रिपोर्ट: इंद्रजीत असवाल
नमस्कार मित्रों कई बीते सात नवंबर को सिडकुल सेलाकुई की फार्मा सिटी की हैब फार्मा नामक कम्पनी में आग लग गई थी । इस मामले में कई सवाल कम्पनी पर उठ रहें हैं !
कम्पनी घरेलू सिलेडर की गैस से स्प्रे बनाती थी यानी कि कम्पनी उन मजदूरों के झूलसने की भी जिम्मेदार हैं । साथ ही सरकार को भी लाखों का चूना लगा रही थी, घरेलु सिलेंडर का होना इस बात सही ठहराता हैं ।
बड़ी बात कि आगजनी हुए 8 दिन बीत गए परन्तु आग के कारणों का पता नहीं चल पाया आखिर क्यों अब तक जाँच नहीं हुई !क्या कम्पनी प्रबंधन ने जाँच में हरी भरी आंच तो नहीं सुलगा दी !
ज़ब आग लगी थी तो आनन फ़ानन में फायर बिर्गेड की मदद से आग पर काबू पाया गया, इस अग्नि कांड में 9 लोग बुरी तरह झूलस गए थे जिनमे एक मजदूर की मौत हो गई!
ग्राफिक एरा अस्पताल से घायल मजदूरों को दून रैफर किया गया, दून में मजदूरों के लिए बेड नहीं मिले तो उन्हें कोर नेशन अस्पताल लें गए फिर वंहा से दून काफ़ी समय घायल मजदूर इधर उधर करते रहें । घायलों के साथ बजरंग दल के नेता रमेश ढोंडियाल मौजूद थे तब कम्पनी से कोई साथ नहीं था ज़ब रमेश ढोंडियाल ने कम्पनी GM को फोन किया तब जाकर कम्पनी के लोग घायलों तक पहुचे थे ।
अब सवाल पैदा होता हैं कि क्या कम्पनी में फायर इक्यूमेंट नहीं थे या फिर ठीक नहीं थे या फिर फायर फाइटर टीम नहीं थी कम्पनी के पास यदि होती तो शायद इतनी बुरी तरह नहीं झूलसे होते मजदूर!
सूत्रों से जो जानकारी मिली उसके अनुसार फायर इल्यूमेंट बंद थे व उनके साथ dg भी बंद था। साथ ही मौके पर से भागने के सारे रास्तों पर कंपनी द्वारा ढेर सारा गट्टा प्लास्टिक रखा था, जिसके कारण आग लगने पर मजदूर तत्काल बाहर नहीं निकल पाए क्योंकि रास्ते के गट्टे प्लास्टिक में भी आग लग चुकी थी।
कम्पनी में फायर टीम भी नहीं थी क्योंकि ज़ब आग लगी थी तो अंदर कोई अन्य नहीं था, एक वीडियो हम आपको ताज़ा ताज़ा दिखा रहें हैं कि ज़ब इतना बड़ा काण्ड हो गया तब कम्पनी अपने फायर इक्यूमेंट तैयार कर रही हैं !
ये भी सवाल खड़ा होता हैं क्या कम्पनी के फायर इक्यूमेंट का ऑडिट या चेकिंग होती हैं, कागजों में होती हैं या फिर हकीकत में यदि होती हैं तो फिर ऐसा क्यों हुआ क्यों नहीं चले फायर इक्यूमेंट!
क्यों कम्पनी के फायर फाइटरों द्वारा आग से नहीं बचाया गया ! क्या कारण था कि बगल की कम्पनी वाले द्वारा इनकी गैस लाइन बंद की गई यदि दूसरी कम्पनी का फाइटर नहीं आता तो शायद बड़ी घटना हो सकती हैं।
एक अहम बात और पता चली हैं कि जिस जगह पर गैस लाइन या एलपीजी सिलेंडर रखें थे वो जगह वैसे भी डेंजर जोन में आती हैं लेकिन कम्पनी के बड़े अधिकारियों की जिद से वहां पर वैल्डिंग का कार्य करवाया जा रहा था । जैसे ही वैल्डिंग हुई तत्काल आग लग गई क्या इसे कम्पनी का लापरवाही न बोले क्या कम्पनी वैल्डिंग करने से पूर्व गैस लाइन या सिलेंडर सिस्टम बंद नहीं कर सकती थी ।
फायर cfo बसंत यादव का कहना हैं कि फायर इक्यूमेंट इसलिए नहीं चले कि उन्हें dg कनेक्शन नहीं मिला, अब बात उठती हैं कि कम्पनी दर्द निवार्क स्प्रे बनाती हैं जिसमे एलपीजी गैस का इस्तेमाल करती हैं ये भी आग लगने का एक कारण माना जा रहा हैं।
आप देख सकते कि किस प्रकार से कम्पनी घरेलु गैस का इस्तेमाल करके राज्य सरकार को करोड़ों का चूना लगा रही हैं, इन्ही घरेलू गैस का इस्तेमाल स्प्रे बनाने में किया जाता हैं।
सबसे अहम बात यह भी हैं कि आखिर कम्पनी द्वारा मजदूरों का गुरुप इन्सुरेंस क्यों नहीं करवाया गया!
तीसरे बात ज़ब मजदूर झूलसे थे तो ESI से रिलेटिव बड़े अस्पताल में क्यों नहीं लें गई कम्पनी,ऐसा भी सुनने में आया हैं कि कम्पनी में ऐसे अन्य लोग भी हैं जिनका ESI, PF नहीं कटता । आखिर क्यों कम्पनी द्वारा श्रम विभाग के मानको का मजाक उड़ाया जा रहा हैं।
कम्पनी की गलतियों की सजा बेचारे मजदूरों को झेलनी पड़ी थी साथ ही एक मजदूर की जान भी चले गई।
जितने भी सवाल पैदा हुए आग लगने पर उससे ये कहना उचित होता हैं कि ये सब कम्पनी की लापरवाही से हुआ हैं इसकी जिम्मेदार कम्पनी हैं जल्द मामले के अन्य पहलुवों से भी आपको रूबरू करवाएंगे जैसे ही जाँच रिपोट आती हैं।
कम्पनी के GM का कहना हैं कि उनके इक्यूमेंट सहित सब चीज ठीक थी,अभी जाँच नहीं हुई जांच के बाद ही पता चलेगा और गम साहब वैल्डिंग सहित कई बाते गोल कर गए इससे लगता हैं कि कुछ दाल में काला हैं या फिर पूरी दाल काली हैं!