महकमे के मठाधीशों के पेंच कसिए जरा सरकार..
कहीं ये पूरे सूबे को ही पीपीपी न कर डालें
महकमे के अफसर पीपीपी की गंगा में डुबकी को आतुर
अजय रावत ‘अजेय’
पौड़ी। सरकार… बुरा न मानियेगा, सूबे की अवाम की सेहत का महकमा तो संभले नहीं संभल रहा है। पौड़ी जिला अस्पताल को पीपीपी मोड पर दिये जाने पर महाभारत शुरू हो गई है। सरकार की मंशा पर शुरू होने से पहले ही विरोध के स्वर बुलंद हो गये हैं। सरकार स्वास्थ्य सेवाओं की बेहत्तरी की दुहाई दे रही है तो विपक्ष वर्ल्ड बैंक के बजट को ठिकाने लगाने का आरोप लगा रहा है। कुछ समय पूर्व सरकार द्वारा टिहरी अस्पताल को पीपीपी मोड पर देने की कागजी कार्यवाही पूरी कर ली गई है, जबकि हालिया फैसले के मुताबिक पौड़ी जनपद के जिला चिकित्सालय पौड़ी, सीएचसी घंडियाल व पाबौ को भी पीपीपी मोड पर देने की तैयारी शुरू कर दी गई है। पीपीपी मोड की आड़ में सरकार द्वारा ऐसे अस्पतालों को ही पीपीपी मोड पर देने की तैयारी की जा रही है जिनके संचालन में निजी संस्थाएं सहर्ष तैयार हैं। जाहिर है इन संस्थाओं की नजर उन्ही अस्पतालों पर है जो उन्हे अपने कारोबार की दृष्टि से सुगम नजर आते हों। सरकार द्वारा पीपीपी मोड के जरिए कारोबार करने वाली संस्थाओं से मिलीभगत कर ऐसे अस्पतालों को नीलाम करने की पूरी तैयारी कर ली गई है। सरकार द्वारा केवल उन्ही अस्पतालों को पीपीपी मोड पर देने का प्रस्ताव किया जा रहा है जो कारोबारी संस्थाओं के मुनाफे के लिए मुफीद हों।
महकमे के अफसर पीपीपी की गंगा में डुबकी को आतुर
सरकार सुना है कुछ बड़े संस्थान प्रदेश के राजकीय रुग्णालयों को पीपीपी मोड में लेकर निरीह जनता पर परोपकार करने को उत्साहित हैं, और महकमे के अफसर पीपीपी की गंगा में डुबकी को आतुर.. पर सवाल यह कि इन तथाकथित चैरिटी ट्रस्टों की रुचि सिर्फ सुगम के अस्पतालों को पीपीपी करने में क्यों है, इन्हें ऋषिकेश, डोईवाला पौड़ी टिहरी ही नजर आ रहे हैं। यदि पीपीपी ही रुग्ण हो चुके रुग्णालयों को जिंदा रखने की आखिरी खुराक है तो क्यों नहीं ये परोपकारी ट्रस्ट भटवाड़ी, थराली, जोशीमठ, मुनस्यारी, नैनीडांडा, लोहाघाट जैसे जरूरतमंद अस्पतालों में रुचि लेते।
महकमे के मठाधीशों की पेंच कसिए जरा
कहीं, इन राजकीय अस्पतालों को अपने अस्पताल का रेफेरेल काउंटर बनाने की मंशा तो नहीं इनकी..? और दुर्भाग्य यह कि महकमे के गिद्ध भी कुछ टुकड़े गोश्त के लालच में सूबे के अच्छे खासे सरकारी अस्पतालों को बर्बाद करने पर आमादा हैं, ताकि उन्हें पीपीपी के लायक बदहाल साबित किया जा सके, महकमे के अफसरों के खेल की तस्दीक करता है.. मेरे सरकार थोड़ा संज्ञान लीजियेगा, महकमे के मठाधीशों की पेंच कसिए जरा.. कहीं ये पूरे सूबे को ही पीपीपी न कर डालें।
बजट ठिकाने लगाने का खेल- नवल किशोर
सरकार के इस फैसले का विरोध करते हुए पौड़ी से कांग्रेस के टिकट पर 2017 का चुनाव लड़ चुके कांग्रेस के बरिष्ठ नेता नवल किशोर का सरकार पर सीधा आरोप है कि पौड़ी अस्पताल को पीपीपी मोड पर दिये जाने का पूरा खेल पैंसों को ठिकाने लगाने के लिए खेला जा रहा है। नवल किशोर के मुताबिक पौड़ी जिला चिकित्सालय में डाॅक्टर उपलब्ध हैं। कई डाॅक्टरों के स्वयं के अनुरोध पर पौड़ी स्थानान्तरण किया गया है। यह उन डाॅक्टरों के साथ भी धोखा है। पौड़ी से कोई भी गंभीर मरीज 3 से 4 घंटे में देहरादून लाया जा सकता है। सरकार को अगर पीपीपी मोड पर देने ही थे तो दुर्गम क्षेत्रों के अस्पताल देने चाहिए थे। सुगम अस्पतालों को पीपीपी मोड पर दिया जाना सीधे-सीधे बजट को ठिकाने लगाने के खेल की तरफ इशारे करता है।
पौड़ी में मिलेंगी आधुनिक स्वास्थ्य सुविधायें-कोहली
