उत्तराखंड में ई रिक्शा लोन योजना में भी एक बड़ा घोटाला निकलकर सामने आया।उत्तराखंड सहकारी बैंक ने उत्तराखण्डियों को छोड़ पहाड़ियों को जमकर लोन बाटा।और गजब तो अब हो गया जब यह बाहरी लोग जिनका पैसा वापस चुका ही नहीं रहे हैं।
दरअसल, उत्तराखंड सहकारी बैंक में मार्च, 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हल्द्वानी में राज्य सहकारी बैंक की ओर से संचालित मुख्यमंत्री ई-रिक्शा जनकल्याण योजना की शुरुआत की थी।
योजना का उद्देश्य था कि राज्य के गरीब और वंचित तबके के लोग बैंक से ऋण लेकर ई-रिक्शा खरीदकर अपना कारोबार शुरू करें।
योजना तो शुरू हुई थी कि स्थानीय निवासी लोन लेकर कारोबार शुरू करेंगे,लेकिन अफसरों ने बाद में इन नियमों को बदल दिया और स्थानियों को छोड़ बाहरीयों को भर भर लोन बाटा।
ऋण लेने वालों में उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, दिल्ली जैसे राज्यों के लोगों की बाढ़ आ गई। बैंक ने बाहरी लोगो को केवल आधार कार्ड पर खूब ऋण बांटा।
इस योजना के माध्यम से अब तक करीब 30 करोड़ रुपये का ऋण बांटा जा चुका है। बैंकों ने कागजात पूरे किए बिना मात्र आधार कार्ड पर ऋण बांट दिया था। अब ये लोग पैसा नही चूका रहे हैं।
30 करोड़ के ई रिक्शा घोटाले के साथ ही बैंक परिसर में किराए पर सीसीटीवी कैमरे लगवाने की शिकायत भी शासन में हुई।
उत्तराखंड राज्य सहकारी बैंक हल्द्वानी के निदेशक मनोज पटवाल ने शिकायत में कहा कि बैंक में सीसीटीवी कैमरे लगाना महत्वपूर्ण है, लेकिन कैमरे खरीद कर भी लगाए जा सकते थे। जबकि, बैंक किराये के रूप में निजी संस्था को प्रतिवर्ष लाखों रुपये का भुगतान कर रहा है।
ई-रिक्शा लोन घोटाला और सीसीटीवी मामले में सचिव सहकारिता डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने जांच के आदेश दिए थे। इसके बाद दो सदस्यीय जांच समिति गठित कर दी गई है। समिति में अपर निबंधक आनंद एडी शुक्ल और वरिष्ठ वित्त अधिकारी शुभम तोमर को रखा गया है। समिति से पूरे मामले की 15 दिन में रिपोर्ट मांगी गई है।
इस पूरे प्रकरण से एक बड़ा ही गंभीर सवाल खड़ा होता है कि बिना किसी दस्तावेजों के बाहरी व्यक्तियों को लोन बांटने की आखिर इतनी क्या जल्दी थी! और अब लोन वापस ना होने की स्थिति में 30 करोड़ के रिक्शा घोटाले में किसकी जिम्मेदारी होगी!