कुमार दुष्यंत
हरिद्वार:आप एक हलवा पूड़ी को कितनी बार परोस सकते हैं? स्वभाविक है आपका जवाब होगा एक ही बार।क्योंकि परोसे जाने के बाद तो वह खा ली जाएगी! फिर, दोबारा कैसे परोसी जा सकती है? लेकिन हरिद्वार में गंगा घाटों पर चल रहे लंगरों में यह चमत्कार होता है।जहां एक ही पूड़ी-हलवा घूम-घूम कर बार-बार बंटता रहता है।हरिद्वार के भिखारी और लंगरों के संचालक मिलकर इस ‘चमत्कार’ को संभव बनाते हैं।
हरिद्वार के बारे में कहा जाता है कि यहां कोई भूखा नहीं मरता! ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि हरिद्वार एक तीर्थनगर है।और यहां आने वाले श्रद्धालु-तीर्थयात्री पुण्यलाभ के लिए गरीबों और भिखारियों को दिनभर भोजन वितरित करते रहते हैं।इस भोजन में हलवा, पूड़ी, दाल-चावल सभी कुछ होता है।
गंगा के घाटों पर प्रतिबंध के बावजूद ऐसे अनेक लंगर व खाने-पीने की दुकानें खुली हुई हैँ।जिन्हें श्रद्धालु भुगतान कर भिक्षुओं को भोजन बंटवाते हैं।इनमें अनेक दुकानें ऐसी हैं। जिनमें सिर्फ दिखावटी भोजन ही बांटा जाता है।अर्थात यह भोजन खाने योग्य नहीं होता। ज्यादातर ऐसी दुकानों में दिनभर एक ही पूड़ी, हलवा सजा रहता है।यह पूड़ी हलवा एक बार बनाया जाता है और उसके बाद यह दिनभर बार-बार श्रद्धालुओं को बेचा जाता है।लंगर संचालक भिखारियों को श्रद्धालुओं से भोजन के साथ अच्छी दक्षिणा का लालच देकर अपनी दुकानों के आगे रोके रखते हैं।जब दक्षिणा के साथ यह पूड़ी हलवा भिखारियों को बांटा जाता है, तो भिखारी पूड़ी-हलवे से अपनी दक्षिणा निकालकर यात्री से नजर बचाकर हलवा पूड़ी उसी दुकान पर रख देते हैं।जिसे दुकानदार फिर से परात में सजा देता है।और यह पूड़ी हलवा फिर से बिकने के लिए तैयार हो जाता है।और दिनभर इसी तरह कई बार श्रद्धालुओं को बेचा जाता है।इस ‘चमत्कार’ से जहां लंगर चलाने वाले हलवा पूड़ी को बार-बार बेचकर दुगूना-चौगुना मुनाफा कमाते हैँ ।वहीं भिखारियों की भी बार-बार मिलने वाली दक्षिणा से अच्छी खासी कमाई हो जाती है।लेकिन पुण्यलाभ के लिए भोजन बांटने वाला श्रद्धालु ठगा जाता है।
हरिद्वार में हालांकि गंगा किनारे भोजन बांटने पर प्रतिबंध है।गंगा किनारे गंदगी न फैले इसके लिए एनजीटी के भी सख्त निर्देश हैँ।भिक्षावृति निरोधक कानून भी यहां लागू है।लेकिन इसके बावजूद श्रद्धालुओं को ठगने का यह काम यहां दिनभर बेरोकटोक चलता रहता है।