जीरो टोलरेंस वाली सरकार ने इन दिनों एक फाइल सचिवालय से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय और मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर विभाग तक लगातार घूम रही है, किंतु तमाम घूमाफेरी के बावजूद अभी तक निर्णय नहीं हो पा रहा है। इस बार बजट सत्र में सूचना विभाग का बजट बढ़ाया गया तो तब किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया कि अचानक से १० करोड़ रुपए की वृद्धि करने के पीछे क्या मंशा थी।
दरअसल लंबे समय से सूचना विभाग में एक फाइल जी मीडिया के नाम से चल रही थी, जिसमें उत्तराखंड के १३ जिलों के १३ नए डेस्टिनेशन पर जी मीडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार का खाका तैयार किया गया। यह फिल्म कैलाश खेर द्वारा केदारनाथ पर बनाए गए धारावाहिक की तर्ज पर थी। कैलाश खेर का प्रोजेक्ट १० करोड़ रुपए का था, जिसमें से ८ करोड़ रुपए का भुगतान हो चुका है, जबकि अभी तक प्रसारण नहीं हुआ है। कैलाश खेर की तर्ज पर जी मीडिया का १७ करोड़ रुपए का यह प्रोजेक्ट तीन बार मुख्यमंत्री कार्यालय से सूचना महानिदेशक तक पहुंचा, किंतु आगे नहीं बढ़ पाया।
सूचना महानिदेशक पंकज कुमार पांडे के लिए यह मौखिक आदेश थे कि १७ करोड़ रुपए का यह काम बिना टेंडर के सीधे जी मीडिया को दे दिया जाए। चूंकि डबल इंजन सरकार का शासनादेश है कि २५ लाख रुपए से अधिक का काम अब ई टेंडरिंग होने अनिवार्य है। ऐसे में १७ करोड़ का यह काम बिना टेंडर के नहीं दिया जा सकता था। मुख्यमंत्री कार्यालय के खास लोगों के लिखित व मौखिक आदेशों, मोबाइल, व्हाट्सएप पर संदेशों के बावजूद आईएएस पंकज कुमार पांडे ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया कि वे किसी भी सूरत में बिना टेंडर के यह काम किसी को भी नहीं देंगे। इस मसले पर पंकज कुमार पांडे को दो-तीन बार मुख्यमंत्री के नजदीकियों के साथ गरमागर्म बहस से भी रूबरू होना पड़ा, किंतु पांडे ने नियमों का हवाला देते हुए फाइल वापस भेज दी। पंकज कुमार पांडे ने इस मसले पर किसी भी मौखिक या लिखित आदेश को यह कहते हुए मना कर दिया कि किसी भी सूरत में बिना ई टेंंडरिंग के इस काम को अंजाम नहीं दिया जा सकता।
सूचना विभाग द्वारा मना होने के बाद यह फाइल अब पर्यटन विभाग में घूम रही है। कोशिश यह है कि पर्यटन विभाग जिस प्रकार पहले उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम, एनबीसीसी जैसी एजेंसियों को बिना टेंडर के करोड़ों के काम दिए जाते थे, उसी तर्ज पर पर्यटन विभाग इस १७ करोड़ के प्रोजेक्ट को जी मीडिया को दे दे। पर्यटन विभाग में इस मसले पर दो बार बैठक हो चुकी है। मुख्यमंत्री और पर्यटन मंत्री की मौजूदगी में इस फाइल पर चर्चा इसलिए अधूरी है, क्योंकि एक बार फिर मसला ई टेंडरिंग का आ गया है और कोई भी अधिकारी अपनी गर्दन फंसाने के लिए तैयार नहीं।
देखना है कि कैलाश खेर के जय केदारा के फंसे पेंच के बीच डबल इंजन की प्रचंड बहुमत वाली सरकार अब जी मीडिया हाउस के लिए किस प्रकार रास्ता निकालती है और इस मसले पर पर्यटन मंत्री को कैसे विश्वास में लेती है और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज किस प्रकार गले में पड़ी इस फांस का रास्ता तलाशते हैं।