गिरीश गैरोला
प्रसिद्ध कहावत है कि जो इंसान आसमान की तरफ थूकता है, थूक वापस उसके ही मुंह पर गिरता है। किंतु क्या आपको पता है कि जीवन में ऐसी परिस्थिति भी आ सकती है कि ऊपर को थूकने पर यदि वापस मुंह पर गिरे तो आप सही दिशा में हैं। आम तौर पर बर्फबारी पर्यटकों के चेहरे पर रोमांच ला देती है किंतु यह भी सच है कि 9000 फीट से अधिक ऊंचाई पर बर्फबारी किसी आपदा से कम नहीं है। भारत तिब्बत सीमा पर तैनात आईटीबीपी के जवान अक्सर इसी ऊंचाई पर अपनी पोस्टों में तैनात रहते हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी के बाद जब बर्फ का टीला एक नदी के रूप में ढलान पर बहने लगे तो इसे एवलांच कहा जाता है।
ऐसे बचें एवलांच से !
12 वीं बटालियन ITBP मातली के कमान अधिकारी डीपीएस रावत बताते हैं कि कई बार स्थानीय चरवाहों के साथ सीमा पर तैनात प्रहरी भी स्नो एवलांच की जद में आ जाते हैं , और कई फीट गहरी बर्फ में दब जाते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को यह पता नहीं होता कि वह किस स्थिति में दबा हुआ है। अर्थात उसका मुंह ऊपर की तरफ है अथवा नीचे की तरफ। ऐसे समय में व्यक्ति को लगातार थूकना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसका मुंह ऊपर की तरफ हो और जब थूकने के बाद यदि वापस थूक उसके मुंह में गिरे तो समझ लेना चाहिए कि उसका मुंह सही दिशा में ऊपर की तरफ है और यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो अपनी दिशा और जगह बदलते हुए तब तक थूकता रहे जब तक कि थूक वापस मुंह पर न गिरे। इसके बाद शरीर में हलचल रखते हुए कुछ जगह बनाने का प्रयास करें। साथ ही हाथ और पैर इस तरीके से चलाएं कि शरीर में गर्मी बनी रहे मुंह ऊपर की तरफ होने के बाद अपने हाथ और पैरों की मदद से अपने ऊपर गिरी बर्फ को हटाने का प्रयास किया जा सकता है।
यदि बर्फ के अंदर बैठने और मूवमेंट के लिए पर्याप्त जगह हो तो गड्ढे के अंदर मौजूद ऑक्सीजन के चलने तक व्यक्ति जीवित रह सकता है। क्योंकि उसके चारों तरफ की बर्फ इंसुलेशन का काम करती है और यदि व्यक्ति ज्यादा नहीं गीला नही हुआ है और गर्म कपड़े पहने है तो कम से कम ठंड से उसकी मौत नही होगी।
ऐसी दशा में व्यक्ति को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और धीरे-धीरे मदद आने तक हाथ और पैर की मूवमेंट से बर्फ को हटाने का कार्य जारी रखना चाहिए।