कांग्रेस के आरापों पर पलटवार करते हुए पौड़ी विधायक मुकेश कोहली ने कहा कि विधायक बनने के पास उनकी पहली प्राथमिकता पौड़ी में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहत्तर बनाना था। उनके अथक प्रयासों से पौड़ी जिला अस्पताल में 19 की अपेक्षा वर्तमान में 18 डाॅक्टर तैनात है। पिछले डेढ साल में स्वास्थ्य सेवाओं में व्यापक सुधार आया है। हम इनको और बेहत्तर बनाने के लिए प्रयासरत हैं। हमारी कोशिश है कि निकट भविष्य में पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को ईलाज के लिए देहरादून न आना पड़े। पौड़ी में बेहत्तर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पीपीपी मोड पर दिया जा रहा है। जिसके बाद प्रशिक्षित डाॅक्टर और तमाम सुविधायें यहां मिलेंगी।
डोईवाला अस्पताल बना हुआ रैफर सेंटर
वर्तमान में पीपीपी मोड पर चल रहे डोईवाला अस्पताल के हालात भी ठीक नहीं हैं, यह भी रैफरल सैंटर से अधिक कुछ नहीं रह गया है। सरकार के सोच के अनुसार इस अस्पताल में काम होता हुआ नहीं दिख रहा है। कहां सरकार की सोच थी कि डोईवाला में स्थानीय लोगों को आधुनिक स्वास्थ्य सुविधायें मिलेंगी और उन्हें दून नहीं आना पड़ेगा पर यहां तो उल्टा ही हो रहा है। अब पहले से ज्यादा लोग दून अस्पताल में इस इलाके के दिखाई दे रहे हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां ईलाज के नाम पर महज खानापूर्ति हो रही है।
पहले से चलता आ रहा है पीपीपी मोड का खेल
सेवाओं में कमी के आधार पर स्वास्थ्य महानिदेशालय ने कांग्रेस सरकार के दौरान दो कंपनियों से 12 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के पीपीपी मोड में संचालन के लिए अनुबंध किया। इसमें से शील नर्सिंग होम को चैखुटिया, लोहाघाट, बाजपुर, गैरसैण, जखोली, गरमपानी, कपकोट और मुनस्यारी सीएचसी का संचालन दिया गया। वहीं राजभ्रा मेडिकेयर को रायपुर, सहिया, थत्यूड और नैनबाग सीएचसी की जिम्मेदारी दी गई। दोनों कंपनियों को अनुबंध के अनुसार अस्पताल में सेवाएं, सुविधाएं और डॉक्टर समेत अन्य स्टाफ रखने थे। हालांकि कई तरह की अनियमितताओं के चलते विभाग ने राजभ्रा मेडिकेयर का अनुबंध निरस्त कर दिया था। वहीं कुछ समय पूर्व सेवाओं में कमी और लोगों के विरोध के चलते विभाग ने लोहाघाट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को शील नर्सिंग होम से वापस ले लिया। साथ ही अन्य दो सीएचसी लोहाघाट और बाजपुर का अनुबंध भी निरस्त कर दिया। बड़ा सवाल यह उठता है कि जब स्वास्थ्य विभाग को पहले ही पीपीपी मोड के जरिए नुकसान उठाना चुका है तो फिर दुबारा से जानबूझकर गलती क्यों की जा रही है? और अगर देने ही हैं तो जो देहरादून जनपद के सरकारी अस्पताल में मांग रहा है उसे कहते पहले पहाड़ों की अस्पताल की दशा सुधार के दिखाओ तब देहरादून की बात करना, पर ऐसा करे कौन?
निजी अस्पतालों का रिकार्ड भी नहीं संतोष जनक
जो भी निजी संस्थाएं इस पीपीपी मोड के जरिए पहाड़ के अस्पतालों को अधिग्रहीत करने की मंशा पाली हुई हैं, उनके अस्पतालों का रिकार्ड भी संतोषजनक नहीं है। अनेक भुक्तभोगी लोगों का कहना है कि उन्हे ऐसे अस्पतालों में भारी भरकम बिल चुकाने के बावजूद उचित इलाज नहीं मिल पाया, अनेक मामलों में तो लाखों खर्च करने के बाद उनके परिजनों की जान भी नहीं बचाई जा सकी।
रैफरल सैंटर मात्र हो जाएंगे यह अस्पताल
यदि सरकार की योजना के अनुरूप निर्णय लिया जाता है तो वर्तमान में कुशल व विशेषज्ञ सरकारी डाक्टरों की मौजूदगी में चल रहे यह अस्पताल पीपीपी मोड पर जाने के बाद रैफरल सैंटर मात्र रह जाएंगे। यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि पीपीपी मोड की इच्छुक अधिकांश संस्थाओं के बड़े बड़े चिकित्सालय दून घाटी में स्थित हैं। इसीलिए ऐसी संस्थाएं उन अस्पतालों को ही अधिग्रहीत करने में रुचि दिखा रही हैं, जिनकी दूरी देहरादून से अपेक्षाकृत कम हो, जिससे कि मरीजों को प्राथमिक सलाह अथवा उपचार देकर सीधे उनके देहरादून स्थित अस्पतालों तक रैफर किया जा सके। दरअसल, इस पीपीपी मोड के खेल के पीछे इन निजी अस्पताल के प्रबंधकों को भविष्य में बड़े मुनाफे के अवसर नजर आ रहे हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकार अथवा सरकार में पैठ रखने वाले प्रभावशाली लोग भी मुनाफे के इस खेल में बराबर के भागीदार हों।