“सारे जहां से अच्छा गुलिस्तां हमारा” मशहूर कवि इकबाल ने यह बात भले ही भारत के लिए कही हो किंतु भारत जिन दिलों में महकता है, उस गुलिस्तां का परिचय आज हम आपसे करा रहे हैं।
जी हां ! यह गुलिस्तां अपने परिवार की सात बहनों में सबसे छोटी बहन है और आजकल अपने परिवार की आजीविका के लिए पिछले 1 महीने से रिक्शा चला रही हैं। गुलिस्ता देहरादून में अकेली युवती है जो रिक्शा चलाती है ।
गुलिस्तां कहती हैं कि उनके पिता की वर्ष 2000 में मृत्यु के बाद पांच बहनों की शादी में उनका इंदर रोड का घर भी बिक गया। इसके बाद उन्हें पास ही किराए के मकान में आना पड़ा और परिवार की रोजी-रोटी चलाने के लिए गुलिस्तां को 2जून की रोटी जुटाने के लिए घर से बाहर निकलना पड़ा।
गुलिस्ता ने कुछ दुकानों में कभी सेल्सगर्ल की नौकरी की तो कभी किसी फैक्ट्री में मजदूरी। एक महीने पहले गुलिस्तां मोहब्बेवाला स्थित एक दवा फैक्ट्री में काम कर रही थी। ₹6000 की तनख्वाह में PF कटने के बाद हाथ में सिर्फ ₹4000 आते थे।
इससे पूरे परिवार की 2 जून की रोटी जुटनी बमुश्किल हो रही थी। फिर भी गुलिस्तां ने हार नहीं मानी और कुछ अपना काम करने की ठानी।
किंतु क्या करें यह समझ में नहीं आया। थोड़ा सोच विचार के बाद उन्हें लगा कि उन्हें स्कूटी चलानी तो आती ही है, क्यों ना उसका ई रिक्शा पर हाथ आजमाया जाए!
परिवार की माली हालत के चलते गुलिस्ता एक भी बार यह नही सोचा कि रिक्शाचालक पुरुष वर्चस्व वाला क्षेत्र है और ऐसे में अकेली कैसे देहरादून की सड़कों पर रिक्शा खींचेगी।
एक बार यह ठान लिया कि रिक्शा चलाएगी तो फिर दूसरा सवाल यह आया कि आखिर रिक्शा खरीदने के लिए पैसे कहां से आएंगे !
गुलिस्ता ने यह बात अपने अपने मामा को बताई तो मामा ने रिक्शा खरीदने के लिए डाउन पेमेंट 36000 शोरूम को देने के लिए हामी भर दी।
किंतु अब दूसरा सवाल था कि किराए के मकान पर रहने वाली मात्र ₹4000 घर लाने वाली गुलिस्तां को कैसे फाइनेंस करें! इन गरीबों की क्या गारंटी होगी!
ऐसे मुश्किल वक्त में गुलिस्तां के मकान मालिक आगे आए और उन्होंने गुलिस्ता की गारंटी दी।
बैंक लोन देने के लिए तैयार हो गया और गुलिस्तां जिंदगी की नई डगर पर रिक्शा खींचने के लिए खुशी-खुशी सड़कों पर उतर आई।
गुलिस्ता कहती है कि उन्हें देहरादून में रिक्शा चलाते हुए जरा भी अजीब नहीं लगता। बल्कि उन्हें देखने वाले बड़े बुजुर्ग उनकी हौसला अफजाई करते हैं और तारीफ ही करते हैं बहरहाल गुलिस्तां खुश है और उनके परिवार में खुशियां फिर से लौट आई है। प्रिय पाठकों यदि आप चाहते हैं की मुफलिसी को कोसने वाले लोग भी ऐसे उदाहरणों से प्रेरणा लें तो सफलता की इस इबारत को शेयर जरुर करें। क्या पता सिडकुल की फैक्ट्रियों में मजदूरी में खट रहे किस की किस्मत किस्मत पलटी खा जाए।