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कर्ज में डूबे आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या हुई पांच

July 13, 2017
in पर्वतजन
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बैंक का कर्ज न चुका पाने के कारण मौत को गले लगा लेने वाले रुद्रपुर के बलविंदर सिंह पांचवें किसान हैं। अब तक नई सरकार में चार किसान मौत को गले लगा चुके हैं।
पिछले दिनों रुद्रपुर के एक और किसान ने आत्महत्या कर ली। बलविंदर नाम के इस किसान को पीएनबी से नोटिस आया था कि ३० जून तक ७ लाख ५० हजार रुपए चुका दे। १३ साल पहले साढे ४ लाख का लिया हुआ ऋण आखिरकार किसान को ले डूबा। बैंक से अंतिम नोटिस आने के बाद भी रकम का इंतजाम न होने पर बलविंदर ने घर पर ही जहर खा लिया। यदि सरकार ने पिछली आत्महत्याओं से सबक लेकर कुछ ठोस उपाय और आश्वासन बंधाए होते तो शायद बलविंदर की उम्मीद यूं न टूटती।
सबसे पहले २८ दिसंबर २०१३ को नैनीताल जिले में मल्ला ओखलकांडा के रहने वाले जीत सिंह वोरा ने भी जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। जीत सिंह बैंक ऑफ बड़ौदा से नगदी फसलों के लिए दो लाख का लिया गया ऋण नहीं चुका पाया था। जीत सिंह नगदी फसल उगाता था, लेकिन जाड़ों की बारिश में धूप न निकलने से सारी फसल सड़ गई थी। बैंक वसूली का नोटिस आने पर किसान ने मौत को गले लगा लिया था।
पिथौरागढ़ के डुुंगरी गांव के सुरेंद्र सिंह ने दो लाख रुपए के कृषि ऋण न चुका पाने के कारण आत्महत्या की तो यह राजनीतिक मुद्दा बन गया था। सुरेंद्र सिंह की आत्महत्या के बाद खटीमा के एक और किसान रामऔतार ने भी खेत में खड़े पेड़ पर झूलकर आत्महत्या कर ली। २५ जून की रात हल्दी पचपेड़ा कंचनपुरी निवासी रामऔतार (४६) धान की रोपाई में लगे पानी को देखने के बहाने निकला, लेकिन जब घर नहीं लौटा तो छोटा भाई अनंतराम खोज में निकला और उसे पेड़ से लटका पाया। इस किसान पर विभिन्न बैंकों का ७ लाख कर्ज था।
इधर इसी बीच टिहरी के प्रतापनगर ब्लॉक के पुजार गांव के किसान दिनेश सेमवाल के भी आत्महत्या का मामला सामने आया है। वह भी बैंकों द्वारा कर्ज वसूली के लिए बनाए जा रहे दबाव से तनाव में था।
कांग्रेस ने टिहरी और ऊधमसिंहनगर में पूर्व विधायक विक्रम सिंह नेगी और नारायण सिंह बिष्ट के नेतृत्व में टीम भी भेजी। कांग्रेस इसे मुद्दा बनाना चाहती है।
कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह कहते हैं कि सरकार सौ दिन की नाकामियों को ढकने के लिए जश्न मना रही है और किसान जान दे रहे हैं। कांग्रेस महाराष्ट्र, कर्नाटक और पंजाब की तर्ज पर उत्तराखंड में भी किसानों की कर्ज माफी की मांग कर रही है।
सुरेंद्र की आत्महत्या ने खोली असलियत
सरकार से सुविधा के नाम पर कुछ भी नही मिलने और खेतों में होने वाली उपज को जंगली जानवरों के द्वारा नुकसान पहुंचाने और परिवार के भरण पोषण के लिए दुकानों से लेकर गांवों के लोगों को कर्ज और बैंकों के ऋण के बोझ तले दबे बेरीनाग के सिरतोला डोलडुगरी गांव के इसाई समुदाय के 60 वर्षीय किसान सुरेन्द्र सिंह को इतना अधिक मानसिक तनाव हो गया था कि उसने इससे मुक्ति पाने के लिए अपना जीवन ही खत्म कर दिया।
आत्महत्याओं का सिलसिला रोकने के लिए जरूरी है कि सरकार को जल्द ही कुछ ठोस उपाय करने पड़ेंगे। वरना किसानों की आत्महत्याओं का ये सिलसिला संक्रामक रूप ले सकता है। आने वाले दिनों में एकीकरण के विरोध में कृषि और उद्यान विभाग के तेज हो रहे सरकार विरोधी आंदोलनों के बाद सरकार की छवि किसान विरोधी रूप अख्तियार कर सकती है। इससे आने वाले पंचायती चुनाव में सरकार को खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है।


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