महिला एवं बाल विकास विभाग ने आउटसोर्सिंग कंपनी ने प्रदेश में लगभग 350 कर्मचारियों की तैनाती की हुई थी। लेकिन इन कर्मचारियों को 5 महीने से 9 महीने तक का ना तो वेतन दिया गया और ना ही कर्मचारियों का पीएफ जमा किया गया।
कर्मचारियों के वेतन से सर्विस टैक्स और जीएसटी काटे जाने से सरकार ने एजेंसी को ब्लैक लिस्ट कर दिया, लेकिन चंपावत आदि कई जिलों में आउटसोर्सिंग से लगे कर्मचारियों की सेवाएं दी समाप्त कर दी।
अकेले चंपावत जिले में 21 कर्मचारी घर बैठ गए एक ओर तो इनको वेतन नहीं मिला, दूसरी तरफ सरकार ने इनकी सेवाएं समाप्त कर दी।
अब कई केंद्रीय योजनाओं का संचालन ठप हो गया है। वन स्टॉप सेंटर से लेकर महिला शक्ति केंद्र, राष्ट्रीय पोषण मिशन योजना, मातृ वंदना योजना जैसी तमाम योजनाएं अधर में लटक गई हैं।
यहां तक कि कई दिन से इन योजनाओं की अपडेट भी भारत सरकार को नहीं भेजी गई है।
कहा जा रहा है कि अब विभागीय अधिकारी वन स्टॉप सेंटर का संचालन करेंगे।
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि शासन को इस संबंध में बताया गया है तथा जल्दी ही दूसरी एजेंसी को काम सौंपा जाएगा।
लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या दूसरी एजेंसी पहले से तैनात कर्मचारियों को सेवा मे लेगी अथवा नहीं !
और जो इन्हे महीनों से वेतन नहीं मिला है, उसकी भरपाई कैसे होगी !
नए कर्मचारी कब तक कामकाज को समझेंगे और कब इन तमाम योजनाओं का संचालन गति पकड़ पाएगा कुछ कहा नहीं जा सकता !
किंतु उत्तराखंड सरकार महीनों से ही इन कर्मचारियों को वेतन न दिए जाने के प्रति जरा भी संवेदनशील नहीं है।