कुलदीप एस राणा
अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश चिकित्सा शिक्षा विभाग में अपने चहेते व्यक्ति को मोहरे के रूप में रखने के लिए चंद्रभान सिंह के रूप में एक नायाब नमूना उत्तराखंड में लाए हैं। उत्तराखंड में तमाम मेडिकल कॉलेज ए एन एम, जी एन एम सेंटर, नर्सिंग कॉलेज का निर्माण किया जाना है। इसके लिए केंद्र सरकार से भारी भरकम बजट भी मिल रहा है अब इस बजट को कैसे ठिकाने लगाया जाए इसके लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग को अपने हिसाब से हांकने के लिए एक विश्वसनीय व्यक्ति चाहिए था तो अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश उत्तर प्रदेश से सहायक अभियंता के पद पर चंद्रभान सिंह नाम के व्यक्ति को प्रतिनियुक्ति पर ले आए।
चंद्रभान सिंह की प्रतिनियुक्ति सभी नियम कायदों को तोड़ कर की गई है। यह नियुक्ति बिल्कुल अवैध है। चंद्रभान इस नियुक्ति के लिए बिल्कुल अयोग्य हैं। यह हम नहीं कह रहे बल्कि शासन और चिकित्सा शिक्षा विभाग के दस्तावेज चिल्ला-चिल्लाकर इसकी गवाही दे रहे हैं। ओमप्रकाश ने इस नियुक्ति को करने के लिए खुद को भी बुरी तरह फंसा रखा है। कहते हैं कि लालच में व्यक्ति अंधा हो जाता है। लगता है कि ओम प्रकाश चिकित्सा शिक्षा विभाग के भारी भरकम बजट को देखकर अंधे हो गए और उन्हें उत्तराखंड में कोई योग्य व्यक्ति नजर ही नहीं आया।
आइए जानते हैं ओमप्रकाश द्वारा लाए गए व्यक्ति किस तरह से अयोग्य हैं और इनकी नियुक्ति क्यों अवैध है !
सबसे पहले चंद्रभान की नियुक्ति प्रक्रिया से ही साफ पता चलता है कि चंद्रभान की जरूरत इस राज्य चिकित्सा शिक्षा विभाग को नहीं थी बल्कि इसकी जरूरत ओम प्रकाश को ही थी।
ओम प्रकाश जब स्वास्थ्य विभाग में थे तब उन्होंने चंद्रभान को उत्तराखंड बुलाया था। चंद्रभान सिंह को स्वास्थ्य विभाग ने उत्तराखंड बुलाने के लिए पत्र नहीं भेजा और ना ही स्वास्थ्य विभाग ने ऐसे किसी व्यक्ति की आवश्यकता बताई थी।
इसके बावजूद चंद्रभान सिंह ने उत्तराखंड में प्रतिनियुक्ति पर आने की इच्छा जताई थी। किंतु इस बीच ओमप्रकाश से स्वास्थ्य विभाग हट गया और उनके पास चिकित्सा शिक्षा विभाग आ गया। फिर क्या था ! चंद्रभान सिंह ने प्रतिनियुक्ति पर चिकित्सा शिक्षा विभाग में ज्वाइन कर दिया। चंद्रभान सिंह और ओमप्रकाश इस प्रकरण में ऐसे फंसते हैं कि चंद्रभान सिंह चिकित्सा शिक्षा विभाग में तो जून 2016 को ही प्रतिनियुक्ति पर आने की इच्छा जताई थी, जबकि फाइल का पेट भरने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग ने सितंबर 2017 में सहायक अभियंता की प्रतिनियुक्ति चिकित्सा शिक्षा विभाग में प्रतिनियुक्ति पर किसी व्यक्ति को लिए जाने की मांग की गई तो शासन में निचले स्तर के अधिकारियों ने प्रतिनियुक्ति पर आने की विज्ञप्ति निकालने की आवश्यकता जताई ।
ओम प्रकाश ने जानबूझकर प्रतिनियुक्ति के लिए विज्ञापन निकालने की आवश्यकता को नजरअंदाज कर दिया और अपने हस्ताक्षर से फाइल पर लिखा कि अन्य विभागों से कोई भी इंजीनियर प्रतिनियुक्ति पर नहीं आना चाहता और विभागों में इंजीनियरों की भी कमी है इसलिए उत्तर प्रदेश चंद्रभान सिंह को प्रतिनियुक्ति पर रख लिया जाए।
गौरतलब है कि चंद्रभान सिंह सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा है जबकि शासन में अधिकारियों ने इस बात पर आपत्ति व्यक्ति की और कहा कि चिकित्सा शिक्षा विभाग में इस पद पर आने की न्यूनतम योग्यता सिविल इंजीनियरिंग मे बीटेक है जबकि चंद्रभान केवल डिप्लोमा धारी है। इस तथ्य को भी ओम प्रकाश ने जानबूझकर फिर से नजरअंदाज कर दिया।
