मुख्यमंत्री को गुमराह कर राज्य आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र DMMC को राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण एस डी एम ए.मे विलय किया जा रहा है। आज कैबिनेट में जल्दबाजी में यह विषय रखा जाएगा। पिछले 10 वर्षों से नियमित रूप से डीएमएमसी में कार्य कर रहे कर्मचारी इसका विरोध कर रहे हैं। क्योंकि विलय में केवल 7 पदों का ही विलय किया जाएगा जबकि डीएमएमसी में 45 लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने इस विषय पर विधिक राय लेने के निर्देश दिए थे लेकिन अफसरों ने मुख्यमंत्री के निर्देशों को भी दरकिनार कर दिया। इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि अब आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को वर्ल्ड बैंक से फंडिंग हो रही है और कुछ चहेतों को मोटी तनख्वाह पर नौकरी दी जानी है ।
इसमें कुछ अहम सवाल खड़े हो रहे हैं। पहला सवाल यह है कि जब विलय किया ही जाना है तो केवल 7 कार्मिकों का ही विलय क्यों किया जा रहा है! बाकी 10 वर्षों से नियमित काम कर रहे और राज्य सेवा के लिए आउट ऑफ एज हो चुके कर्मचारियों की सेवा और अनुभव को क्यों नजरअंदाज कर दिया जा रहा है। दूसरा सवाल यह है कि DM MC स्वायत्तशासी संस्थान है। किसी भी स्वायत्तशासी संस्थान का शासकीय विभाग ढांचे में विलय नहीं किया जा सकता
भारत सरकार में भी एनडीएमए तथा एन आई डी एम साथ साथ कार्य कर रहे हैं। गुजरात में भी जी एस डी एम ए व जी आईटीएम एक साथ कार्य कर रहे हैं।
उड़ीसा में एसडीएमए तथा ओ आई डी एम साथ ही कार्य कर रहे हैं ।अर्थात जब अन्य राज्यों में भी इसी प्रक्रिया में दो संस्थान क्रियाशील किए जा रहे हैं। तो उत्तराखंड में दोनों संस्थानों को स्थापित करने के बजाए दोनों को ध्वस्त किया जाना गंभीर सवाल खड़े करता है ।एक सवाल यह भी है कि DM MC में इन कार्मिकों की नियुक्ति नियमानुसार विज्ञप्ति जारी करके और इंटरव्यू के माध्यम से की गई थी। फिर शासन इन्हें बाहर करने पर क्यों तुला हुआ है!
इस संबंध में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अनुरोध कर चुके हैं कि एक नई संस्था के गठन के लिए 16 वर्षों से कार्य कर रही संस्था को बंद करना तर्कसंगत नहीं होगा।
राज्य युवा कल्याण परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष रविंद्र जुगरान भी मुख्यमंत्री से इस संस्थान को खतम न करने का अनुरोध कर चुके हैं।
आज सभी की नजरें आज होने वाली कैबिनेट के निर्णय पर टिकी है। यदि सरकार ने हठधर्मिता दिखाते हुए इस संस्थान को खत्म कर दिया तो इससे राज्य को आपदा राहत बचाव तथा प्रशिक्षण का अनुभव रखने वाले कर्मचारियों से वंचित तो होना ही पड़ेगा साथ ही सरकार की छवि पर भी बुरा असर पड़ेगा।