स्टोरी(कमल जगाती, नैनीताल):-
गाड़ियों में वी.आई.पी.नंबर कुछ वर्ष पूर्व ‘साइन ऑफ स्टेटस'(ताकत की पहचान)हुआ करता था। लेकिन, ऊत्तराखण्ड में गाड़ियों के इन नंबरों को प्रीमियम मानते हुए फीस लेने के नियम के बाद, सरकार को पांच करोड़ अड़तीस लाख सड़सठ हजार और छह सौ पचास(₹5,38,67,650/=)रुपये का शुद्ध राजस्व प्राप्त हुआ है।
हल्द्वानी निवासी आर.टी.आई.कार्यकर्ता हेमंत गौनिया ने जुलाई 2023 में लोक सूचना संभागीय परिवहन अधिकारी से वाहनों के वी.आई.पी.नंबर संबंधी एक सूचना मांगी थी। जिसके बाद सूचना का अधिकार अनुभाग के पटल सहायक अधिकारी द्वारा सूचना उपलब्ध कराई गयी। मांगी गई सूचना के जवाब में कहा गया की राज्य बनने के बाद 10,160 फैंसी नंबर ऑनलाइन और ऑफलाइन जारी किए गए हैं। इन नंबरों की बिक्री से पांच करोड़ अड़तीस लाख सड़सठ हजार और छह सौ पचास(₹5,38,67,650/=)रुपया राजस्व के रूप में सरकार को हासिल हुआ। इसमें फोर व्हीलरों से चार करोड़ छियानब्बे लाख सत्ताईस हजार और तीन सौ तीस रुपये(₹4,96,27,330/=)जबकि टू व्हीलरों से बयालीस लाख चालीस हजार और तीन सौ बीस रुपये(₹42,40,320/=)का राजस्व वसूला गया।
सरकार की इस नीति से न केवल वी.आई.पी.ट्रेंड खत्म हुआ बल्कि उसे राजस्व लाभ हुआ और उसने हर रुपया खर्च करने वाले वाहन मालिक को वी.आई.पी.बना दिया। वाहनों के वी.आई.पी.नंबरों की कीमत लगाने वालों ने लाखों लाखों रुपये तक लगाकर अपने मन के नंबर हासिल किए। इसमें 1 से 9 तक सिंगल डिजिट, 786, 8055(BOSS), डबल जोड़े और जोड़े के नंबर, सीक्वेंस आदि कुछ विशेष नंबर हैं।