दिसंबर 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री हरीश रावत जो कि स्वयं आपदा प्रबंधन मंत्री भी थे और तत्कालीन आपदा प्रबंधन सचिव ने बोर्ड आफ गवर्नर्स की बैठक बुलाए बिना ही बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को बाईपास करके 4 संविदा कार्मिकों (मोहन राठौर, गोविंद रौतेला, भूपेंद्र भैसोड़ा व घनश्याम टम्टा) का गैरविधिक नियमितीकरण कर दिया । वर्तमान में भी यह विभाग मुख्यमंत्री के पास है।
आरोप – 01- नियमितीकरण नियमावली 2013 को बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की बैठक में अंगीकार करने की अनुमति प्राप्त नहीं की गई।
आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र जो कि एक स्वायत्तशासी संस्थान है और बोर्ड ऑफ गवर्नर्स से संचालित होता है उसमें कार्यरत 7 संविदा कार्मिकों के नियमितीकरण करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था।
बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की बैठक बुलाए बिना ही सचिव आपदा प्रबंधन ने अपने स्तर पर निर्णय लेकर एक नियमितीकरण समिति गठित कर दी, जबकि आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के संविदा कार्मिकों के नियमितीकरण किए जाने के लिए सर्वप्रथम एक बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की बैठक बुलाई जानी थी, जिसमें 2013 के नियमितीकरण नियमावली को अंगीकार किया जाना था लेकिन उक्त नियमावली को बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में लाकर के अंगीकार नहीं किया गया।
यह नियमावली 309 के अंतर्गत पूर्ण रूप से शासकीय विभागों के लिए गठित की गई थी और किसी भी स्वायत्तशासी संस्थान के द्वारा इस नियमावली का सीधे प्रयोग नहीं किया जा सकता है ।
आरोप – 02- विभागाध्यक्ष के बजाय एक संविदा कार्मिक द्वारा प्रस्तुत किए गए नियमितीकरण प्रस्ताव पर नियमितीकरण की कार्रवाई की गई।
आपदा न्यूनीकरण प्रबंधन केंद्र के विभागाध्यक्ष सचिव आपदा प्रबंधन होते हैं जोकि एग्जीक्यूटिव काउंसिल के चेयरमैन भी हैं, लेकिन 7 कार्मिकों के नियमितीकरण का प्रस्ताव सचिव आपदा प्रबंधन विभागाध्यक्ष के स्तर पर नहीं भेजा गया, उनके स्थान पर संविदा में कार्यरत अधिशासी निदेशक पीयूष रौतेला ने 7 कार्मिकों के नियमितीकरण का प्रस्ताव भेजा और आपदा प्रबंधन विभाग ने उस पर त्वरित कार्रवाई करते हुए नियमविरुद्ध नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी।
आरोप – 03- तत्कालीन आपदा प्रबंधन सचिव ने बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को बाईपास करके नियमविरुद्ध नियमितीकरण समिति का गठन किया।
आपदा प्रबंधन सचिव ने बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की बैठक में 7 कार्मिकों का नियमितीकरण का प्रस्ताव प्रस्तुत किए बिना ही स्वयं के स्तर पर निर्णय लेकर नियमितीकरण समिति गठित की जो की पूर्णता गैर विधिक है।
आरोप – 04- नियमितीकरण समिति ने सर्विस रिकॉर्ड और अन्य डॉक्यूमेंट चेक किए बिना ही 4 कार्मिकों का नियमितीकरण किया।
तत्कालीन सचिव आपदा प्रबंधन ने जो नियमितीकरण समिति गठित की उन्होंने केवल 4 कार्मिकों का नियमितीकरण किया अन्य 03 कार्मिकों के लिये कार्मिक विभाग की संस्तुति लेने के लिये निर्देशित किया। लेकिन समिति ने 04 कार्मिकों के नियमितीकरण किए जाने से पहले उनके पिछले सर्विस रिकॉर्ड की जांच नहीं की, ना ही उनके अनुबंधों की जांच की और उनके दस्तावेजों की जांच किये बिना ही सीधे आंख बंद करके उनके नियमितीकरण की संस्तुति प्रदान कर दी गयी। ये सभी 04 कार्मिक 2012 से बिना अनुबंध के कार्यरत थे।
आरोप- 05- 4 कार्मिकों के नियमितीकरण के लिए बोर्ड ऑफ गवर्नर को बाईपास कर दिया गया और अब 2 कार्मिकों के नियमितीकरण किए जाने के लिए बोर्ड ऑफ गवर्नर की सहमति मांगी जा रही है।
