सावधान,आर.टी.ओ ऑफिस की मिलीभगत से कही आपने भी तो नही करा लिया फ़र्ज़ी बीमा !
फ़र्ज़ी बीमा करने वालों से सावधान: देहरादून आरटीओ ऑफिस में फैला भ्रष्टाचार थमने का नाम ही नही ले रहा। उसकी जड़ें इतनी मज़बूत हो चुकी है कि जो कोई भी इस भ्रष्टाचार को खत्म करने की पहल करता है भ्रष्टाचारियों का शिकार हो जाता है।
ताज़ा उदाहरण है सतर्कता विभाग के डी.आई.जी पद की शान बढ़ाने वाले और आरटीओ ऑफिस में फैले भ्रष्टाचार खुलासा कर ठोस कार्यवाही को अमल में लाने वाले के.कृष्ण कुमार और आरटीओ ऑफिस में फैले भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाला ट्रैक्टर मालिक ज़ुल्फ़िकार।
डी.आई. जी साहब का तबादला करा दिया गया और शिकायतकर्ता को किसी झूठे केस में फ़ंसाने की साज़िश आरटीओ के भ्रष्टाचारियों ने कर डाली। मगर ये लोग ख़ुद ही अपने बुने जाल में फसते नज़र आ रहे हैं।
आरटीओ ऑफिस में अधिकारियों के सीट पर बैठकर काम करने वाले दलालो का खुलासा होने के मामले में एक नया एपिसोड जुड़ा है।
जिन लोगो की गिरफ्तारी उस मामले में हुई थी आरटीओ ऑफिस उन्ही के पक्ष में खड़ा होकर शिकायतकर्ता को डराने,धमकाने और झूठे केस में फ़सवाने के मामले में खुद ही फंसता नज़र आ रहा है।
आरटीओ आफिस की तरफ से भ्रष्टाचार का खुलासा करवाने वाले शिकायतकर्ता ट्रैक्टर मालिक ज़ुल्फ़िकार को आरटीओ ऑफिस ने 31 जनवरी को एक कारण बताओ नोटिस जारी करके पूछा था कि ट्रैक्टर के रजिस्ट्रेशन के लिए जमा किया गया बीमा उनकी जाँच में फ़र्ज़ी पाया गया है,जवाब दो ! मगर ट्रैक्टर मालिक ने तुरंत अपना जवाब आरटीओ ऑफिस को भेजते हुए कहा कि उसने आरटीओ ऑफिस के कर्मचारियों के कहने पर ही वहीं परिसर में मौजूद बीमा एजेंट से बीमा कराया था और आरटीओ स्टाफ ने उसे सही पाते हुए ही ट्रैक्टर का रजिस्ट्रेशन जारी किया। ये उसी दौरान की बात है जब विजिलेंस विभाग की छापेमारी आरटीओ ऑफिस पर हुई, ट्रैक्टर मालिक ने इस बात से अनभिज्ञता व्यक्त की है कि उसे आरटीओ ऑफिस में मौजूद बीमा एजेंट ने कैसे फ़र्ज़ी बीमा दे दिया और कैसे आरटीओ स्टाफ ने उसे स्वीकार कर लिया!
