पिथौरागढ़ के डुुंगरी गांव के सुरेंद्र सिंह ने दो लाख रुपए के कृषि ऋण न चुका पाने के कारण आत्महत्या की तो यह राजनीतिक मुद्दा बन गया है। सुरेंद्र सिंह की आत्महत्या के बाद खटीमा के एक और किसान रामऔतार ने भी खेत में खड़े पेड़ पर झूलकर आत्महत्या कर ली। २५ जून की रात हल्दी पचपेड़ा कंचनपुरी निवासी रामऔतार (४६) धान की रोपाई में लगे पानी को देखने के बहाने निकला, लेकिन जब घर नहीं लौटा तो छोटा भाई अनंतराम खोज में निकला और उसे पेड़ से लटका पाया। इस किसान पर विभिन्न बैंकों का ७ लाख कर्ज था।
इधर इसी बीच टिहरी के प्रतापनगर ब्लॉक के पुजार गांव के किसान दिनेश सेमवाल के भी आत्महत्या का मामला सामने आया है। वह भी बैंकों द्वारा कर्ज वसूली के लिए बनाए जा रहे दबाव से तनाव में था।
सबसे पहले २८ दिसंबर २०१३ को नैनीताल जिले में मल्ला ओखलकांडा के रहने वाले जीत सिंह वोरा ने भी जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। जीत सिंह बैंक ऑफ बड़ौदा से नगदी फसलों के लिए दो लाख का लिया गया ऋण नहीं चुका पाया था। जीत सिंह नगदी फसल उगाता था, लेकिन जाड़ों की बारिश में धूप न निकलने से सारी फसल सड़ गई थी। बैंक वसूली का नोटिस आने पर किसान ने मौत को गले लगा लिया था।
कांग्रेस ने टिहरी और ऊधमसिंहनगर में पूर्व विधायक विक्रम सिंह नेगी और नारायण सिंह बिष्ट के नेतृत्व में टीम भेजी है। कांग्रेस इसे मुद्दा बनाना चाहती है।
कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह कहते हैं कि सरकार सौ दिन की नाकामियों को ढकने के लिए जश्न मना रही है और किसान जान दे रहे हैं। कांग्रेस महाराष्ट्र, कर्नाटक और पंजाब की तर्ज पर उत्तराखंड में भी किसानों की कर्ज माफी की मांग कर रही है।
कांग्रेस द्वारा यह मुद्दा लपकते देख मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी तीन सदस्यीय दल को मृतक किसान के घर रवाना कर दिया है। अब देखना यह है कि प्रदेश सरकार मृतक किसान के परिजनों को कितनी राहत दे पाती है!