करने का निर्णय लिया गया है। सभी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं और अब शासनादेश जारी किया जाना बाकी है।
हालांकि, खास बात यह है कि किसी भी कर्मचारी ने विश्वविद्यालय परिसर में जाने का विकल्प नहीं दिया था। ऐसे में कर्मचारियों द्वारा इस आदेश को न्यायालय में चुनौती दिए जाने की पूरी संभावना है।
उपनल कर्मियों की स्थिति अलग है—उन्हें परिसर में ही जाना होगा, अन्यथा उन्हें उपनल के मूल विभाग में वापस भेज दिया जाएगा, क्योंकि वे उपनल द्वारा ही प्रायोजित हैं।