04 कार्मिकों का नियमितीकरण तो बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को बायपास करके सीधे कर दिया गया बाकी बचे 02 कार्मिक अपने नियमितीकरण की मांग कर रहे हैं तो सचिव आपदा प्रबंधन एस०ए० मुरुगेशन के द्वारा उनको लिखित में दिया गया कि नियमितीकरण के लिए आप बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की अनुमति प्रस्तुत करें। आपदा प्रबंधन विभाग दोहरे मानकों के आधार पर कार्य कर रहा है जब 2 कार्मिकों के नियमितीकरण के लिए बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की सहमति की आवश्यकता है तो फिर जिन 04 कार्मिकों का दिसंबर 2016 में नियमितीकरण किया गया उनके लिए बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की सहमति की आवश्यकता क्यों नहीं रखी गई।
आरोप-06- तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को बाईपास कर अनुमति प्रदान करके नियम विरुद्ध कार्य किया है।
तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आपदा प्रबंधन सलाहकार समिति के अध्यक्ष प्रयाग दत्त भट्ट की सिफारिश पर इन 4 कार्मिकों के नियमितीकरण किए जाने की गैर विधिक संस्तुति प्रदान की।
मुख्यमंत्री को भी बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को बाईपास करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। यदि मुख्यमंत्री स्वयं के स्तर पर निर्णय लेते हैं तो उस निर्णय को भी बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की सहमति के लिए भेजना आवश्यक होता है।
आरोप -07- मुख्य सचिव, सचिव और माननीय मुख्यमंत्री के द्वारा अलग से प्रदान की गई नियमितीकरण की सहमति ग़ैरविधिक है।
बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को बाईपास करके आपदा प्रबंधन विभाग ने इन कार्मिकों के नियमितीकरण की पत्रावली संचालित की, जिसमें सचिव आपदा प्रबंधन और मुख्य सचिव ने अलग से सहमति प्रदान की है जो की पूर्णता गैर विधिक है।
सचिव आपदा प्रबंधन एग्जीक्यूटिव काउंसिल के चेयरमैन है लेकिन एग्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक बुलाए बिना और सदस्यों की सहमति के बिना उनके स्वयं के स्तर पर लिया गया निर्णय अमान्य है।
इसी प्रकार मुख्य सचिव बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के चेयरमैन हैं लेकिन बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की बैठक बुलाए बिना और सदस्यों की सहमति के बिना स्वयं के स्तर पर मुख्य सचिव के द्वारा लिया गया निर्णय अमान्य है।
तत्कालीन मुख्यमंत्री जोकि आपदा प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष भी हैं उनके द्वारा बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की सहमति के बिना प्रस्तुत की गई पत्रावली पर प्रदान की गई सहमति भी अमान्य है। इन तीनों के द्वारा बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को बाईपास करके स्वयं के स्तर पर लिया गया निर्णय बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के निर्णय के रूप में कभी भी मान्य नहीं हो सकता है।
आपदा प्रबंधन विभाग में वर्तमान में 350 से ज्यादा संविदा कार्मिक कार्यरत हैं लेकिन आज तक उनका नियमितीकरण नहीं किया गया तो फिर इन 4 कार्मिकों का ग़ैरविधिक नियमितीकरण किए जाने के लिए बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को बाईपास करने की क्या आवश्यकता थी ।
ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि ना तो एग्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक बुलाई गई और ना ही बोर्ड ऑफ गवर्नर की बैठक बुलाई गई और आपदा प्रबंधन विभाग ने सीधे इनका गैर विधिक नियमितीकरण करवाया।
जैसे बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को बाईपास करके पौड़ी इंजीनियरिंग कॉलेज के रजिस्ट्रार श्री संदीप कुमार की रजिस्ट्रार के पद पर की गई नियुक्ति को अवैध मानते हुए उनकी नियुक्ति निरस्त की गई है उसी प्रकार मुख्यमंत्री और आपदा प्रबंधन विभाग को भी इन सभी 4 कार्मिकों के अवैध नियमितीकरण जोकि बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को बाईपास करके की गई है इसको भी तत्काल निरस्त किया जाये।