पर्वतजन चौखुटिया, अल्मोड़ा
उत्तराखंड की पंचायती राजनीति में इस बार केवल चुनाव नहीं, बल्कि संघर्ष, सेवा और साहस की एक दिलचस्प कहानी लिखी जा रही है और यह कहानी बन रही है खीड़ा-तड़गताल चौखुटिया अल्मोड़ा जिला पंचायत सीट पर।
इस सीट को चर्चा के केंद्र में ला रही है एक ऐसी दंपति की एंट्री, जो वर्षों से जनहित आंदोलनों में सक्रिय रही है और अब सत्ता के गलियारों में व्यवस्था परिवर्तन की हुंकार भर रही है।
एक साथ मैदान में: जनसंघर्ष की दो आवाजें
पूर्व सैनिक भुवन कठायत ग्राम प्रधान पद से मैदान में हैं, जबकि उनकी धर्मपत्नी गीता कठायत जिला पंचायत सदस्य के लिए प्रत्याशी बनी हैं। यह केवल एक पति-पत्नी की चुनावी भागीदारी नहीं, बल्कि एक ऐसी जोड़ी की साझी सोच है जिसने ज़मीनी मुद्दों को लेकर सचिवालय से लेकर गांव की पंचायत तक अपनी आवाज़ बुलंद की है।
जनहित की लड़ाई, सिर्फ नारों में नहीं — ज़मीन पर
भू-कानून को लेकर राज्यव्यापी मुहिम
गैरसैंण में मंत्री के विवादित बयान के विरोध में भूख हड़ताल
गोदी चौराहे से खीड़ा तक सड़क के लिए जनअभियान और आमरण अनशन
इन आंदोलनों में भुवन कठायत की भूमिका अग्रणी रही है, और हर बार गीता कठायत ने सिर्फ समर्थन नहीं किया, बल्कि मोर्चे पर खड़ी होकर नेतृत्व भी किया है।
“यह चुनाव व्यवस्था से संवाद है, विरोध नहीं” — भुवन कठायत
“हमने कभी पद की दौड़ नहीं चाही। लेकिन जब व्यवस्था बहरी हो जाती है तो जनता के बीच उतरना पड़ता है। यह चुनाव बदलाव का माध्यम है, और जनता ही हमारी ताकत है।”
“पंचायत को जनविचार का मंच बनाएंगे” — गीता कठायत
“सड़क, बिजली, पानी से आगे बढ़कर अब गांवों को जवाबदेही और पारदर्शिता चाहिए। हमने इस लड़ाई को सड़कों में लड़ा है, अब उसे पंचायत के भीतर से लड़ेंगे।”
जनता की नज़र में ‘विश्वसनीय विकल्प’
क्षेत्र की जनता अब नेताओं के भाषणों नहीं, उनके इतिहास को देख रही है। और कठायत दंपत्ति का इतिहास संघर्ष, नीतियों की स्पष्टता और गांव के लिए समर्पण से भरा हुआ है।
युवाओं में उत्साह है कि ये जोड़ी पंचायत में नई ऊर्जा लाएगी, और बुज़ुर्गों का कहना है कि “सालों में पहली बार कोई प्रत्याशी हमारे मुद्दों को हमारी ही भाषा में बोल रहा है।”
निष्कर्ष: क्या यह जोड़ी रचेगी नई ग्रामराजनीति की इबारत?
खीड़ा-तड़गताल सीट पर इस बार मुकाबला सिर्फ दो नामों का नहीं है — यह प्रतीक बन चुका है उस संघर्ष का, जो वर्षों से हाशिए पर रहे लोगों की आवाज़ है।
अगर ये जोड़ी चुनाव जीतती है, तो यह एक पंचायत नहीं, पूरी व्यवस्था को संदेश होगा — कि संघर्ष से निकली ईमानदारी अब सत्ता का चेहरा बदलने आई है।


