अक्टूबर के अंतिम दिनों में पौड़ी से एक गंभीर मरीज दून हॉस्पिटल लाया गया। इस पर इमरजेंसी स्टाफ ने तीमारदारों से लिखकर ले लिया कि यहां आईसीयू खाली नहीं है। हम अपनी मर्जी से यहां भर्ती करवा रहे हैं, जिसकी जिम्मेदारी हमारी होगी! अब मरता क्या न करता, दोराहे पर खड़े तंगहाल तीमारदार को वहां मरीज भर्ती करना पड़ा। खैर, ऊपर वाले की कृपादृष्टि से मरीज ठीक हो गया, लेकिन सवाल यह है कि इतने बड़े अस्पताल में आईसीयू की पर्याप्त व्यवस्था क्यों नहीं है? जब दून में ही ये हाल है तो त्यूणी में झूला पुल पर बच्चे को जन्म देने वाली घटना को महसूस किया जा सकता है। अक्सर मरीज को अस्पताल से अन्यत्र ले जाते वक्त तीमारदारों को डराया जाता है कि आप मरीज को अपनी मर्जी से यहां से ले जा रहे हो। अगर कोई अनहोनी हो गई तो इसकी हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी और आपको लिखकर देना पड़ेगा कि हम स्वेच्छा से मरीज को ले जा रहे हैं, लेकिन यहां इसका ठीक उल्टा हुआ और मरीज भर्ती करने को लिखकर देना पड़ा।
अब देखना यह है कि बड़े-बड़े दावे करने में माहिर प्रदेश सरकार दून हॉस्पिटल की व्यवस्था कब तक पटरी पर ला पाती है!