चंद्रभान सिंह के शैक्षिक दस्तावेजों पर उत्पन्न होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि नियुक्ति के 4 माह बीत जाने के बाद भी चंद्रभान अपने मूल दस्तावेज शासन में जमा नही कराए हैं और न ही चिकित्सा शिक्षा विभाग में ही उन्होंने अपने दस्तावेज जमा कराए।
जब उनसे शासन ने पूछा कि उनके शैक्षणिक दस्तावेज कहां हैं तो उन्होंने कहा कि वह चिकित्सा शिक्षा निदेशालय में जमा हैं। जबकि चिकित्सा शिक्षा विभाग का कहना है कि उनके शासन में जमा है। आखिर वह अपनी शैक्षणिक दस्तावेज जमा क्यों नहीं करा रहे हैं ! यह भी एक अहम सवाल है, जिसकी बारीकी से जांच की जानी जरूरी है। एक और मनमानी का आलम देखिए कि चंद्रभान इतने योग्य है कि वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश में चंद्रभान सिंह को सहायक अभियंता के पद से अन्वेषक तकनीकी के पद पर डिमोशन कर दिया गया था।
उत्तर प्रदेश में डिमोशन किए गए इस व्यक्ति में ओम प्रकाश को ऐसी क्या योग्यता नजर आई कि उसे उत्तराखंड लाकर दो वेतनमान ऊपर 5400 ग्रेड वेतन के क्लास 2 स्तर के सहायक अभियंता के पद पर प्रतिनियुक्ति दे दी गयी।
मजेदार बात यह है कि 4 माह बीतने के बाद भी चंद्रभान सिंह अपनी लास्ट पेज सर्टिफिकेट तक जमा नहीं करा पाए हैं। इससे चिकित्सा शिक्षा विभाग को भी यह पता नहीं लग पा रहा है कि उत्तर प्रदेश में उनकी आखिरी तनख्वाह क्या थी! उनके शैक्षणिक दस्तावेजों पर और वेतन आदि पर संदेह होने के कारण चिकित्सा शिक्षा विभाग ने अपनी गर्दन फंसते देखकर चंद्रभान सिंह का 4 माह से वेतन भी जारी नहीं किया है।
चंद्रभान सिंह आए दिन अलग-अलग स्थानों से दबाव डलवा रहे हैं। किंतु उन्हें वेतन जारी कर संभवतः विभाग फंसना नहीं चाहता।
अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने चंद्रभान सिंह की यह प्रतिनियुक्ति 3 वर्ष के लिए की है। इस पर भी एक तथ्य है कि उनकी नियुक्ति जुलाई 2016 के शासनादेश के आधार पर की गई है, उसकी वैधता जुलाई 2017 में ही समाप्त हो चुकी है। और वर्तमान नियमों के अनुसार उनकी प्रतिनियुक्ति निरंतर हर वर्ष विस्तारित की जानी है। नियमों के अनुसार तो उनकी प्रतिनियुक्ति समाप्त हो चुकी है। इसे बैकडेट से कराए जाने की तैयारी है ।
ओमप्रकाश का चंद्रभान सिंह को इतना संरक्षण है कि उनको निदेशालय से वाहन और राजकीय दून मेडिकल कॉलेज से टाइप 3 का आवास तक आवंटित कर दिया गया है ।एक तरफ तो बाय लॉज में व्यवस्था ना होने के बावजूद भी चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय को दून विश्वविद्यालय कॉलेज के परिसर में जगह नहीं दी जा रही है वहीं निदेशालय के चंद्रभान को नियम विरुद्ध आवास भी आवंटन करवा दिया गया है।
अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश जिस नायाब हीरे को उत्तराखंड में प्रतिनियुक्ति पर लेकर आए हैं उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद 1988 में ग्रामीण विकास अभिकरण में अन्वेषण तकनीकी के पद पर नौकरी की शुरुआत की थी और आज 29 वर्ष की सेवा के बाद भी वह उत्तर प्रदेश में अपने मूल विभाग में अन्वेषण तकनीकी के पायदान पर ही पांव जमाए पड़े हैं। आखिर इतने सालों में उनका प्रमोशन क्यों नहीं हो सका! यह भी एक अहम सवाल है।
क्या ओमप्रकाश को यहां बेरोजगार घूम रहे बीटेक डिग्रीधारी नजर नहीं आए जो एक डिप्लोमाधारी अयोग्य व्यक्ति को उत्तराखंड में 2 वेतनमान ऊपर बिठा दिया।
एक और तथ्य देखिए कि जब चंद्रभान ने स्वास्थ्य विभाग में प्रतिनियुक्ति पर आने के लिए आवेदन किया था और उनके मूल विभाग ग्रामीण विकास अभिकरण चंद्रभान को अपने अनापत्ति प्रमाण पत्र में स्वास्थ्य विभाग के लिए ही रिलीज किया था तो फिर उन्होंने चिकित्सा शिक्षा निदेशालय में किस नियम के तहत ज्वाइन कर लिया!
