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यूपी में सस्पेंड, यूके में डायरेक्टर!

July 31, 2017
in पर्वतजन
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विनोद कोठियाल//

राज्य बनने के दौरान कई अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोपों में जांच चल रही थी तो कई अधिकारी सस्पेंड थे। वे उत्तराखंड आकर अपनी फाइलें गायब कराके मलाईदार पदों पर डट गए। रेशम विभाग के सेवानिवृत्त डायरेक्टर सुधीर मोहन शर्मा भी ऐसे ही खिलाड़ी हैं

ऊंची पहुंच और सेटिंग-गेटिंग में माहिर खिलाड़ी सेवानिवृत्त निदेशक रेशम विभाग आजकल रेशम विभाग में सलाहकार बनने के लिए तिकड़म लगाने को लेकर खासे चर्चाओं में हैं। सेवानिवृत्त निदेशक सुधीर मोहन शर्मा का विवादों से नाता कोई नई बात नहीं है। वे उत्तर प्रदेश के समय से ही काफी चर्चित हैं।
वर्ष १९९९ में जब शर्मा उपनिदेशक नैनीताल थे, तब इन पर एक लाख ९६ हजार ५६० रुपए के गबन का आरोप लगा। कार्यवाही की प्रक्रिया जैसे ही शुरू हुई, मानो बिल्ली के भाग्य से छींका ही टूट गया। ठीक उसी समय अलग राज्य उत्तराखंड का निर्माण हो गया। राज्य बनने की आपाधापी और कोई ठीक से कार्य का संचालन और रूपरेखा न होने के कारण इस प्रकार के अधिकारियों का एकमात्र एजेंडा था कि किसी भी तरह से मामले को ठिकाने लगाया जाए। हुआ भी वहीं, इस प्रकार के कई विवादित अधिकारी, जो तत्कालीन उत्तर प्रदेश में कार्यरत थे, सीधा दुम दबाकर उत्तराखंड भागे और इनकी आरोपों की फाइलें अभी तक किसी के हत्थे नहीं चढ़ी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सेटिंग कितनी ठोस की गई थी।
सुधीर मोहन शर्मा को गबन के एक आरोप में लखनऊ से २६ जून १९९९ को निलंबित किया गया और २८ जून १९९९ को ही उत्तर प्रदेश इसी क्रम में ६ फरवरी २००२ को उत्तर प्रदेश शासन के अनुसचिव द्वारा पत्र प्रेषित कर अवगत कराया गया कि सुधीर मोहन शर्मा की दिसंबर १९९९ से शासन स्तर पर लंबित जांच उत्तराखंड शासन को पत्र संख्या २१५७/७४-२०००-२1/एस/२००० दिनांक ३० अक्टूबर २००० के माध्यम से उत्तराखंड शासन को भेजी जा चुकी है। लिहाजा जांच का जिम्मा उत्तराखंड शासन का है।
अब सवाल यह है कि जब उत्तर प्रदेश ने पत्रावली को उत्तराखंड के लिए भेज दिया और जांच लंबित होना बताया गया है तो फिर शर्मा को किसके आदेशों से बहाली मिली, जबकि मूल पत्रावली आज तक नहीं मिली है। इस पूरे प्रकरण में सारा खेल सेटिंग का ही प्रतीत होता है।
सुधीर मोहन शर्मा का प्रमोशन भी आचार संहिता से ठीक एक दिन पहले ३ जनवरी २०१७ को होना अपने आप में संदिग्ध है। इस प्रकार से सेटिंग-गेटिंग का माहिर खिलाड़ी किस तरह से निदेशक तक की कुर्सी पर काबिज हुआ और अब सलाहकार के पद के लिए एड़ी-चोटी के जोर लगा रहा है।
शासन द्वारा इनके विरुद्ध जांच बिठाई गई। इस क्रम में जांच अधिकारी डा. प्रताप सिंह गुसाईं अपर निदेशक रेशम को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। आदेश में स्पष्ट लिखा था कि जांच अधिकारी द्वारा एक माह के भीतर जांच पूरी कर समस्त अभिलेखों के साथ अपनी जांच रिपोर्ट नियुक्ति अधिकारी को सौंपी जाए। जांच में क्या जांच हुई, दोषी पाया गया कि निर्दोष यह कोई अता-पता नहीं है और न ही इसके कोई दस्तावेज शर्मा की पत्रावली में हैं। इसके बाद सीधे १२ मई २००० को एक आदेश निर्गत हुआ कि शासन के आदेशों के क्रम में सुधीर मोहन शर्मा को बहाल किया जाता है और वह अपना वेतन देहरादून से आहरित करेंगे।
इससे पहले क्या कार्यवाही हुई, यह रहस्य का विषय है। सूचना के अधिकार में मांगी गई सूचनाओं में उत्तर प्रदेश शासन द्वारा अवगत कराया गया है कि समस्त संबंधित दस्तावेज उत्तराखंड भेजे जा चुके हैं, जबकि उत्तराखंड शासन में कोई इस प्रकार के दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं, जबकि सूचना में लोक सूचना अधिकारी रेशम विभाग उत्तर प्रदेश शासन द्वारा अवगत कराया गया कि सुधीर मोहन शर्मा का तैनाती के संबंध में कोई पृथक से आदेश पारित नहीं किए गए हैं, जबकि ऐसे ही किसी अज्ञात आदेश का हवाला देते हुए इन्हें सवेतन बहाल किया गया और देहरादून संबद्ध किया गया।

यूपी नियमावली के अनुसार निदेशक रेशम का पद आईएएस था, लेकिन उत्तराखंड में २ फरवरी २००२ को निदेशक का पद तकनीकी कर लिया गया, लेकिन ये परिवर्तन किस कमेटी ने किया, यह अभी रहस्य ही बना हुआ है। इसमें खास बात यह रही कि उपनिदेशक सीधे संयुक्त निदेशक पद को छोड़ते हुए सीधे निदेशक के पद पर पहुंच गया, जबकि उत्तराखंड की पहली नियमावली वर्ष २०११ में बनी।
वर्ष २०११ में बनी नियमावली में यूपी नियमावली के उलट नियम बनाए गए। तकनीकी पदों पर शैक्षिक योग्यता में रेशम प्रशिक्षण एक अनिवार्य योग्यता थी, जिसे इसमें हटा दिया गया। इसके पीछे भी भाई-भतीजावाद रहा और अपने लोगों को विभाग में समायोजित करने का लक्ष्य रखा गया।
जाहिर है बिना रेशम प्रशिक्षण प्राप्त छात्र यदि विभाग में आएंगे तो स्वाभाविक है कि प्रदेश में रेशम विभाग रसातल में चला जाएगा। और हुआ भी यही है। उत्तराखंड में १७ वर्षों में रेशम विभाग की सालाना आय एक करोड़ भी नहीं हो सकी। होता यह है कि विभाग में रेशम प्रशिक्षित छात्रों का चयन किया जाता, तभी प्रदेश में रेशम विभाग व प्रदेश का विकास आधुनिक तकनीक के साथ हो पाता।


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