उत्तराखंड में मनरेगा मजदूरों की संख्या 54% घटी, ई-केवाईसी बनी बड़ी चुनौती

उत्तराखंड में मनरेगा पर निर्भर श्रमिकों की संख्या में पिछले एक वर्ष के भीतर तेज गिरावट दर्ज की गई है। लेटेस्ट इंडिया लेबर इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में मनरेगा कर्मियों की संख्या 54.3 प्रतिशत तक कम हो गई है, जो पूरे देश में सबसे अधिक गिरावट है।

इसके उलट झारखंड इस अवधि में सबसे आगे रहा, जहां 56.4 प्रतिशत मनरेगा श्रमिक बढ़े। वहीं 130.5 प्रतिशत की बढ़त के साथ मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा।

ई-केवाईसी ने भी घटाई सक्रिय मजदूरों की संख्या

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा कर्मियों के लिए ई-केवाईसी अनिवार्य किए जाने का असर भी श्रमिकों की सक्रियता पर पड़ा है। बताया गया है कि 46% से अधिक सक्रिय मजदूर अभी तक अपनी ई-केवाईसी पूरी नहीं कर पाए, जिससे कार्यबल के आंकड़ों में गिरावट दिखी।

मानव दिवस सृजन भी घटा

अप्रैल से सितंबर 2024 के बीच देशभर में 132.5 करोड़ मानव दिवस उत्पन्न हुए, जबकि 2024–25 के इसी अवधि में यह संख्या 150.1 करोड़ थी। इससे पहले 2023–24 में यह आंकड़ा 178.1 करोड़ रहा था। यानी 2022–24 के बाद एक बार फिर मानव दिवस में कमी दर्ज की गई है।

आने वाले वर्ष में भी मिश्रित रुझान

रिपोर्ट कहती है कि 2024–25 में मनरेगा जॉब कार्डधारकों में वृद्धि जरूर हुई, लेकिन 2025–26 में केवल आठ राज्यों में बढ़ोतरी दिखी, जबकि 11 राज्यों में संख्या घटी।

2024–25 में 91 लाख मजदूर हटे और 2.22 करोड़ नए जुड़े। इसी तरह अप्रैल से सितंबर के बीच 90 लाख नए मजदूर जुड़े, लेकिन 11.2 लाख हटाए गए।

सरकार का कहना है कि मनरेगा के तहत कौशल और अन्य योजनाओं के माध्यम से परिवारों को वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास जारी हैं।

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