भूपेंद्र कुमार
उत्तराखंड सरकार में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जहां विभिन्न विकास योजनाओं के लिए अधिक से अधिक बजट स्वीकृत कराने के लिए भारत सरकार के विभिन्न मंत्रियों की मान मनौवल कर रहे हैं, वहीं उनके अपने मंत्री आपस में बुरी तरह भिड़ गए हैं।
पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज अपनी उपेक्षा से खिन्न होकर पशुपालन मंत्री रेखा आर्य के कार्यक्रम में टांग अड़ा चुके हैं तो शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे हरक सिंह रावत की राह में टांग अड़ा कर खड़े हो गए हैं।
इन सब का नुकसान इन इन चारों मंत्रियों के अलग अलग मंत्रालयों को भी भुगतना तय है। साथ ही इसका असर इन चारों मंत्रियों की अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में होने वाली विकास योजनाओं पर भी पड़ना लाजमी माना जा रहा है।
यदि जल्दी ही मुख्यमंत्री ने हस्तक्षेप नहीं किया तो आसार यह हैं कि जल्दी ही उन चारों मंत्रियों की लड़ाई दो गुटों का रूप ले सकती है। फिर पूरी सरकार और विधायक दो गुटों में बंट सकते हैं।
इसमें सरकार से असंतुष्ट मंत्री-विधायक जो अब तक तटस्थ चल रहे थे, वह भी किसी न किसी खेमे में शामिल होकर आग में घी डालने का काम कर सकते हैं।
सरकार की गृह युद्ध की इस आग में अपनी-अपनी रोटियां सेंकने को पहले से ही तैयार बैठे भाजपा के क्षत्रप भी हवा देने का काम कर सकते हैं। हालांकि यह छत्रप अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की नाराजगी का खतरा होने के कारण दूर से ही तेल और तेल की धार देख रहे हैं।
ताजा मामला पशुपालन मंत्री रेखा आर्य द्वारा शुरू होने वाले 23-24 फरवरी को “बकरी स्वयंबर” के कार्यक्रम में सतपाल महाराज के अड़ंगा लगाने का है। सतपाल महाराज के अड़ंगा लगाने से रेखा आर्य की 22 फरवरी वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस निरस्त हो गई। हालांकि रेखा आर्य ने सतपाल महाराज के किसी अड़ंगे की जानकारी होने से इनकार किया है।
जबकि सतपाल महाराज ने कहा है कि संस्कृति मंत्री होने के नाते बकरी स्वयंबर में होने वाले वेद मंत्रों के उच्चारण से उनको आपत्ति है। हालात यह है कि दोनों मंत्रियों ने आपस में इस बारे में कोई बात नहीं की है।
पाठकों को याद होगा कि इन दोनों मंत्रियों की खटास नई नहीं है। पिछली कांग्रेस सरकार में दल-बदल के दौरान सतपाल महाराज ने जब भाजपा ज्वाइन की थी तो भगत सिंह कोश्यारी ने कहा था कि सतपाल महाराज अपने चेलों को भी लेकर आएं। इस पर सतपाल महाराज ने रेखा आर्य की ओर इशारा करते हुए तंज कसा था कि भगत सिंह कोश्यारी पहले अपनी चेली को लेकर आएं। तब वह अपने चेलों को भी ले आएंगे। भगत सिंह कोश्यारी रेखा आर्य को तो भाजपा में ले आए लेकिन सतपाल महाराज का कोई भी समर्थक विधायक भाजपा में नहीं आया।
इसके बाद यह तनातनी खत्म होने के बजाय बढ़ती चली गई है। सरकार द्वारा उपेक्षित चल रहे सतपाल महाराज पिछले दिनों भाजपा संगठन के एक कार्यक्रम में जानबूझकर सबसे पिछली कुर्सी पर जा बैठे थे और अपनी उपेक्षा जनित नाराजगी का सार्वजनिक इजहार भी किया था। रेखा आर्य के कार्यक्रम में टांग अड़ाना उसी नाराजगी का विस्तार है।
यदि मुख्यमंत्री ने जल्दी ही इस मामले में मध्यस्थता नहीं की तो हालात बिगड़ने की संभावना भी है। सतपाल महाराज पौड़ी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं और हरिद्वार लोकसभा के भी दावेदार हैं। इसी तरह से रेखा आर्य अल्मोड़ा लोकसभा सीट पर भी तैयारी कर रही हैं। इस लड़ाई का असर अल्मोड़ा और पौड़ी लोकसभा क्षेत्र की विधानसभा पर पड़ना लाजमी है। क्योंकि यह दोनों मंत्री एक दूसरे के क्षेत्रों में अपनी विकास योजनाओं का बजट घटा लेंगे।
सतपाल महाराज के पास सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, लघु सिंचाई, पर्यटन, संस्कृति जैसे मंत्रालय हैं तो रेखा आर्य के पास बाल विकास, पशुपालन, मत्स्यपालन जैसे मंत्रालय हैं। इन दोनों दिग्गजों की लड़ाई का असर उत्तराखंड के विकास पर पड़ना तय है।
इसी तरह का द्वंदयुद्ध हरक सिंह रावत और अरविंद पांडे में छिड़ा हुआ है। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने शिक्षा विभाग की अधिकारी दमयंती रावत की श्रम विभाग में नियम विरुद्ध प्रतिनियुक्ति पर ना सिर्फ कलम चला दी है बल्कि अनुशासनिक कार्यवाही की शुरुआत भी कर दी है। इससे हरक सिंह रावत तिलमिलाए हुए हैं। हरक सिंह रावत के पास वन, श्रम तथा आयुष एवं आयुष शिक्षा जैसे मंत्रालय हैं तो अरविंद पांडे शिक्षा, खेल, युवा कल्याण जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाले हुए हैं।
इन दोनों मंत्रियों की आपसी टकराहट से इन दोनों के क्षेत्रों में संबंधित विभागों से होने वाले विकास कार्यों का कबाड़ा होना तय है।
हरक सिंह रावत पौड़ी लोकसभा सीट को लेकर महत्वाकांक्षी हैं तो अरविंद पांडे अपने सहयोगी बलराज पासी के लिए नैनीताल लोकसभा सीट को तैयार कर रहे हैं। ऐसे में इन दोनों के मिशन में ब्रेक लगने हिचकोले खाने के लक्षण हैं।
इस तकरार से भी अभी तक मुख्यमंत्री ने अपने आपको अलग रखा हुआ है। इन सब आपसी मनभेद और मतभेद के बीच मंत्रियों के विभाग बदले जाने और उनके कामकाज की समीक्षा होने के साथ-साथ मंत्रियों के दिल्ली दौरे पर आपत्ति जैसी ख़बरें इस लड़ाई को थामने के बजाय और अधिक बढ़ाने वाली सिद्ध हो रही हैं।
इन चारों मंत्रियों की आपसी टकराहट इस हद तक आगे बढ़ गई है कि बिना हस्तक्षेप के हालात सुधरने वाले नहीं हैं। हालात सुधारने के लिए मुख्यमंत्री को न सिर्फ हस्तक्षेप करना होगा बल्कि इन सबको साथ में लेकर चलने और सहयोग का भी भरोसा जगाना होगा। यदि यह टकराहट और बढ़ी तो सवाल घूम-फिरकर नेतृत्व पर ही खड़े होंगे। यह तनातनी दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ है।