सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के मामले में बड़ा फैसला सुनाया हैं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के संबंध में समाचार लिखने पर पर्वतजन के संपादक शिवप्रसाद सेमवाल के खिलाफ दर्ज एफआइआर को रद्द कर दिया।
लेख से सार्वजनिक सद्भाव प्रभावित होने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज किया गया था। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि एफआइआर में लगाए गए आरोप अपीलकर्ता के खिलाफ संज्ञेय अपराध के जरूरी घटकों को खुलासा नहीं करते हैं।
शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के जुलाई 2020 के आदेश के खिलाफ पर्वतजन के संपादक शिव प्रसाद सेमवाल की दायर अपील पर अपना फैसला सुनाया। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने आइपीसी की धारा 153ए के तहत अपराधों के लिए दर्ज एफआइआर को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था।
पीठ ने कहा कि आइपीसी की धारा 153ए में स्पष्ट है कि इस प्रकार अपराध का गठन करने के लिए अभियोजन पक्ष को यह स्पष्ट करना चाहिए कि आरोपित के लिए ‘बोले गए’ अथवा ‘लिखे’ शब्दों ने धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच मनमुटाव, या दुश्मनी पैदा हुई। अपमानजनक समाचार लेख को ध्यान से पढ़ने पर स्पष्ट है। कि लेख में किसी भी समूह या लोगों के समूह का कोई संदर्भ नहीं है।
इस पूरे मामले में शिवप्रसाद सेमवाल ने भी सोशल मीडिया में अपनी प्रतिक्रिया शेयर की हैं। उन्होंने लिखा कि, “सत्य की हमेशा जीत होती है। षड्यंत्र करने वाले कितना भी षड्यंत्र कर लें, सत्य परेशान हो सकता है पराजित नही। त्रिवेंद्र सरकार में सिंगटाली पुल का स्थान परिवर्तन करने पर हमने एक खबर प्रकाशित की थी।
इस पर त्रिवेंद्र सरकार ने हमारे खिलाफ दो समुदायों में झगड़ा कराने का” गुपचुप मुकदमा दर्ज कर दिया था और यह एफआईआर जानबूझकर छुपा दी गई थी, ताकि हमारे ऊपर गैंगस्टर लगाने में मदद मिल सके।
चलो खैर कोई बात नहीं। यदि इस तरह के मुकदमे नहीं होते तो हम कभी पत्रकारिता से दो कदम आगे बढ़कर राजनीति में नहीं आते।हमारा राजनीति में आने का मार्ग प्रशस्त करने वाले गुरुजनों का सादर आभार।”