राजकीय मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य की पत्नी भी उसी कालेज में प्राध्यापक हैं। उन पर आरोप है कि वह अक्सर पढ़ाने के समय पर कालेज से नदारद रहती हैं।
कुलदीप एस. राणा
मेडिकल एजुकेशन के नाम पर अराजकता का अड्डा बन चुके राजकीय दून मेडिकल कॉलेज की गलियों में इन दिनों एक बार फिर प्रिंसिपल डॉ. प्रदीप भारती और उनकी पत्नी डा. सोना कौशल गुप्ता की मनमानियों के चर्चे गरम हैं।
प्रिंसिपल डा. प्रदीप भारती के डर से वैसे तो कोई खुल कर कुछ भी कहने से डर रहा है, लेकिन दबी जुबान में सभी इनके कारनामों से परेशान हैं। शुरुआत से ही मेडिकल कालेज फैकल्टी प्रोफेसरों की कमी से जूझ रहा है। कोई भी प्रोफेसर साल-छह माह से अधिक यहां टिकता नहीं है और अब यहां मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्र छात्राएं फैकल्टी मेंबर डा. सोना की लापरवाहियों का खामियाजा भुगतने को मजबूर हो रहे हैं।
एनजीओ में व्यस्त है मैडम
डा. सोना दून मेडिकल कॉलेज में बायोकेमिस्ट्री की एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर संविदा में नियुक्त हैं, किंतु उनका अधिकांश समय बच्चों को पढ़ाने के बजाय अपनी संस्था के प्रमोशन कार्यों में ज्यादा गुजरता है और इसके लिए तो वे कभी-कभी कई दिनों तक कॉलेज से गायब रहती हैं।
दरअसल डा. सोना की परी फाउंडेशन के नाम से एक संस्था है, जिसे इन्होंने 2008 में शुरू किया था और इस संस्था की वेबसाइट पर फाउंडर डायरेक्टर ने डा. सोना का नाम अंकित है। परी फाउंडेशन नाम की यह संस्था युवाओं, वयस्कों और विद्यार्थियों में नशा एवं तनाव से मुक्ति के उपायों पर लेक्चर और वर्कशॉप आयोजित करती रहती है। जहां उन्हें तनाव व नशे से मुक्ति के गुर सिखाए जाते हैं। एक तरफ तो डा. सोना लोगों को पढ़ाई और परीक्षा के दौरान होने वाले तनाव से मुक्ति के उपाय बताती हैं। वहीं छात्र उनकी क्लास से अनुपस्थिति के कारण हो रहे पढ़ाई के नुकसान से हमेशा तनाव में घिरे नजर आते हैं। कोई उनके खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत नहीं कर पाता, क्योंकि डा. सोना मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डा. प्रदीप भारती की श्रीमती जो हैं। उन्हें रोकने टोकने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। डा. प्रदीप भारती का भी अपनी पत्नी को खुला समर्थन है। वह जब मन करे कालेज आती हैं और जब मन किया वहां से चली जाती हैं, मन किया तो विद्यार्थियों को पढ़ाया, नहीं किया तो नहीं पढ़ाया। कई-कई दिन तक क्लास में न आने के बावजूद भी उनकी उपस्थिति कभी कम नहीं होती है और न ही कभी उनके वेतन में कोई कटौती कर सकता है। हालांकि डा. सोना का कहना है कि वह कालेज का काम पूरा करने के उपरांत ही संस्था संबंधी अपने कार्यों को करती हैं। बकौल डा. सोना ”मैंने अपना कोर्स एवं पे्रक्टिकल संबंधी कार्य पूरे करवा लिए हैं। प्रिंसीपल की पत्नी होने में मेरा कोई दोष तो नहीं है। और जैसे कालेज के अन्य लोगों के लिए वाहन की सुविधा है, वैसे ही मुझे भी इसका लाभ मिलता है।
सुविधाएं हजम काम खतम
संस्था के कामों में प्रिंसिपल की पत्नी को कोई परेशानी न हो, इसके लिए कॉलेज के खर्चे पर श्रीमती जी के लिए एक कार की व्यवस्था भी कर रखी है। नियमानुसार इसके लिए वह योग्य भी नहीं है। इन सबके बावजूद भी प्रिंसीपल अपनी संस्था के विकास कार्य में ही जुटे रहते हैं। प्रिंसिपल भारती गुप्ता अपनी पत्नी के साथ अलकनंदा एंक्लेव स्थित आवास में रहते हैं, लेकिन कॉलेज कैंपस में भी उन्होंने 4 बैडरूम वाला एक आवास अपने लिए आवंटित करवा रखा है। डा. सोना ने नियुक्ति के समय संस्था संबंधी जानकारी को शासन-प्रशासन से छुपाकर रखा। कायदे से उन्हें इस बारे में शासन को अवगत कराना चाहिए था।
डा. सोना के संदर्भ में प्रिंसीपल डा. प्रदीप भारती का कहना है कि यह उनके विरोधियों का प्रोपेगंडा है। वह अपने सभी कार्य नियमानुसार ही संपन्न करने का दावा करती हैं।
आखिर किसकी शह पर यह दंपत्ति कॉलेजों से मोटी-मोटी तनख्वाह तो ले रहे हैं, किंतु काम अपनी संस्था को आगे बढ़ाने का कर रहे है! छात्रों के भविष्य के साथ हो रहे इस खिलवाड़ पर कोई कार्यवाही क्यों संभव नहीं हो पाती है। क्या यह मुख्यमंत्री की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति के दायरे में नहीं आते! छात्रों को इन सवालों का अभी भी इंतजार है।