खेल मंत्री अरविंद पांडे महिला खिलाड़ियों के साथ खेल संघों द्वारा किए जाने वाले यौन उत्पीड़न के बयान को लेकर बुरी तरह घिर गए हैं।
महिला आयोग ने भी खेल मंत्री के बयानों का संज्ञान लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को पत्र लिखकर कहा है कि कैबिनेट मंत्री का बयान बेहद गंभीर है और इस पर जांच करके तत्काल कार्यवाही की जाए। महिला आयोग की अध्यक्ष सरोजिनी कैंतुरा ने कहा है कि उन्होंने मुख्यमंत्री से इस पर कार्यवाही करने को कहा है। साथ ही वह महिला खिलाड़ियों से भी मिलकर हकीकत से रूबरू होंगी।
महिला आयोग की सचिव रमिंद्री मंद्रवाल का कहना है कि मुख्यमंत्री को इस आशय का एक पत्र फैक्स द्वारा 27 दिसंबर को ही भेज दिया गया है।

दूसरी तरफ तमाम खेल संघ और राजनीतिक पार्टियों सहित सामाजिक संगठन भी खेल मंत्री के बयान को लेकर कड़ी निंदा कर रहे हैं।
पर्वतजन के पाठकों को याद होगा कि पर्वतजन ने 23 दिसंबर को ही मंत्री अरविंद पांडे के बयान का एक वीडियो प्रकाशित किया था। इसके बाद यह ख़बर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और तमाम चैनलों तथा अखबारों ने भी खेल मंत्री को लेकर जो घेराबंदी की, उसका जवाब अब कैबिनेट मंत्री से देते नहीं बन रहा है।
आज खेल संघों के साथ एक बैठक के बाद खेल मंत्री ने अपनी रणनीति में बदलाव किया। किंतु अपने बयान का बचाव करते करते वह फिर से अपने बयानों में ही और भी अधिक उलझ गए हैं।
खेल संघों की आक्रामकता को कम करने के लिए एक ओर खेल मंत्री ने चुग्गा फेंका कि वह हर हालत में जनवरी अंत तक क्रिकेट एसोसिएशन को मान्यता दिला देंगे। इससे एक क्रिकेट एसोसिएशन जो कि बैठक में शामिल थी यह तेवर थोड़ा सा नरम है। किंतु बाकी क्रिकेट एसोसिएशन ने इस बैठक का बहिष्कार कर दिया था।
अन्य खेल संघों का रुख नरम करने के लिए मंत्री ने अपने बयान में संशोधन किया और कहा कि वह सभी खेल संघों के लिए नहीं कह रहे हैं बल्कि उनका क्रिकेट एसोसिएशन को लेकर के उक्त बयान था।
अपने बयान का बचाव करने के दौरान खेल मंत्री सवालों में ही उलझ गए। खेल मंत्री ने क्या कहा और किस तरह से वह खुद ही अपने तर्कों में फंस गए जरा आप भी सुनिए।
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खेल मंत्री एक ओर कह रहे हैं कि महिला खिलाड़ियों ने उनको इस मामले को उठाने के लिए कहा तथा हर प्रकार का सहयोग देने के लिए और साथ में खड़े होने के लिए कहा है। दूसरी तरफ खेल मंत्री खुद ही कह रहे हैं कि वह नहीं चाहते कि इससे यौन उत्पीड़न का शिकार हुई महिला खिलाड़ियों की बदनामी हो इसलिए वह खामोश है।
उनकी एक और बात सुनिए- खेल मंत्री कह रहे हैं कि यदि वह लड़कियां मीडिया के सामने आकर के कहे तो वह पूरा सहयोग करने को तैयार हैं। इस पर सवाल खड़ा होता है कि आखिर जब सुप्रीम कोर्ट के भी निर्देश है कि यौन उत्पीड़न का शिकार महिला को सार्वजनिक रुप से अपनी पहचान उजागर करने की जरूरत नहीं है और यदि कोई मीडिया या फिर अन्य व्यक्ति उनकी पहचान को उजागर करता है तो यह भी एक सही संगेय अपराध है तो फिर कैबिनेट मंत्री महिलाओं को सार्वजनिक रूप से सामने आने को क्यों कह रहे हैं?

जाहिर है कि इससे महिलाओं पर एक तरह से मनोवैज्ञानिक दबाव बन जाएगा और वह अपनी बात को आगे कहने से डरेगी।
यदि वह सार्वजनिक रूप से सामने आ ही गई तो फिर कैबिनेट मंत्री का काम ही क्या है! फिर तो पुलिस और कोर्ट ही पर्याप्त है।
कैबिनेट मंत्री अपने बयान में यह कहते हुए भी सुने जा सकते हैं कि वह खेल संघों को सुधरने का मौका दे रहे हैं । आखिर खेल मंत्री यह मौका देना ही क्यों चाहते हैं! जब उनसे पूछा गया कि वह सबूतों को छुपा क्यों रहे हैं और क्या यह अपराध नहीं है तो खेल मंत्री का कहना है कि वह भली भांति जानते हैं कि सबूतों को छुपाना एक अपराध है और कोई चाहे तो उनके खिलाफ इस मामले में भी मुकदमा दर्ज करा सकता है। उन्हें इसकी परवाह नहीं है ।
एक और क्रिकेट एसोसिएशन ने हाईकोर्ट में मामला लंबित होने का हवाला देते हुए कैबिनेट मंत्री की बैठक का बहिष्कार कर दिया तो दूसरी ओर महिला आयोग ने इस मामले का संज्ञान ले लिया है ।जाहिर है कि मामला इतनी जल्दी सुलझने वाला नहीं है।
राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सरोजनी कैंतुरा कांग्रेस सरकार के कार्यकाल से आयोग के अध्यक्ष पद पर हैं। ऐसे में लगता नहीं कि वह भाजपा सरकार के किसी प्रकार के दबाव में आएंगी।
वैसे भी आयोग की पहचान अपनी निष्पक्षता के लिए ही है ऐसे में लगता नहीं की इस मुद्दे का इतनी जल्दी पटाक्षेप होगा।