देहरादून, 17 मई 2025। नीरज उत्तराखंडी
उत्तराखंड सहायक अध्यापक भर्ती 2024-25 के अंतर्गत चयनित 1371 अभ्यर्थी आज भी नियुक्ति की प्रतीक्षा में धरनास्थल पर बैठे हैं। चयन प्रक्रिया पूर्ण होने के बावजूद शासन की उदासीनता और आयोग की निष्क्रियता ने इन युवाओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
चयन प्रक्रिया का विवरण
मार्च 2024 में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) द्वारा सहायक अध्यापक (एलटी) के पदों हेतु विज्ञप्ति जारी की गई थी। परीक्षा 18 अगस्त 2024 को आयोजित की गई, जिसमें हजारों अभ्यर्थियों ने कठिन परिश्रम कर भाग लिया।
10 जनवरी 2025 को अंतिम उत्तर कुंजी के साथ प्रोविजनल परिणाम घोषित हुआ और 25% अतिरिक्त अभ्यर्थियों को दस्तावेज़ सत्यापन के लिए बुलाया गया। इसके पश्चात 9 फरवरी 2025 को अंतिम चयन सूची जारी की गई।
शिक्षा मंत्री का आश्वासन और न्यायिक स्थगन
राज्य विधानसभा के बजट सत्र के दौरान शिक्षा मंत्री डॉ. धनसिंह रावत ने सदन में स्पष्ट किया कि चयनित 1371 अभ्यर्थियों को एक माह के भीतर नियुक्ति दे दी जाएगी।
किन्तु, कुछ असफल अभ्यर्थियों द्वारा अंतिम उत्तर कुंजी को अदालत में चुनौती दी गई, जिस पर न्यायालय की एकल पीठ ने स्थगनादेश दे दिया।
संघर्ष की शुरुआत और रचनात्मक विरोध
9 फरवरी से लेकर 23 मार्च तक चयनित अभ्यर्थियों ने शांतिपूर्वक सभी संबंधित विभागों, निदेशालय, सचिवालय और जनप्रतिनिधियों से संपर्क किया, किंतु उन्हें केवल आश्वासन ही मिले।
24 मार्च को लगभग 800 अभ्यर्थियों ने देहरादून में एक विशाल रैली निकालकर अपनी मांगों को सरकार तक पहुँचाया।
जब सभी प्रयास विफल हो गए, तो चयनित अभ्यर्थी 16 अप्रैल 2025 से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए। धरना केवल विरोध नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता का प्रतीक बन गया, जिसमें अभ्यर्थियों ने निम्न रचनात्मक गतिविधियाँ कीं:
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नियुक्ति की मांग को लेकर सार्वजनिक महायज्ञ का आयोजन
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समाचार माध्यमों के जरिये जनजागरूकता
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निदेशालय परिसर की साफ-सफाई और वृक्षारोपण
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रक्तदान शिविर, जो युवाओं की सामाजिक चेतना को दर्शाता है
न्यायालय की सुनवाई और सरकारी निष्क्रियता
24 मार्च से अब तक चार से अधिक सुनवाइयां हो चुकी हैं, किंतु आयोग और सरकार कोई ठोस पक्ष अदालत में नहीं रख सके।
अब चयनित अभ्यर्थी 23 मई 2025 को होने वाली सुनवाई को निर्णायक मान रहे हैं। यदि इस सुनवाई में भी सरकार ने पक्ष मजबूत नहीं रखा, तो वे प्रदेशव्यापी आंदोलन और जिला स्तरीय महारैलियों के लिए बाध्य होंगे।
“यह केवल नौकरी नहीं, आत्म-सम्मान की लड़ाई है”
एक अभ्यर्थी ने कहा, “हमने परीक्षा पास की, चयन सूची में नाम आया, मंत्री ने नियुक्ति का आश्वासन दिया — फिर भी हम सड़कों पर हैं। यह कैसा न्याय है?”
उनकी आँखों में आँसू और स्वर में आक्रोश, पूरे राज्य के संघर्षशील युवाओं की पीड़ा को बयान कर रहे हैं।
सरकार से अपेक्षा है कि वह संवेदनशीलता और न्याय के साथ शीघ्र निर्णय ले, जिससे युवा वर्ग का विश्वास शासन और संविधान में बना रहे।