भ्रष्टाचार में एडीएम के खिलाफ विजलेंस जांच अटकी। जिम्मेदार कौन !!
देहरादून। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने पदभार संभालते ही ऐलान किया था कि, राज्य में भ्रष्टाचार व घोटालेबाजों पर सख्त कार्यवाही अमल में लाई जायेगी। लेकिन चार साल बीतने के बाद भी सरकार ने चंद अफसरों के खिलाफ आ रही शिकायतों को जिस तरह से आज तक नजरअंदाज किया है, वह किसी से छिपा नहीं है? चंद दिन पूर्व मुख्यमंत्री ने राजधानी के एडीएम के खिलाफ मिल रही गम्भीर शिकायतों को देखते हुए उन्हें तत्काल पद से हटाते हुए प्रतीक्षा सूची में डाल दिया और उनके खिलाफ मिल रही शिकायतों की विजिलेंस जांच कराने का ऐलान किया था जो कि, मीडिया में चर्चा का विषय बना रहा लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी चर्चाएं उठ रही हैं कि, एडीएम के खिलाफ विजिलेंस जांच को सम्भवतः हरी झण्डी नहीं मिल पाई है।
अगर सरकार के मुखिया भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के तहत राज्य को नई ऊंचाईयों पर ले जाने का दम भर रहे हैं तो उन्हें तत्काल एडीएम के खिलाफ विजिलेंस जांच का पत्र जारी करना चाहिए। जिससे कि राज्यवासियों के मन में पैदा हो रखी वो शंका मिट जाये जिसमें कयास लगाये जा रहे हैं कि, शायद यह जांच हवाबाजी में ही न रह जाये? अब देखने वाली बात होगी कि, क्या सरकार एडीएम के खिलाफ मिल रही शिकायतों पर वाकई गम्भीरता दिखाते हुए ऐलान करेगी कि विजिलेंस कितने दिन में एडीएम के खिलाफ मिल रही शिकायतों को पूरा कर अपनी आख्या शासन में भेजेगी?
उल्लेखनीय है कि, राज्य में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के जीरो टॉलरेंस के फार्मूले के बाद एडीएम अरविंद पांडे को संबद्ध करते हुए विजिलेंस जांच के आदेश दिए गए थे लेकिन अधिकारियों के हिला हवाली भरे रवैया के चलते अभी तक शासन के द्वारा कोई पत्र विजिलेंस को प्राप्त ही नही हुआ है, जिससे कि जांच शुरू हो पाती। मुख्यमंत्री लगातार जीरो टॉलरेंस के फार्मूले को लागू करते हुए अधिकारियों से बेहतर कार्य करने के निर्देश देते रहे लेकिन शासन के अधिकारियों का रवैया देखकर लगता है कि, वह मुख्यमंत्री के आदेश को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
आलम ये है कि, शासन के अधिकारी ऐसे विवादित अधिकारियों को बचाने का काम कर रहे हैं। दरअसल मुख्यमंत्री के पास लगातार अधिकारियों की लापरवाही की शिकायतें पहुंच रही थी, जिसके चलते उन्होंने तत्काल एडीएम अरविंद पांडे को सम्बद्ध करते हुए विजिलेंस जांच के आदेश दिए थे, लेकिन आज लगभग एक सप्ताह बाद भी जांच शुरू नहीं हुई है। जिससे साफ हो गया है कि, बड़े अधिकारियों के संरक्षण के चलते ही नीचे के अधिकारी इस तरीके की लापरवाही कर रहे है। ऐसे में शासन के अधिकारियों को भी लापरवाह अधिकारियों के मामले में गंभीरता लाने की जरूरत है। जिससे राज्य के लोग जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत सरकारी कार्यालयों में काम करवा सकें।