भारत सरकार राज्य सरकार द्वारा केन्द्रीय व राज्य कर्मचारियों और सेवानिवृत कार्मिकों के 1 जनवरी 2020 से 30 जून 2021 तक महंगाई भत्ते पर एकतरफा रोक के निर्णय द्वारा सरकारी कामगारों की अनदेखी और अवहेलना की गयी है।
केंद्र सरकार की आदेश के साथ ही उत्तराखंड के वित्त सचिव अमित सिंह नेगी ने भी महंगाई भत्ते की अतिरिक्त किश्त पर रोक लगा दी है। अमित नेगी ने कहा है वर्तमान में अनुमन्य महंगाई और महंगाई राहत की दरों को जुलाई 2021 तक स्थगित किया जाता है। यदि राज्य सरकार द्वारा 1 जुलाई 2021 से देय महंगाई भत्ते और महंगाई राहत की भावी क़िस्तों को जारी करने का निर्णय लिया जाता है तो 1 जनवरी 2020 1 से 1 जुलाई 2020 और 1 जनवरी 2021 से प्रभावी महंगाई भत्ते और महंगाई राहत की दरों को भावी प्रभाव से लागू कर दिया जाएगा उन्हें 1 जुलाई 2021 से प्रभावी संचई संशोधित दर में सम्मिलित कर लिया जायेगा।
राज्य सरकार का आदेश
1 जनवरी 2020 से 30 जून 2021 तक की अवधि का कोई बकाया भुगतान नहीं किया जाएगा।
गौरतलब है कि वर्तमान में हमारा देश कोरोना CVID 19 के भीषण महामारी से ग्रसित है और केन्द्रीय तथा राज्य कर्मचारी और सरकारी विभागों के कर्मचारी अपने जीवन की परवाह किए बिना अपने अतिआवश्यक कार्यो को पूरा कर रहे हैं।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय का आदेश
सरकारी क्षेत्र के अधिकांश विभाग अतिआवश्यक श्रेणी मे घोषित है जैसे : स्वास्थ्य , पोस्टल , रक्षा , रेल्वे इत्यादि / भारत व राज्य सरकार के स्तर पर केंद्रीय कर्मचारियों के बेहद महत्वपूर्ण विषय पर सरकार द्वारा तरफा और मनमाना निर्णय लिया गया है, जिससे कर्मचारी और पेंशनभोगी बुरी तरीके से प्रभावित हो रहे हैं।
सरकार द्वारा स्वयं गठित राष्ट्रीय परिषद संयुक्त परामर्शदात्री समिति और किसी भी मान्यता प्राप्त कर्मचारी महासंघों के साथ भी कोई संवाद नहीं किया गया और न ही उनको विश्वास मे लिया गया , जो कि भारतीय संविधान के सहभागिता के प्रबंधन के धारा की भी अनदेखी है।
केन्द्रीय कर्मचारी कामगार समन्व्यव समिति के जगदीश चंद्र छिमवाल के सचिव जगदीश चंद्र छिमवाल ने सरकार से मांग की है कि “सभी कर्मचारी और महासंघ इस बात से सहमत है की भारतीय अर्थव्यवस्था गहरे संकट मे है और राष्ट्रहित मे हम पूरे लगन से अपने कर्तव्यों का पालन भी कर रहे हैं ताकि हमारा देश इस गहरे संकट से विजयी हो कर निकले , लेकिन बार बार ऐसा लग रहा है कि सरकार द्वारा कोरोना संकट से निपटने मे सिर्फ सरकारी उद्योग के कर्मचारियों के ऊपर ही पूरा आर्थिक बोझ डाल रही है जबकि पूरा केन्द्रीय और राज्य कर्मचारी अपने वेतन से एक और दो दिन का दान भी कर चुका है और शेअर बाज़ार आधारित पेंशन फ़ंड आज भारी नुकसान मे है।”
नई पेंशनभोगी कर्मचारी सामाजिक सुरक्षा के संकट मे हैं और लगातार निजी सुरक्षा किट की कमी और जीवन के जोखिम के बाबजूद अपनी सरकारी कर्तव्यों का पालन भी कर रहे हैं, वेतन के बड़े हिस्से की लगातार कटौती इनके जीवन और परिवार को बेहद प्रभावित करेगी और यह उनके मनोबल को भी प्रभावित करेगी। कर्मचारियों ने सरकार से आग्रह किया है कि सरकार तत्काल वित्त मंत्रालय के आदेश को लंबित करते हुए पुनर्विचार करे।”