लाॅक डाउन छूट के समय और चार पहिया वाहन प्रतिबंध की सब तरफ आलोचना।
प्रधानमंत्री के लक्ष्मण रेखा क्रॉस न करने के बयान के बाद उत्तराखंड को प्रयोगशाला बना रही सरकार ने अब घोषणा की है कि आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति का समय अब 7:00 बजे से 1:00 बजे तक होगा किंतु इसमें जो तुगलकी बात कही गई है वह यह है कि सड़क पर चार पहिया वाहन नहीं चलेंगे और जो दो पहिया वाहन चलेंगे उसमें सिर्फ एक व्यक्ति बैठेगा। इसके बाद बावजूद सरकार इस नियम का भी पालन कराने में असमर्थ रही और आज बारिश के कारण चारपहिए वाहन खूब चल रहेे हैं और उन पर कोई रोक भी नही है।
सरकार ने पहले आवश्यक सेवाओं के लिए 7:00 से 10:00 का समय तय किया, लेकिन उसके बाद सब्जी मंडियों से लेकर राशन की दुकानों में भारी भीड़ लगने लगी।
चार पांच दिन मे सोशल डिस्टेंसिंग को कायम करने में पूरी तरह से नाकाम रही सरकार ने डिस्टेंसिंग के अन्य कठोर उपाय अपनाने के बजाय बाजार में घूमने का ही समय बढ़ा दिया है।
जाहिर है कि इससे अंजाम से बेपरवाह लोग और भी अधिक सड़कों पर घूमने लग गये। दूसरे राज्यों में सोशल डिस्टेंसिंग को बनाने के लिए एक-एक मीटर की दूरी पर चूने से गोलों तथा लाइनों के निशान बनाए जा रहे हैं और पब्लिक को उन्हें फॉलो करने के लिए कहा जा रहा है।
उत्तराखंड में सरकार ने पब्लिक को उनके हाल पर छोड़ दिया है। हां इतना जरूर किया है कि लॉक डाउन की छूट के इस समय के बाद बाहर मिलने वाले लोगों पर लाठीचार्ज शुरू कर दिया है।
पब्लिक ही विरोध में
सरकार के पास मोहल्ला स्तर तक कंट्रोल की दुकानें हैं अन्य राज्यों में भी घर-घर तक सामान पहुंचाया जा रहा है वही उत्तराखंड में सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए लॉक डाउन मे ढील दे दी है।
खरीदारी का समय 1:00 बजे तक बढ़ाने का पब्लिक ही विरोध करने लगी है एक तरफ अन्य राज्यों में सोशल डिस्टेंस बनाने के लिए देखते ही गोली मारने के आदेश हो रहे हैं, तो वहीं उत्तराखंड सरकार और ढील दे रही है।
जाहिर है कि यह समय ढील देने का नहीं बल्कि कर्फ्यू को और टाइट करने का है। आने वाला एक सप्ताह बेहद संवेदनशील है।
भले ही उत्तराखंड को अभी कोरोना के फर्स्ट फेस में गिना जा रहा हो लेकिन अन्य राज्यों से आ रहे लोगों की अभी भी कोई कारगर स्क्रीनिंग नहीं हो पा रही है। कल रात ही गाजीपुर से उत्तर प्रदेश सरकार की मदद से ऋषिकेश लौटे उत्तराखंड के सैकड़ों लोग रात को ही अपने-अपने गंतव्य की ओर पैदल निकल गए लेकिन सरकार ने उनकी सुध नहीं ली।
सरकार की लापरवाही का खामियाजा कितना भारी पड़ेगा इसकी समीक्षा का भी बाद में कोई मतलब नहीं रह पाएगा। इनकी सहायता के लिए सरकार तीन बार अलग-अलग नंबर जारी कर चुकी है और तीनों बार इन नंबरों से सहायता प्राप्त करने में लोग नाकाम रहे।
दूसरी ओर सरकार ने एक दोपहिया वाहन पर एक ही व्यक्ति को अनुमन्य किया है तथा चार पहिया वाहन को प्रतिबंधित किया है। यदि यही दो नियम आज के बाद भी जारी रहते हैं तो लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के कोई मायने नहीं रह जाएंगे।
सरकार के इन दो ताजा निर्णयों के बाद जनता में और भी अधिक आलोचना शुरू हो गई है। लोग मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से निराश होकर अब उनके “राय बहादुरों” को खोजने लगे हैं कि आखिर मुख्यमंत्री को इस तरह की सलाह दे कौन रहा है !
आज शुक्रवार को नमाज के वक्त भी सरकार सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन करने में असफल सिद्ध हो सकती है।
चार पहिया वाहनों को प्रतिबंधित करने की बात किसी के गले नहीं उतर रही है। जाहिर सी बात है जो व्यक्ति अपने किसी बीमार को अपने दोपहिया वाहन से किसी डॉक्टर के पास ले जाना चाहता है उसके लिए अब ऐसा करना संभव नहीं होगा। आवश्यक सेवाओं में दिन रात काम करने वाले डॉक्टर और बैंक कर्मचारी जोकि अमूमन चार पहिया वाहन से ही आते हैं और जिनके पास बहुत कम मात्रा में दो पहिया वाहन हैं, वह लोग कैसे ड्यूटी पर आएंगे !
सरकार द्वारा चार पहिया वाहनों पर प्रतिबंध की बात कहने के बाद आवश्यक सेवाओं में लगे कर्मचारी और अधिकारी कैसे काम करेंगे, यह बहुत गंभीर मसला है।
स्वास्थ्य सेवाओं में लगी एंबुलेंस गाड़ियां और मेडिकल स्टोर के लोग किस प्रकार अपनी-अपनी मेडिकल स्टोर के लिए दवाइयां लाएंगे, सरकार ने यह भी स्पष्ट नहीं किया है।
कुल मिलाकर आनन-फानन में चार पहिया वाहन रोकने के फैसले के बाद उहापोह की स्थिति पैदा हो गई है।
संभवतः समय बढ़ाने के पीछे यह उद्देश्य रहा हूं कि लोग भीड़ न लगाएं और आराम से खरीदारी करें किंतु इससे फ़ालतू घूमने वालों की बन आई है।
वही चार पहिया वाहन सड़क पर खूब घूम रहे हैं इन पर कोई सख्ती नहीं है।