देहरादून। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कर्मचारियों को बचाने पर तुली हैं। एक तरफ उनके ही द्वारा गठित डीके कोटिया की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय जांच समिति स्वयं कह रही है कि 2001 से 2022 तक विधानसभा सचिवालय में हुई सभी नियुक्तियां अनियमित तथा अवैध हैं और स्वयं माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल में विधानसभा की ओर से पेश किए गए काउंटर एफिडेविट में यह कहा गया है कि 2001 से 2022 तक सभी नियुक्तियां अवैध हैं तो बड़ा सवाल यह उठता है कि विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण यह किस आधार पर कह रही हैं कि 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कर्मचारियों का मामला अलग है। क्या विधानसभा अध्यक्ष अपने चहेतों लोगों के करीबियों को बचाने का प्रयास कर रही हैं।
दरअसल 03 सितंबर 2022 को विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने विधानसभा में राज्य निर्माण के बाद हुई भर्तियों की जांच के लिए वरिष्ठ नौकरशाह डीके कोटिया की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की थी। कोटिया समिति ने 20 सितंबर 2022 को खंडूड़ी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी और इसी रिपोर्ट के आधार पर विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने 2016, 2020 तथा 2021 में नियुक्त करीब 228 तदर्थ कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था और वर्ष 2001 से 2015 के बीच नियुक्ति कार्मिकों के मामले में विधिक राय लेने की बात कहकर उन्हें बचाने का प्रयास किया गया।
2001 से 2015 के बीच नियुक्त कार्मिकों को बचाने का जो प्रयास विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने सितंबर में शुरू किया था, वही प्रयास अब भी जारी हैं। 2001 से 2015 के बीच अवैध रूप से नियुक्त इन कर्मचारियों को बाहर करने के बजाय खंडूड़ी इन्हें संरक्षण देने का काम कर रही हैं। आधा-अधूरा न्याय कर विधानसभा अध्यक्ष आखिर इन कर्मचारियों को बचाने का प्रयास क्यों कर रही हैं, इसके पीछे कई बड़े कारण हैं।
दरअसल 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कर्मचारी न सिर्फ विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी के करीबियों के रिश्तेदार-नातेदार हैं, बल्कि कई कर्मचारी तो उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल (अप्रा) भुवन चंद्र खंडूड़ी के करीबियों के रिश्तेदार हैं। और यही सबसे बड़ी वजह है, जो इनके खिलाफ कार्रवाई करने से स्पीकर ऋतु खंडूड़ी को रोक रही है।
इन करीबियों को फेहरिस्त बड़ी लंबी है। स्पीकर ऋतु खंडूड़ी के चहेतों में सेक्शन आफिसर योगेश उपाध्याय हैं, जो केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट के साले हैं। समीक्षा अधिकारी मुकेश भट्ट हैं जो भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के सगे छोटे भाई है। अब क्या ऋतु खंडूड़ी की इतनी हिम्मत है कि केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट के साले तथा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के भाई को बाहर कर दें। भाई, चुनाव भी तो लड़ना है। खैर इस लिस्ट में अगला नाम है पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बेहद करीबी मेयर सुनील उनियाल गामा की पत्नी शोभा उनियाल गामा, जो विधानसभा में समीक्षा अधिकारी के पद पर तैनात हैं। क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी और त्रिवेंद्र सिंह रावत की ट्यूनिंग इन दिनों बड़ी गजब की है तो क्या खंडूड़ी शोभा उनियाल को बाहर करने का साहस जुटा पाएंगी।
इस लिस्ट में पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल (अप्रा) भुवन चंद्र खंडूड़ी के सलाहकार प्रकाश सुमन ध्यानी की पुत्री अंजली ध्यानी भी हैं जो समीक्षा अधिकारी के पद पर तैनात हैं। भुवन चंद्र खंडूड़ी की सिफारिश पर ही अंजली को नौकरी मिली तो क्या यह संभव है कि ऋतु खंडूड़ी अंजली को बाहर कर दें। अगर ऐसा किया तो पापा को क्या जवाब देंगी ऋतु खंडूड़ी भूषण। इसके अलावा कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल का साला कमलेश डंगवाल, कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत का भांजा लक्ष्मण सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी की पुत्री वंदना स्वामी, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. प्रकाश पंत का साला दीपक जोशी तथा भाई हेम पंत। हेम पंत पर तो ऋतु खंडूड़ी इतनी मेहरबान हैं कि उन्हें प्रभारी सचिव तक बना दिया। अब जब इतने बड़े-बड़े लोग हों तो कार्रवाई कैसे कर सकती हैं विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी। सही कहा है ऋतु खंडूड़ी ने कि 2001 से 2015 वालों का मामला अलग है। वीआईपी लोगों को बचाना तो बनता है, चाहे जनता की आंखों में धूल झोंक कर ही क्यों नहीं।
बचाने के लिए अलग-अलग बहाने
विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने कभी विधिक राय का बहाना, कभी कोर्ट का बहाना तो कभी मामला ही अलग है का बहाना बनाकर 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कर्मचारियों को बचाने का प्रयास किया है। सितंबर में जब 2016 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को बाहर निकाला गया तो खंडूड़ी ने कहा कि 2015 से पूर्व नियुक्त कर्मचारियों के संबंध में विधिक राय ली जाएगी। लेकिन क्योंकि अपने चहेतों को बचान था तो चार महीने तक तो विधिक राय नहीं ली गई। बर्खास्त कर्मचारियों के भारी दबाव तथा मीडिया के प्रेशर में जनवरी 2023 के प्रथम सप्ताह में चुपचाप महाधिवक्ता से राय ली गई तो उसे भी 15 दिन तक स्पीकर ऋतु खंडूड़ी दबाए रहीं। मीडिया ने जब 18 जनवरी को खंडूड़ी से विधिक राय के संबंध में पूछा तो उन्होंने कहा कि हमने सरकार से विधिक राय मांगी है और राय मिलने पर निर्णय लिया जाएगा, लेकिन महाधिवक्त को 09 जनवरी को ही विधिक राय विधानसभा को दे चुके थे। इन कर्मचारियों को बचाने के लिए स्पीकर ऋतु खंडूड़ी ने इतना बड़ा झूठ तक बोल दिया।
दरअसल झूठ बोलने की एक वजह यह भी थी कि महाधिवक्ता ने अपनी विधिक राय में साफ-साफ लिख दिया था कि कोटिया कमेटी के अनुसार 2001 से 2022 के बीच नियुक्त सभी कर्मचारी अवैध हैं तथा कोटिया कमेटी ने 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कर्मचारियों को क्लीन चिट भी नहीं दी है। महाधिवक्ता लिखते हैं कि उन्हें कोई ऐसे दस्तावेज भी विधानसभा ने नहीं दिए, जिससे यह पता चले कि 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कर्मचारियों की नियुक्ति वैध है। अगर 2001 से 2015 के बीच नियुक्त कार्मिकों की नियुक्ति वैध है तो महाधिवक्ता को दस्तावेज क्यों नहीं भेजे गए। साफ ही कि कहीं न कहीं दाल में काला ही नहीं पूरी दाल ही काली है। अब देखना है कि न्याय की देवी कब पूरा न्याय करती हैं।