मालगुजारी बंद हो गयी किन्तु राजा का कर नहीं देने पर मलगुजारों द्वारा दी जाने वाली सजा की आज भी गवाह है गोरसाली की ये जेल!
गिरीश गैरोला
आज से 100 वर्ष पूर्व राजे रजवाडों के समय मे जब न तो मोटर थी और न ही सड़क, तब भी समाज मे ‘कर व्यवस्था’ थी और इस सामाजिक व्यवस्था मे बाधा डालने वालों को दंडित करने वालों के लिए सजा का भी प्रविधान था।
आरंभिक काल मे शारीरिक शक्ति से भरपूर बीर भडों की कहानियों से लोकगीत भरे पड़े हैं। उसके बाद राजशाही में मालगुजारी व्यवस्था हुई और उन्ही के पास ‘कर’ एव अन्य सामाजिक व्यवस्थाओं के पालन कि ज़िम्मेदारी आन पड़ी।
उत्तरकाशी जनपद मे गोरसाली गांव के 71 वर्षीय बुजुर्ग कमल सिंह राणा कहते हैं कि उनके बाप – दादाओं से कहानियों मे सुना है कि पंचायती कारोबार की नाफरमानी करने पर हाथ-पैर बांध कर सजा के तौर पर जेल मे डाले जाने की व्यवस्था थी।
उत्तरकाशी के टकनौर क्षेत्र मे गोरसाली गांव मे मौजूद पौराणिक जेल का एक हिस्सा बदलते समय के साथ अब घर का रूप ले चुका है और भाई-बाँट के बाद इसमे परिवर्तन भी कर दिया गया है। फिर भी पुरखों की याद को जिंदा रखने के लिए जेल का एक हिस्सा आज भी अपने पुराने स्वरूप मे मौजूद है।
जेल तीन मंज़िला है और कैदी को सबसे ऊपरी मंजिल से नीचे उतारा जाता था। निचली मंजिल मे रोशनी के लिए छोटी खिड़की ही थी और कोई दरवाजा नहीं था।
सजा समाप्त होने पर निचले कमरे से कैदी को ऊपर निकालने के लिए सीढी का प्रयोग किया जाता था। वर्तमान मे इस पीढ़ी के कृष्ण राणा ही गांव मे अपने परिवार के साथ निवास कर रहे हैं बाकी सभी लोग गांव से पलायन कर अन्यत्र बस चुके हैं।ण
गांव के ही वीरेंद्र सिंह पँवार ने बताया कि उस जमाने मे शिंगया और ढेबरी दो भाई बीर भड के रूप मे विख्यात थे और अपने शारीरिक बल की परख के लिए वे दूसरों के अन्न कोठारों पर भी धावा बोलते थे और विरोध करने वालों को युद्ध की चेतवानी देते थे। तत्कालीन व्यवस्था मे इन दोनों भाइयों सींगिया और ढेबरी को ही गांव का जागीरदार बना दिया गया और पंचायत के फैसलों की नाफरमानी करने वालों को सजा देकर जेल मे डालने का अधिकार भी दे दिया गया। कालांतर मे राजाओं द्वारा भी इन्ही बीर भड़ों को मालगुज़ार नामित किया गया।
जिन पर सरकारी कर जमा करवाने और सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने की ज़िम्मेदारी दी गयी। उस वक्त तक भी इस जेल का बराबर उपयोग होता रहा। आज भी क्षेत्र के आठ गांवों लाटा , सेंज , जखोल , गोरसाली , जोंकाणी , पोखरी और गैरी आठ गांवों को मिलकर अठगांई कहा जाता है। जिसका एक मालगुज़ार होता था।कालांतर मे मालगुजारी की इस व्यवस्था को काला कानून बताकर इसको समाप्त कर दिया गया।किन्तु मलगुजारों द्वारा दी जाने वाली सजा की गवाह ये जेल आज भी इतिहास की धरोहर के रूप मे मौजूद है।