गिरीश गैरोला
न पहाड़ की चुनौतियां राहों की रुकावट बनीं, न संसाधनों का संकट कोई समस्या खड़ी कर पाया और न ही कई बार की मायूसी मंजिल तक पहुंचने में मुसीबत बनी।
ये कहानी एक ऐसे नौजवान की है जिसने अपने हौसले को कभी हारने नहीं दिया और हिमालय की ऊंची चोटियों का दीदार कराने वाली सोर घाटी से लेकर समंदर की लहरों तक का सफर तय किया है। पहाड़ के इस लाल ने अपनी काबिलियत की बदौलत अपनी मातृ भूमि का नाम रोशन किया है।
सीमांत जिले पिथौरागढ़ के मड़ खड़ायत गांव के प्रदीप सिंह खड़ायत उर्फ ‘बिज्जू’ ने मेहनत, लगन और जज्बे के दम पर इंडियन नेवी में असिस्टेंट कमांडेंट का पद हासिल किया है। बचपन से ही कुछ कर गुजरने की चाहत रखने वाले प्रदीप ने तमाम चुनौतियों का मुकाबला किया और छोटे से शहर से निकलकर ऊंचा मुकाम हासिल करने में कामयाबी हासिल की। प्रदीप खड़ायत ने गांव के स्कूल से ही प्राइमरी एजूकेशन ली और कुमाऊं यूनिवर्सिटी के पिथौरागढ़ डिग्री कॉलेज से BSC तक की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के दौरान ही प्रदीप ने देश सेवा के लिए भारतीय सेना का हिस्सा बनने की ठानी। अपना सपना साकार करने के लिए प्रदीप ने NDA, CDS के कई एग्जाम दिए लेकिन सफलता कदम चूमते-चूमते रह गई। कई बार मिली निराशा के बाद भी प्रदीप ने हिम्मत नहीं हारी और दिन-रात मेहनत जारी रखी। इसी मेहनत का नतीजा है कि आज प्रदीप भारतीय नौसेना में अफसर बने हैं। प्रदीप सिंह खड़ायत अपने परिवार के आर्मी बैकग्राउंड से काफी प्रभावित रहे हैं।
प्रदीप सिंह खड़ायत अपने परिवार के आर्मी बैकग्राउंड से काफी प्रभावित रहे हैं। प्रदीप के दादा दिवंगत त्रिलोक सिंह खड़ायत ने सेना में बतौर सूबेदार मेजर रहकर देश की सेवा की, प्रदीप के पिता भगवान सिंह खड़ायत भी सेना में सूबेदार मेजर के पद से रिटायर हुए हैं। दादा और पिता के देश सेवा में योगदान को आगे बढ़ाते हुए प्रदीप अब सेना में अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करेंगे। प्रदीप खड़ायत का नेवी में अफसर चुना जाना सिर्फ नौकरी पाना भर नहीं है बल्कि उन तमाम नौजवानों के लिए एक नजीर भी है जो मामूली नाकामी के बाद मायूस हो जाते हैं, कभी संसाधनों का रोना रोते हैं, कभी छोटे शहरों का होने की वजह से कुछ बड़ा न कर पाने का बहाना बनाते हैं। प्रदीप खड़ायत ने ये भी साबित किया है कि अगर हिम्मत, हौसला और सच्ची लगन हो तो कोई भी मुकाम हासिल करना नामुमकिन नहीं है।