राजिक खान ,गिरीश चंदोला
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उत्तराखंड राज्य में मार्च के महीने में कई जगह रिवर ट्रेनिंग के पट्टे आवंटित हुए थे जो कि आधार मूल्य से लगभग 7 गुना महंगे दामों में बिके थे जिससे अच्छा खासा राजस्व भी सरकार को मिला है।
सीमांकन के नाम पर भी प्रशासन ने महज खानापूर्ति ही की है जो कि नदी किनारे चार पत्थरों पर लाल पेन्ट मार कर ही सीमांकन पर इतिश्री कर दी गई है जबकि नियम अनुसार खनन पट्टों के चिन्हीकरण और सीमांकन के समय पांच विभागों की एक कमेटी उप जिलाधिकारी की अध्यक्षता में सीमांकन का कार्य करती है जिसमें खनन विभाग, वन विभाग,राजस्व विभाग,भूतत्व विभाग और पर्यावरण विभागों की उपस्थिति में सीमांकन की प्रक्रिया होती है।
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पूरे प्रदेश में रीवर ट्रेनिंग के पट्टों की आड़ में जमकर नदियों से अवैध खनन का कार्य भारी भारी मशीनों की मदद से जैसे पोकलैंड, एचएम,जेसीबी की मदद से किया जा रहा है। नदियों में बड़े-बड़े गड्ढे बनाकर पूरे 24 घंटे रात और दिन खनन का कार्य किया जा रहा है और यह खनन कार्य पट्टे की सीमाओं के अंदर न करके सीमाओं से बाहर किया जा रहा है।
कोटद्वार में तो हाल इतना बुरा है कि शहर का लॉक डाउन सुबह 7:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक खुला हुआ है लेकिन खनन माफिया के ओवरलोड डंपर रात भर सड़कों पर दौड़ रहे हैं। पुलिस ने चुप्पी साध रखी है। एसडीएम ने आंखें बंद की हुई है। कोटद्वार में पत्रकार राजीव गौड़ द्वारा इस पर खबरें दिखाने के बाद प्रशासन ने एक चिट्ठी जारी करने की तकलीफ जरूर उठाई है लेकिन हकीकत में कितना अनुपालन होगा यह एक-दो दिन में ही पता चल जाएगा।
लॉक डाउन का पूरा फायदा खनन माफिया जमकर उठा रहे है।,स्थानीय प्रशासन मूकदर्शक बना बैठा है और खनन माफिया चांदी कूट रहे हैं।
जबकि नियम यह है कि किसी भी तरह के खनन कार्य की अनुमति प्रातः 5:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक ही होती है और नदियों से चुगान के लिए पोकलैंड, एच.एम जैसी भारी मशीने पूर्णतया प्रतिबंधित है।
इसमें चाहे बात करें चमोली के थराली की या फिर बात करें कोटद्वार की और या फिर बात करें इसमें देहरादून की आसन नदी की सभी जगह खनन माफियाओं की तूती बोल रही है।
खनन माफिया जमकर रिवर ट्रेनिंग के पट्टों की आड़ में सभी मानकों की अवहेलना कर अवैध खनन कर रहे हैं जिसमें खनन माफिया सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगाकर अपनी चांदी कूट रहे है।
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शासन प्रशासन और यहां तक कि पूरी सरकार खनन माफियाओं के आगे नतमस्तक हैं कोई नियम कानून इन खनन माफियाओं पर लागू नहीं है।
आखिर किसका राजनीतिक संरक्षण इन खनन माफियाओं को प्राप्त है और क्यों सभी जगह स्थानीय प्रशासन मूकदर्शक बना बैठा है।