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पुत्रमोह में धृतराष्ट्र बने मुख्य सचिव

August 23, 2017
in पर्वतजन
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कुलदीप एस राणा//

—विकलांग पुत्र बनेगा परमानेंट फिजियोथैरेपिस्ट

—तीन साल पहले आउटसोर्सिंग पर लगे पहाड़ के फिजियोथैरेपिस्ट को जबरन किया गया था बाहर।

—योग्य खा रहे हैं धक्का चहेते हो रहे पक्का

लगता है कि शासन में मुख्यसचिव पद पर बैठे एस रामास्वामी पुत्र मोह में इस कदर अंधे हो चुके है कि अपनी संतान के आगे उन्हें नियम कायदे कानून और शासन व्यवस्था की कोई परवाह नहीं दिख रही। शासन के सबसे उच्च पद पर बैठे रामास्वामी पर यूं प्रदेश की शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने की मुख्य जिम्मेदारी है लेकिन अपने पुत्र हर्षवर्धन के भविष्य को सुरक्षित करने के मोह में उन्हें राज्य के हजारों बेरोजगारों के भविष्य की कोई चिंता नही  दिख रही ।

ये भी पढ़ें//मुख्य सचिव का जंगलराज

अपने पद का दुरुपयोग करते हुए पहले तो मुख्य सचिव एस रामास्वामी ने अपने पुत्र हर्षवर्धन को उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में  उपनल के माध्यम से 20 हजार रुपये के वेतनमान पर संविदा में नियुक्त करवाया,हर्षवर्धन की नियुक्ति ने नियुक्ति प्रक्रिया पर पहले ही कई सवाल खड़े कर दिए क्योंकि नियुक्ति से पूर्व हर्षवर्धन का कोई भी मेडीकल टेस्ट नहीं लिया गया था। तत्पश्चात रामास्वामी ने विवि में नियुक्ति के कुछ वर्ष बाद मानकों को तोड़- मरोड़ कर हर्षवर्धन को  देहरादून के जिला अस्पताल में  फिजियोथेरिपिस्ट के पद पर प्रतिनियुक्त करा दिया।  मुख्यसचिव के इस कारनामे के विरुद्ध कोई भी आवाज उठाने की जुर्रत नही कर सका।
हर्षवर्धन को दून जिला अस्पताल में वेतन भत्ते की आड़ में उपनल के वेतनमान से भी अधिक राशि का भुगतान किया जाता रहा । रामास्वामी का पुत्र मोह यहीं पूर्ण नही हुआ। संविदा पर हुई हर्षवर्धन की नियुक्ति के बाद अब रामास्वामी आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में अपने पुत्र को स्थायी नियुक्ति दिलाने की दिशा मे गुपचुप तरीके से मिशनरत हैं।

कुछ समय पूर्व ही प्रभारी कुलपति उमेश कुमार त्रिपाठी द्वारा आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में विभिन्न पदों पर नियुक्ति हेतु विज्ञप्ति प्रकशित की गई थी। जिसके पश्चात रामास्वामी ने अपने पुत्र को विश्वविद्यालय परिसर में बने अस्पताल में स्थायी रूप से नियुक्त करने के उद्देश्य से नियुक्ति नियमावली के मानकों मे परिवर्तन कर फाइल को अनुमोदन हेतु कुलाधिपति राज्यपाल केके पॉल के पास भेज दिया। हालांकि इसे राज्यपाल ने  पुनः विचार के लिए वापस शासन को लौटा दिया। राजभवन से लौटी यह फ़ाइल काफी समय बीत जाने के बाद भी संबंधित विभाग तक नही पहुँच पाई है। नियमानुसार यदि सरकार इस फ़ाइल को अनुमोदन के लिए दुबारा राजभवन भेजती है तो राज्यपाल इसे अस्वीकृत नही कर सकेंगे।
पहले कयास लगाए जा रहे थे कि मुख्य सचिव के पुत्र की नियुक्ति के लिए कैबिनेट के माध्यम से नियमावली का शिथिलीकरण किया जाएगा। 23 अगस्त को होने जा रही कैबिनेट में फिलहाल यह एजेंडा शामिल नहीं है।

ऐसे जुगाड़ हुआ मुख्य सचिव के पुत्र की नियुक्ति का

ताज्जुब देखिए कि मुख्य सचिव के पुत्र हर्षवर्धन की नियुक्ति के लिए आदेश उत्तराखंड शासन द्वारा जारी किए गए थे और उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में उनके पुत्र के लिए बाकायदा एक फिजियोथेरेपिस्ट का पद सृजित किया गया था।
एक और कारनामा देखिए कि 5 अक्टूबर २०१५ को उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय द्वारा उपनल से मास्टर ऑफ फिजियोथेरेपिस्ट की शैक्षिक अर्हता वाले कार्मिक उपलब्ध कराने की मांग की गई और ६ अक्टूबर को उपनल ने इस पद के लिए मुख्य सचिव के पुत्र को सबसे बेहतरीन कंडीडेट मानते हुए नियुक्ति पत्र भी जारी कर दिया। 14 अक्टूबर को हर्षवर्धन ने विश्वविद्यालय में ज्वाइन भी कर दिया।
उत्तराखंड रक्षा मोर्चा के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी उपनल को बैकडोर भर्तियों का अड्डा बताते हुए कहते हैं कि क्या उपनल को मुख्य सचिव का विकलांग पुत्र ही सबसे योग्य व्यक्ति लगा! श्री नेगी कहते हैं कि उपनल की स्थापना पूर्व सैनिकों अथवा उनके आश्रितों को नियुक्ति देने के लिए की गई थी, किंतु रामास्वामी जैसे नौकरशाहों ने इसे अपने पुत्र-पुत्रियों की बेरोजगारी दूर करने का माध्यम बना डाला।
मुख्य सचिव के पुत्र को अब उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में नियमित नियुक्ति के लिए अंदरखाने क्या खिचड़ी पक रही है, इस पर खुलकर विश्वविद्यालय और उत्तराखंड शासन के अधिकारी कुछ कहने को तैयार नहीं हैं।

जीरो टोलरेंस की सरकार के मुख्यसचिव के यह कारनामे शासन में बैठे अधिकारी और कर्मचारियों के मनोबल को सुशासन का पाठ पढ़ाने में कितना सहायक होंगे यह तो समय ही बताएगा।


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