इन सब बिन्दुओं के मद्देनज़र शिकायकर्ता ने बीमा रैकेट होने की आशंका जताते हुए आरटीओ देहरादून से माँग की है कि वर्ष 2019 में हुए सभी बीमा पॉलिसियों की गहराई से जाँच की जाए और आरटीओ ऑफिस में सक्रिय दलालों और बीमा एजेंट्स के रिकॉर्ड खंगाले जाएं।
साथ ही साथ शिकायकर्ता ने इस नोटिस को अपने विरुद्ध आरटीओ की साजिश बताया। शिकायकर्ता ज़ुल्फ़िक़ार ने स्टेट विजिलेंस विभाग और देहरादून के एस.एस.पी.अरुण मोहन जोशी से उच्च स्तरीय जाँच की माँग करते हुए फ़र्ज़ी बीमा रेकैट और आरटीओ की मिलीभगत का खुलासा करने की प्रार्थना की है।
दूसरी तरफ देहरादून पुलिस ने आरटीओ के आसपास वाले कुछ बीमा एजेंट्स से लंबी पूछताछ की है और लैपटॉप व कुछ मोहरे भी अपने कब्जे में ले ली है।
देहरादून पुलिस का दावा है कि जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही है, मगर दूसरी ओर आरटीओ विभाग इस मामले में लीपापोती करते नज़र आ रहा है और इसे सिर्फ़ आरटीओ में भ्रष्टाचार का खुलासा करवाने वाले शिकायकर्ता के ट्रैक्टर के बीमे तक ही सीमित रखना चाह रहा है।
सूत्रों के मुताबिक फ़र्ज़ी बीमे के इस रैकेट का सिलसिला काफी पुराना है और अगर जीरो टॉलरेंस की सरकार गंभीरता दिखाते हुए पूरे प्रदेश में पिछले 2-3 सालों के बीमे का इतिहास खंगाल ले तो प्रदेश व्यापी बहुत बड़ा खुलासा हो सकता है।
हालांकि ट्रैक्टर मालिक ज़ुल्फ़िकार की शिकायत पर विजिलेंस विभाग बहुत गंभीर है और वो इसकी गहराई से जांच पड़ताल करते हुए तह में पहुँचना चाहता है ताकि बीमा रैकेट का खुलासा हो सके और देहरादून पुलिस भी इस मामले में शिकायतकर्ता ज़ुल्फ़िकार की शिकायत पर जांच में जुटी है।
अब देखना ये है कि बीमा रैकेट की तपिश का असर कहा कहा और कैसे पड़ता है या फिर सतर्कता विभाग के डीआईजी के कृष्ण कुमार की तरह ईमानदार पुलिस अधिकारियों को किनारे करते हुए जीरो टॉलरेंस की सरकार भ्रष्टाचारियों को ऐसे ही खुली छूट दिए रखेगी और आरटीओ आफिस में फैले भ्रष्टाचार का खुलासा करवाने वाले शिकायतकर्ता ऐसे ही ठगे जाते रहेंगे।
कैसे होता है ये बीमे का फर्जीवाड़ा
दरअसल पूरा मामला है वाहनों के रजिस्ट्रेशन के लिए अनिवार्य रूप से होने वाले बीमे का,जब कोई भी व्यक्ति अपने वाहन का रजिस्ट्रेशन कराने या रिन्यूअल कराने आरटीओ ऑफिस जाता है तो उसे बीमा पॉलिसी पेश करनी होती है।
ज़्यादातर लोग बीमा पॉलिसी वाहन डीलर से कराकर पहुँचते हैं। लेकिन कम पढ़े लिखे लोग या रजिस्ट्रेशन रिन्यूअल के वक़्त ज़्यादातर लोग सीधे आरटीओ ऑफिस पहुँचते हैं और यहीं से शुरू होता है बीमा रैकेट,आरटीओ के भ्रष्टाचारी उन्हें तत्काल बीमा पॉलिसी लाने को कहते है और साथ ही साथ सलाह दे देते हैं ,” इनसे बीमा करा लो”, यानी एक बीमा एजेंट या उसका दलाल पहले से ही वहाँ मौजूद रहता है, जो बीमा कराने वाले को आरटीओ परिसर के बाहर अपने ठिकाने पर लेकर जाता है और उन्हें सस्ते में भारी छूट के साथ बीमा पॉलिसी देने का लालच देता है,वाहन स्वामी सस्ते के लालच में या फिर जल्दबाजी में इनका शिकार हो जाते है,जो पॉलिसी 20 हज़ार या उससे ज़्यादा प्रीमियम पर जारी होती है उसे ये दलाल महज़ 5 या 8 हज़ार में वाहन स्वामी को दे देते हैं जो वास्तव में फ़र्ज़ी होती है, मगर हूबहू असली जैसी,आरटीओ में रजिस्ट्रेशन करने वाले स्टाफ की जानकारी में होने के बावजूद वाहन का रजिस्ट्रेशन तत्काल जारी कर दिया दिया जाता है।
यानी मौका और माहौल देखकर ये जांच परख कर लेते हैं कि उनका ग्राहक कितना बेवकूफ है !,फिर ये दलाल तय करते हैं कि वाहन स्वामी को कौन सी पॉलिसी देनी है ,ये सब बीमा एजेंट,दलाल और आरटीओ ऑफिस के भ्रष्टाचारियों की मिलीभगत से होता है।