बीते 19 वर्षों में उत्तराखंड में भ्रष्टाचार अपनी जड़ें इतनी मजबूत कर ली है कि अब भ्रष्टाचारी न सिर्फ बेखौफ घूम रहे हैं, बल्कि जिस प्रकार हाईकोर्ट के जज शरद शर्मा का असल आदेश बदलकर कर फर्जी आदेश हाईकोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया, वह वास्तव में इस प्रदेश के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
कल तक मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक या आईएएस व आईपीएस अधिकारी ही भ्रष्टाचार के आसपास दिखते थे, किंतु जिस प्रकार हाईकोर्ट के न्यायाधीश का आदेश बदलकर फर्जी आदेश सरकारी वेबसाइट में अपलोड किया गया है, वह दर्शाता है कि उत्तराखंड को अब भगवान भी नहीं बचा सकता।
नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने गंभीर जांच विजिलेंस डिपार्टमेंट को सौंपी है, जिसमें हाईकोर्ट के न्यायाधीश शरद शर्मा का आदेश बदलकर फर्जी आदेश अपलोड किया गया है। पुलिस अधीक्षक उत्तराखंड सतर्कता अधिष्ठान नैनीताल इसकी जांच कर रहे हैं। यह जांच माननीय न्यायालय के आदेश से छेड़छाड़ परिवर्तन कर अन्यथा प्रयोग में लाने के संदर्भ में की जा रही है। 20 दिसंबर 2019 को पुलिस अधीक्षक उत्तराखंड सतर्कता अधिष्ठान के द्वारा एक लीगल नोटिस इस मामले के पीडि़त अनिल कुमार जोशी को भेजा गया।
अनिल किशोर जोशी टिहरी जनपद के मलेथा में एक किसान है, जो वर्षों से वहां पर ग्रामीण लोगों की जमीन किराए पर लेकर वहां कलम लगाकर लाखों की पौध बेचने का काम करते हैं। अनिल जोशी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर तब ग्रहण लगा, जब भारत सरकार ने ऋषिकेश से कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के लिए मलेथा की जमीन का अधिग्रहण का प्रस्ताव आगे बढ़ाया। जिन ग्रामीणों ने अनिल जोशी को अपनी जमीन किराए पर या लीज पर दी थी, उन्होंने बाकायदा एफिडेविट देकर स्पष्ट कर दिया था कि जमीन के मालिक वे हैं, जबकि पेड़ों के मालिक अनिल किशोर जोशी हैं।
कायदे से जमीन का मुआवजा ग्रामीणों को मिलना था और पेड़ों का अनिल जोशी को, किंतु रेलवे विभाग के शातिर लोगों ने अनिल किशोर जोशी की बजाय ग्रामीणों के खाते में ही पैसे डाल दिए।
अनिल जोशी की सतर्कता से जब अनिल जोशी हाईकोर्ट गए तो उन्हें प्रारंभिक तौर पर कुछ राहत मिली, किंतु रेलवे द्वारा किए गए फर्जीवाड़े की जद में अनिल किशोर जोशी आ गए।
उत्तराखंड के उद्यान विभाग ने शहतूत के एक वृक्ष, जिसे मातृ वृक्ष माना गया है, का मुआवजा 34०० रुपए प्रति पेड़ घोषित किया है। उद्यान विभाग के मानकों के अनुरूप पेड़ों का भुगतान न करना पड़े, इसके लिए महाभ्रष्ट अधिकारियों ने ऐसा रास्ता निकाला, जो संभव ही नहीं था। यह भारतवर्ष के इतिहास का पहला उदाहरण होगा, दूसरा उदाहरण पाकिस्तान का बताया जाता है, जिसमें वहां के प्रधानमंत्री नवाब शरीफ ने हाईकोर्ट के फैसले को कूटरचना से बदल दिया था, जिसकी एवज में अब नवाज शरीफ पाकिस्तान के अपराधी हैं।
ऋषिकेश से कर्णप्रयाग रेल लाइन के ड्रीम प्रोजेक्ट को चलाने वाले रेलवे के मुख्य परियोजना प्रबंधक व उनके कारिंदे अब जांच के दायरे में आ चुके हैं।
अनिल किशोर जोशी द्वारा भूमि दरों से 4 हेक्टेयर भूमि जो लीज पर ली गई थी, मैं उगाए शहतूत के मातृ वृक्ष का मुआवजा अनिल किशोर जोशी को न देना पड़े, इसके लिए रेलवे के अधिकारियों ने न्यायालय के कुछ लोगों के साथ मिलकर नैनीताल हाईकोर्ट की वेबसाइट पर एक ऐसा आदेश अपलोड करा दिया, जो मूल आदेश से मेल नहीं खाता था। इन अधिकारियों ने आदेश के न सिर्फ बिंदु बदल डाले, बल्कि आदेश की तारीख तक बदल डाली। 6 मई के निर्णय को 3 मई दिखा दिया गया, जबकि आदेश 6 मई का था। मामला तब पकड़ में आया, जब अनिल किशोर जोशी के हाथ में आदेश की सत्यापित प्रति थी और न्यायालय की वेबसाइट पर फर्जी आदेश अपलोड हो चुका था।
अनिल किशोर जोशी के अधिवक्ता ने जब मामला आदेश देने वाले न्यायाधीश के सामने रखा कि उनका कौन सा वाला आदेश सही है तो न्यायाधीश शरद शर्मा ने अपने ही आदेश का एक और फर्जी आदेश की कॉपी देखकर मामला नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को अग्रसारित कर दिया। मुख्य न्यायाधीश ने विजिलेंस को तत्काल इस मामले की जांच का आदेश दे दिया है।
देखना है कि उत्तराखंड का विजिलेंस विभाग कब तक इस हाईप्रोफाइल मामले का पटाक्षेप कर दूध का दूध और पानी का पानी करता है।
इस पूरे मामले में रेल विभाग के आला अधिकारियों के साथ कुछ अधिवक्ता और न्यायालय के कुछ लोगों के शामिल होने की बात सामने आ रही है।
इस पूरे मसले में किसान अनिल किशोर जोशी का कहना है कि उन्हें न्यायालय पर पूरा यकीन है कि उन्हें न्याय मिलेगा और न्यायालय के आदेश कूटरचना से बदलने वाले लोग सलाखों के पीछे जाएंगे।
अनिल किशोर जोशी का कहना है कि वे 3 जनवरी को विजिलेंस को अपना जवाब देने जाएंगे। इस संदर्भ में उनकी पुलिस अधीक्षक सतर्कता से बात हो चुकी है।
जोशी ने न्याय पाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी सारी जानकारियां देते हुए पत्र लिखा है। देखना है कि उन्हें न्याय मिलता है या नहीं!