सरकार के सौ दिन पूरे होने से पहले शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने देहरादून में अतिक्रमण हटाने का अभियान चलाकर सरकार की मजबूत छवि की पेश
कुलदीप एस. राणा
अवैध अतिक्रमण से पटी रहने वाली देहरादून की सड़कों का नजारा पिछले कुछ हफ्तों से बदला-बदला नजर आ रहा है। सत्ता में आने के तुरंत बाद ही सूबे के मुखिया त्रिवेंद्र रावत की कैबिनेट में शहरी मंत्रालय संभाल रहे मंत्री मदन कौशिक ने अवैध अतिक्रमण से राजधानी के बिगड़ते स्वरूप के खिलाफ जो गंभीरता दिखाई है, उसका काफी कुछ अंदाजा इन दिनों अवैध कब्जों से संकरी हो चुकी देहरादून की सड़कों पर चलाए जा रहे अतिक्रमण विरोधी महाअभियान को देखकर लगाया जा सकता है । बेशक राज्य निर्माण से अब तक अतिक्रमण के विरुद्ध चलाये गए तमाम अभियानों में यह सबसे बड़ा अभियान है। जिस तेजी से शहर की सड़कों में अतिक्रमण बढ़ता चला जा रहा था, पूर्ववर्ती सरकारों के असफल प्रयासों से अतिक्रमणकारियों के हौसले काफी बुलंद हो चुके थे। जब कभी नगर निगम या एमडीडीए की टीम अतिक्रमण के विरुद्ध कार्यवाही को निकलती तो राजनीतिक रसूख के चलते उन्हें अतिक्रमणकारियों के आगे झुकने को मजबूर होना पड़ता था। समय के साथ अतिक्रमण और अतिक्रमणकारियों के हौसले दोनों बढ़ते ही जा रहे थे। मुख्य मार्गों पर अधिकांश अतिक्रमण राजनीतिक रसूख वाले व्यापारियों द्वारा ही किया हुआ था। जिससे सरकार की अतिक्रमण विरोधी सारी कोशिशें नाकामयाब हो रही थी।
व्यापारियों की नाराजगी का जोखिम चुनाव में भारी पडऩे के डर से सरकारें हर बार हाथ खींच लेती थी। ऐसा प्रतीत होने लगा था कि शहर की सड़कों से अतिक्रमण हटाना नामुमकिन है, किंतु जब सरकार के मंत्री मजबूत इच्छा शक्ति के साथ कार्यवाही को अंजाम देने की ठान ले तो फिर सब कुछ मुमकिन है। मदन कौशिक जो कि देहरादून के प्रभारी मंत्री भी हैं, ने यह महाअभियान शुरू करने से पहले जिले के संबंधित विभागीय अधिकारियों के साथ रिक्शे पर बैठकर शहर की खूबसूरती को बिगाड़ रहे अतिक्रमण का मौका मुआयना किया और संबंधित विभागों के साथ बैठक में एक सयुंक्त टीम बनाकर इस रणनीति को अंजाम देने की कार्ययोजना पर काम किया। महाअभियान के दौरान धन की कमी आड़े न आए, इसके लिए सरकार से जरूरी बजट की अलग से व्यवस्था सुनिश्चित की।
इस महाअभियान के कारण मदन कौशिक को सबसे ज्यादा विरोध अपनी ही पार्टी के नेताओं और पार्षदों का झेलना पड़ा। अब तक के इस अभियान में दूनवासियों की नजर में विलेन की तरह उभरकर आये देहरादून बीजेपी के महानगर मंत्री और धर्मपुर सीट से विधानसभा का टिकट पाने में असफल रहे उमेश अग्रवाल की भूमिका रही है। जिनकी नजर अब देहरादून के मेयर की कुर्सी पर है। अपनी सरकार के विरुद्ध अतिक्रमणकारियों के पक्ष में खड़े भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेता और देहरादून के बड़े व्यवसायियों में शुमार अनिल गोयल की भूमिका भी जनता के बीच चर्चाओं में है, लेकिन अपनी ही पार्टी कार्यकर्ताओं के घोर विरोध और व्यापारियों द्वारा बंद से लेकर धरना प्रदर्शन तक कर लेने के बावजूद भी अपने निर्णय पर चट्टान की तरह अडिग मदन कौशिक ने जो राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है। उसने उन्हें जनता में भी काफी लोकप्रिय बना दिया है।
चुनाव के बाद मैदान से कद्दावर नेता के रूप में उभरकर आए मदन कौशिक उत्तराखंड के इतिहास में पहले ऐसे नेता हैं, जिनके लिए मुख्यमंत्री सचिवालय के द्वितीय तल पर कक्ष आवंटित किया गया है। सरकार के प्रवक्ता नियुक्त होने के कारण पूरे मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के बाद वह दूसरे मंत्री हैं। उन्हें सभी प्रमुख सचिव, सचिव, विभागाध्यक्ष अपने-अपने विभागों की जानकारियां उपलब्ध कराते हैं।
वोटों के नजरिए से भाजपा सरकार के लिए बहुत जोखिम भरा माना जा रहा यह अभियान खासकर तब, जब नगर निकाय के चुनाव में ज्यादा समय शेष नहीं है, लेकिन जिस चतुराई से मदन कौशिक इस मुहिम को अंजाम दे रहे हंै, उससे प्रेरित होकर पीडब्ल्यूडी, एमडीडीए और नगर निगम के अधिकारी भी इसे सफल बनाने में प्रयास शुरू कर दिए हैं। शहर की सड़कों की सफाई के साथ-साथ बाहरी क्षेत्रों में धड़ल्ले से हो रहे अवैध अतिक्रमण को साफ करने की चुनौती भी मदन कौशिक के सम्मुख है। अपनी ही पार्टी पदाधिकारियों के विरोध के बावजूद सरकार ने राजधर्म का पालन करते हुए जिस संकल्प शक्ति का परिचय दिया है, इसका सीधा लाभ जनता को मिलने लगा है। इस महाअभियान को कामयाब होता देख शहरी विकास मंत्री से प्रदेश की जनता की उम्मींदें भी बढ़ी हैं कि यह महा अभियान सिर्फ देहरादून शहर की सड़कों तक ही न सिमटकर रह जाए। यदि मदन कौशिक हरिद्वार, हल्द्वानी, ऊधमसिंहनगर व अन्य पर्वतीय जिलों में भी अपने संकल्प बल का परिचय दें दें तो प्रदेश की सूरत बदलने में देर नहीं लगेगी, जबकि दून के नाराज पार्टी कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह मंत्री जी का चुनावी क्षेत्र नहीं है। जिस वजह से वह अपनी इच्छा शक्ति का परिचय दे रहे हैं। जरा एक बार अपने विधानसभा क्षेत्र हरिद्वार में यह अभियान चला कर दिखाएं, वहां तो ज्यादा अतिक्रमण है, फिर जाने राजनीतिक इच्छाशक्ति क्या होती है।