मध्य सीमा क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण पर वरिश्ठ पत्रकार और विदेष मामलों के जानकार हरिष्चद्र चंदोला का विष्लेशण
भारत-चीन (तिब्बत) के मध्यर्व्ती सीमाक्षेत्र जो उत्तराखंड राज्य में पड्ता है, में कुछ तनाव की स्थिति बनती मालूम पड्ती है। । लगभग दस दिन पहले एक चीनी हेलीकौप्टर या वायुयान भारतीय सीमा क्षेत्र में उड्ता दिखाई दिया। इस खबर की पुश्टि अखबारों में दिल्ली के किसी अधिकारी या संस्था द्वारा की गई।
उसके दूसर तथा तीसरे दिन भारतिय वायु सेना के जहाज इस क्षेत्र में मंडराने लगे लेकिन दूसरे दिन उन्हें उस चीनी आकाषीय अतिक्रमण का क्या सुराग मिलता।? केवल यही बताया जाता कि भारत उस क्षेत्र में सकृयता से नज़र रखे है।
भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस तथा फौज के सीमान्त ब्रिगेड के कार्यालय तथा मुख्यालय यहां जोषिमठ में हैं ़ दोनों के अधिकारियों से जब इस चीनी हवाई गतिविधि के बारे में पूछा गया तो उनका उत्तर था कि वे इस विशय पर कुछ नहीं कहना चाहेंगे ।। सीमा पुलिस तथा सेना की चौकियंा सरहद के पास हैं और उन्हें इस अतिक्रमण के बारे में ज्ञान होना चाहिए।
सीमा पर घास का बहुत बडा ढालवाला क्षेत्र, बडा होती, ठीक दोनों देषों की सीमा पर स्तित है, जो कि विवादित माना जाता है ।। वहां तिब्बत तथा उत्तराखंड सीमांत के चरवाहे अपनी भेडों तथा याकों को चराने ग्रीष्म में पंहुंच षीतकाल तक रहते ह़ैं उन चरवाहों को उस सीमा पर सब गतिविधियां दिखाई देती हैं। और उन्हें वहां जो कुछ भी होता है उसका ज्ञान रहता है। सीमा रक्षक तो कभी कभी ही गस्त पर निकल स्तिथि का ज्ञान प्राप्त करते हैं ़ लेकिन भारतीय पषुचारक तो सदैव ही पषुओं के साथ् बाहर खुले में रहते हैं और जो कुछ भी वहां हो रहा होता है उसकी जानकारी रखते हैं उन्हें पता होता है कि कब, कहंा चीनी फौजी आए
चीनी सैनिक कभी कुछ कागज या सिगरेट इत्यादि के ड्ब्बिे सीमा में छोड जाते है। उन्हें सरहद पर तैनात रक्षक उठा जोषीमठ ले आते थे। यहां फौज एक चीनी भाशा का षिक्षा केन्द्र दस साल से चल रहा था जो चीनी कागज़ों का अनुवाद कर लेता था। उस केंन्द्र को पिछले वर्श, पता नहीं क्यों, बंद कर दिया गया। और अब चीनियों के छोडे सामान-कागजों को दे्खा, पढवाया जाना नहीं हो पाता। षिक्षा केन्द्र बंद होने के बाद अब वह संभव नहीं है।
चीनी अतिक्रमण को गुप्त रखना भारत के हित में नहीं हो सकता। उसके बडे प्रचार की आवष्यकता भी नहीं है, लेकिन सरह्दी लोगों को सतर्क रखने की जरूरत अवष्य है।
मैं १९६२ में चीन के साथ उत्तरपूर्व में हुए युद्ध की याद दिलाना चहता हूं। चीनी फौज तब भारत में १॰॰ किलोमीटर से अधिक अंदर घुस एक पूृरे भारतीय ब्रिगेड को बंदी बना ल्हासा, तिब्बत, ले गई थी। चीनी सेना ने पैदल ही भारत मंे प्रवेष किया था।
यह असंभव होगा कि बडी संख्या में इतनी दूर तक आते चीनी सैनिको को। वहां के स्थानीय लोगों ने न देखा हो। किन्तु कोई भी स्थ्ानीय निवासी भारतीय सैनिकों को सतर्क करने नहीं आया।।
लडाई के समय स्थानीय लोगों की महत्वपूृृृृृर्ण भूमिका होती है। उनके द्वारा बहुत आवष्यक खबरें प्राप्त हो जाती हैं।
क्या अधिकारीगण उत्तराखंड के सीमांत निवासियों को सरहद पर होनेवाली गतिविधियों की खबरों से बंचित रखना चाहते हैं? अभी हाल में जो चीनी तथाकथित अतिक्रमण हुआ उसकी इस क्षेत्र के लोगों को जानकारी देना उचित होता। उसके बारे में अफवाह फैलाने की आवष्यता नहीं थी। लेकिन स्थ्ानीय लोगों को जानकारी देना ठीक रहता, ताकि लोग सतर्क रह सकते। सीमा पर जनता तथा सेना या सीमांत पुलिस का संपर्क आवष्यक है। उसकी अनदेखी करना देष को लाभकारी नहीं होगा। अधिकारियों का यह कहना कि उन्हें चीनी सेना की घुसपैठ गतिविधियों का कोई ज्ञान नहीं है, लोगों तथा देष के हित मे नहीं होगा। सरहदी लोगों को सर्त्क रखना देष के हित में ही होगा। यह ज़िम्मेदारी सरहद में तैनात अधिकारियों की होनी चाहिए ़ उनका यह कहना कि उन्हें कुछ नहीं पता है कहना उचित नहीं होगा