कृष्णा बिष्ट
सोशल मीडिया पर कल दिन भर लोग मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, मेयर सुनील उनियाल गामा सहित तमाम अधिकारियों और आम जनता की उन फोटोग्राफ्स के साथ टिप्पणियां करते रहे, जिसमें सभी लोग पॉलिथीन और सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ रैली में सड़कों के किनारे कई किलोमीटर लंबी प्लास्टिक की पन्नी की बैरिकेडिंग के पीछे खड़े थे।
इसमें कोई शक नहीं कि पूरे सरकारी तंत्र और स्कूली बच्चों को झोंककर कर बनी 50 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला ने देश की सबसे लंबी मानव श्रृंखला होने का रिकॉर्ड बना लिया हो, लेकिन इसमें कई लोग राजनीतिक या किसी अन्य एजेंडे से दूर सिर्फ पर्यावरण के लिए भी शामिल हुए थे।
ऐसे में जिस सिंगल यूज़ प्लास्टिक के खिलाफ संकल्प के रूप में यह रैली निकाली गई थी, उस पर यदि प्लास्टिक से बचने का संकल्प वाकई होता तो बैरिकेडिंग के रूप में प्लास्टिक की पन्नी लगाने से बचा जा सकता था।
इन सबके बावजूद अन्य सभी खबरों के अलावा एक छोटी सी खबर तो यह बन ही सकती थी कि इस श्रृंखला में प्लास्टिक की बैरिकेडिंग का प्रयोग क्यों किया गया !! किंतु सभी अखबारों की सुर्खियों से इस पर एक लाइन तक ना होना इस बात का सबसे बड़ा कारण और परिचायक है कि जनता से अखबारों की दूरियां बढ़ती जा रही है।
सोशल मीडिया पर पब्लिक जिन विषयों को खबर मानती हो जरूरी नहीं कि दूसरे दिन वह खबर अखबारों की सुर्खियों में भी मिले।
इसलिए खबरों की भी दो कैटेगरी बनती जा रही है! जिसके बारे में पब्लिक को भी अब समय के साथ साफ होता जा रहा है कि कुछ खबरें ऐसी होती हैं जो अखबार वाले अपने स्वार्थों के कारण नहीं छापते और चुप्पी साध लेते हैं।
अब जनता को अखबारों का चरित्र ठीक-ठीक समझ में आने लगा है और जनता भी अब खबरों के लिए अखबारों की मोहताज नहीं रह गई है, बल्कि जहां पर अखबार चुप रहते हैं, वहां पर समाज सोशल मीडिया के माध्यम से मुखरता से अपनी आवाज उठा रहा है।
आने वाले समय में सोशल मीडिया की खबरों और अखबारों की खबरों के बीच बढ़ती यह संवाद शून्यता (इंफॉर्मेशन गैप) अखबारों की विश्वसनीयता और प्रासंगिकता के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है।