ओमप्रकाश ने चंद्रभान सिंह को मनमाने तरीके से उत्तराखंड में प्रतिनियुक्ति देकर यह साबित कर दिया है कि वह जो मर्जी आए करते रहेंगे और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इससे कुछ सवाल खड़े होते हैं।
पहला सवाल यह कि जब प्रतिनियुक्ति का यह पद सिविल इंजीनियरिंग से बीटेक डिग्रीधारी के लिए था तो इस पर महज डिप्लोमाधारी को प्रतिनियुक्ति पर क्यों लाया गया ?
दूसरा सवाल यह है कि उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं को आउटसोर्स करने के बजाए उत्तर प्रदेश में डिमोशन पाए और 29 वर्ष से एक ही पद पर अटके व्यक्ति को क्यों लाया गया ?
तीसरा सवाल यह है कि प्रतिनियुक्ति के लिए विज्ञापन क्यों नहीं निकाला गया ?
चौथा सवाल यह है कि जब चंद्रभान ने स्वास्थ्य विभाग के लिए आवेदन किया था और उनके मूल विभाग में भी उन्हें स्वास्थ्य विभाग के लिए ही रिलीव किया था तो उन्हें चिकित्सा शिक्षा विभाग में क्यों और कैसे ज्वाइन कराया गया ?
पांचवा सवाल है कि चंद्रभान सिंह ने अभी तक अपने मूल शैक्षणिक दस्तावेज और लास्ट पे सर्टिफिकेट क्यों जमा नहीं कराया ?
छठा सवाल यह है कि अगर उत्तर प्रदेश से अलग राज्य उत्तराखंड बनने के बाद भी उत्तर प्रदेश के अयोग्य लोगों को उत्तराखंड में प्रतिनियुक्ति पर लाना है तो इस राज्य को बनाने की जरूरत ही क्या थी ?
इन सब सवालों की अच्छे ढंग से पड़ताल हो जाए तो ओमप्रकाश को पद का दुरुपयोग करने के आरोप में सजा से कोई नहीं बचा सकता। लेकिन ओम प्रकाश तो इस तरह का प्रकाश बन चुका है कि जिनके लिए यह कहावत है कि घर को लगी आग घर के चिराग से।
प्रिय पाठकों ! आप लगातार ओमप्रकाश के घपले-घोटालों को उजागर करते 11 एपिसोड पर चुके हैं। यह एपिसोड सिर्फ मनोरंजन अथवा सतही जानकारी के लिए नहीं है। यह सारे तथ्य पर्वतजन टीम ने बड़ी मेहनत से आपके समक्ष खोजबीन करके प्रस्तुत किए हैं। आपसे निवेदन है कि आप इन तथ्यों को अधिक से अधिक प्रचारित-प्रसारित करें। सरकार से इसका जवाब मांगिए और पूछिए कि आपके हकों पर यह डाका कब तक पड़ता रहेगा ! यदि आप अपने हक का सवाल मांगना शुरु कर दें तभी हमारे लिखने की सार्थकता है। आपने ध्यानपूर्वक पढ़ा , इसके लिए आपका धन्यवाद!!