अब प्रदेश में कुछ भी अनाप-शनाप खर्चा हो तो उसके भुगतान के लिए भी मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष हाजिर है। बद्रीनाथ केदारनाथ के कपाट खुलने के दौरान तमाम हाई-फाई लोग निजी हेलीकॉप्टरों से कपाट उद्घाटन के अवसर पर पहुंचे तो उस दौरान पर्वतजन ने उड्डयन विभाग से यह जानना चाहा था कि यह लोग हवाई सेवाओं का दुरुपयोग क्यों कर रहे हैं !
तब यह जवाब मिला था कि यह निजी हेलीकॉप्टर की सेवाएं ले रहे हैं। लेकिन अब पता चला है कि उन्होंने इन यात्राओं का बिल सरकार को थमा दिया है। अथवा सरकार ने ही उन्हें निजी हेलीकॉप्टर से यात्रा करके बिल प्रस्तुत करने के लिए कहा था, या फिर सरकार ने ही उन्हें निजी हेलीकॉप्टर उपलब्ध कराए थे।
मामला जो भी रहा हो, किंतु 27 अप्रैल से 30 अप्रैल तक 32 लोग निजी हेलीकॉप्टरों से कपाट उद्घाटन के अवसर पर पहुंचे थे इनका लाखों रुपए बिल शासन में पहुंचा तो पहले तो शासन ने इसका भुगतान पर्यटन विभाग से करने के लिए आदेश दिए, किंतु पर्यटन विभाग के हाथ खड़े करने पर मुख्यमंत्री कार्यालय ने इसका भुगतान मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से करने का निर्णय लिया है।
7 मई को मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा जारी पत्र के अनुसार इनका भुगतान विवेकाधीन कोष से किया जाएगा। विवेकाधीन कोष में भी आम जनता की खून पसीने की कमाई का पैसा ही टैक्स के रूप में जमा किया जाता है।
अहम् सवाल यह है कि विवेकाधीन कोष विधायकों की संस्तुति पर खर्च किया जाता है। पर्वत जन ने कुछ समय पहले एक खुलासा किया था। जिसमें यह बताया गया था कि दर्जनों विधायक ऐसे हैं, जो अपने क्षेत्र की जनता को विभिन्न दुख दर्द मे मदद के लिए विवेकाधीन कोष की राह ताकते रह जाते हैं लेकिन उनको विवेकाधीन कोष से 5-5 हजार रुपए में टरका दिया जाता है। एक ओर सरकार धन की कमी का रोना रो रही है और दूसरी ओर जीरो टॉलरेंस के दावे करते नहीं थकती। ऐसे में नियम विरुद्ध की जा रही फिजूलखर्ची के भुगतान के लिए विवेकाधीन कोष का इस्तेमाल किया जाना कितना विवेक सम्मत कहा जा सकता है !
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